- यूक्रेन मामले में संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस के खिलाफ अब तक 9 प्रस्ताव पेश किए जा चुके हैं।
- भारत सभी प्रस्तावों पर तटस्थ रूख अपना चुका है।
- अमेरिका लगातार भारत पर यह दबाव बना रहा है कि वह रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के पाले में खड़ा हो जाय।
Russia-Ukraine War: संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) की वोटिंग में आज भारत क्या करेगा, क्या बूचा में हुए नरसंहार पर निष्पक्ष जांच की मांग और चिंता भारत के बदले रुख का प्रतीक है? यह कुछ ऐसे सवाल है जिन पर पूरी दुनिया की नजर है। असल में आज अमेरिका सहित दूसरे देशों के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में वोटिंग होनी है। जिसमें रूस को बूचा में नरसंहार का मामला सामने आने के बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHC) से निलंबित करने पर फैसला होगा। अब देखना यह है कि भारत क्या एक बार फिर तटस्थ रूख अपनाता है। क्योंकि अभी तक यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस के खिलाफ 9 प्रस्ताव लाए गए हैं। और भारत ने सभी मामले में तटस्थ रुख रखा है।
ड्रॉफ्ट की भाषा पर तय होगा भारत का जवाब
रूस के खिलाफ आज पेश होने वाले प्रस्ताव पर भारत क्या रूख अपनाता है, यह तो कहना अभी मुश्किल है। लेकिन जैसे अभी तक भारत ने तटस्थ रुख अपनाया है, वैसा ही 10 वीं बार भी होने की संभावना है। एक विशेषज्ञ के अनुसार इस तरह के प्रस्ताव में ड्रॉफ्ट का बहुत महत्व होता है। और एक-एक शब्द का बेहद कूटनीतिक अर्थ होता है। ऐसे में भारत कोई भी फैसला लेने से पहले ड्रॉफ्ट को बेहद संजीदगी से देखेगा, उसके बाद ही वह कोई कदम उठाएगा।
रूस को हटाने के लिए दो तिहाई समर्थन की जरूरत
रूस को मानवाधिकार परिषद से निलंबित करने के लिए दो तिहाई सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है। इसमें अगर कोई सदस्य देश वोटिंग से अनुपस्थित रहता है तो उसका फैसले पर कोई असर नहीं पड़ता है। क्योंकि मौजूद सदस्यों या कुल सदस्यों के समर्थन से प्रस्ताव को पारित किया जाता है। ऐसे में अगर भारत अनुपस्थित भी रहता है तो भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
अमेरिका लगातार भारत पर बना रहा है दबाव
यूक्रेन संकट पर रूस के प्रति भारत के रूख को देखते हुए, अमेरिका लगातार भारत को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए वह कड़ी भाषा का भी इस्तेमाल कर रहा है। सबसे पहले क्वॉड की बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत का बिना नाम लिए कहा था कि रूस के यूक्रेन पर हमले को लेकर कोई बहाना नहीं चलेगा। इसके बाद डिप्टी एनएसए दलीप सिंह जब भारत आए तो उन्होंने कह दिया कि चीन एलएसी का उल्लंघन करेगा तो रूस बचाने नहीं आएगा। और अब रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा है कि रूस के हथियारों में निवेश करना भारत के हित के लिए ठीक नहीं है। जाहिर अमेरिका किसी भी तरह भारत को अपने पाले में लाना चाहता है।
वहीं भारत की नीति पर मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के रिसर्च फेलो विशाल चंद्रा ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बताया कि भारत की विदेश नीति बहुआयामी है। उसने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बना रखी है। क्योंकि भारत एक बड़ी और उभरती हुई आर्थिक शक्ति है। ऐसे में उसकी जरूरतें डायनमिक है। इसलिए भारत ने रूस और यूक्रेन युद्ध में एक तटस्थ रूख अपना रखा है। भारत और रूस के बीच गहरे संबंध हैं। एशियाई और अंतरराष्ट्रीय जिओ पॉलिटिक्स के बदलते रूख को देखते हुए भारत अपने हितों को ध्यान में रख कर एक संतुलित नीति के साथ अभी तक आगे बढ़ा है।
रक्षा सौदों और तेल खरीद ने बढ़ाई बेचैनी
असल में भारत अपनी रक्षा जरूरतों का करीब दो तिहाई हिस्सा रूस से आयात करता है। इसके अलावा जब पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए तो उसने भारत को डिस्काउंट पर कच्चे तेल की आपूर्ति का प्रस्ताव दे दिया। जिसके बाद से अमेरिका भारत पर यह लगातार दबाव बना रहा है कि वह रूस से कच्चा तेल नहीं खरीदे। साथ ही उसका प्रस्ताव है कि वह रूस से हथियार पर निर्भरता कम करे और उसके बदले में अमेरिका से हथियार खरीदे।
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भारतीय छात्रों को बचाने में मिला सहयोग
यूक्रेन में फंसे 22 हजार छात्रों को सही सलामत निकालने में भारत की कूटनीति काफी प्रभावशाली रही है। और ऐसा बिना रूस के सहयोग से होना मुश्किल था। इसके अलावा रूस भारत का परखा हुआ दोस्त रहा है। पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने हाल ही में यह बयान दिया था कि भारत-रूस के संबंध बेहद मजबूत रहे हैं, और कश्मीर पर रूस ने भारत का हमेशा साथ दिया है। जबकि अमेरिका ऐसा नहीं कर पाया है। साफ है कि भारत इन सभी पहलुओं को देखते हुए ही कोई कदम उठाएगा।