- अमेरिका विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट में अफगानिस्तान पर रिपोर्ट तैयार की गई है
- इस रिपोर्ट में अफगानिस्तान में अमेरिकी प्रयासों की 'नाकामी' का जिक्र किया गया है
- रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका के पैसों से अफगानिस्तान में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला
नई दिल्ली : अफगानिस्तान से अमेरिका के निकलने के बाद राष्ट्रपति जो बाइडन के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि अमेरिका ने यहां से निकलने में जल्दबाजी दिखाई और जाने से पहले उसने इस देश को एक मजबूत व्यवस्था के हाथों नहीं सौंपा। 20 साल तक आतंकवाद के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाले अमेरिका ने अफगानिस्तान में अरबों डॉलर खर्च किए। अफगान बलों को प्रशिक्षित करने से लेकर यहां कई तरह की व्यवस्था एवं सुविधाएं बनाने में मदद की लेकिन उसकी ओर से बनाई गई व्यवस्था तालिबान के आगे इस तरह से घुटने टेक देगी इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी।
ब्राउन यूनिवर्सिटी ने तैयार की है रिपोर्ट
अफगानिस्तान में अमेरिका के हुए खर्च पर ब्राउन यूनिवर्सिटी ने एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और इस देश के निर्माण से जुड़ी परियोजनाओं में अमेरिका ने 7,300 दिनों तक हर रोज 290 मिलियन डॉलर खर्च किए। रिपोर्ट में अमेरिकी खर्च पर सवाल उठाए गए हैं। यूनिवर्सिटी की 'क्रास ऑफ वार' प्रोजेक्ट में कहा गया है कि इस खर्च की अंतिम परिणति तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के रूप में हुई है। पिछेल 20 सालों में अमेरिका ने यहां 2 खरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए।
'समृद्ध अफगान युवाओं का एक छोटा समूह पैदा हुआ'
इस रिपोर्ट में अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे पर अमेरिका के बड़े मीडिया संस्थानों की ओर से उठाई गईं बातों का जिक्र प्रमुखता से किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने अफगानिस्तान में जो बड़ी रकम खर्च की उससे वहां 'अत्यंत समृद्ध अफगान युवाओं का एक छोटा समूह पैदा हुआ।' इनमें से कई युवाओं ने अमेरिकी सेना के लिए अनुवादक के रूप में काम करना शुरू किया और वे करोड़पति बन गए।
'भ्रष्टाचार ने अमेरिकी प्रयासों को नाकाम किया'
रिपोर्ट के मुताबिक, 'अमेरिकी सैन्य बलों के साथ हुए अनुबंधों ने व्यवस्था में भ्रष्टाचार को पनपने दिया और उसे बढ़ावा दिया। इस भ्रष्टाचार ने पूरे देश को अपने गिरफ्त में ले लिया। इसने कमजोर लोकतंत्र को धाराशायी कर दिया।' रिपोर्ट में सीएनबीसी के हवाला देते हुए कहा गया है कि अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में अमेरिका ने हर तरह से अपने प्रयास किए। 'फिर भी तालिबान को प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा करने, सेना और अमेरिका समर्थित सरकार को उखाड़ फेंकने में केवल नौ दिन का समय लगा।' अफगानिस्तान में दो बार अमेरिकी राजदूत रहे रेयान क्रॉकर ने एक साक्षात्कार में अमेरिका की नाकामी के लिए 9/11 के बाद के भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, 'हमारे प्रयासों की विफलता की वजह विद्रोह या बगावत नहीं बल्कि वहां का भ्रष्टाचार था।'