लंबे समये से हाइड्रोजन कार की वकालत कर रहे केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी आज संसद भवन हाइड्रोजन कार से ही पहुंचे। ये भारत की पहली ऐसी कार है जो हाइड्रोजन से चलती है। केंद्रीय मंत्री जिस कार से संसद पहुंचे उसे Toyota कंपनी ने बनाया है और इसका नाम Mirai है। इस कार को कंपनी ने 16 मार्च को भारत में लॉन्च किया था। फिलहाल इसे पायलट प्रोजेक्ट के तहत बनाया गया है। भारत में ऐसी गाड़ियों के लिए इकोसिस्टम तैयार करने के लिए ये अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है।
धुएं की जगह पानी छोड़ती है ये कार
टोयोटा की ओर से पायलट प्रोजेक्ट के तहत बनाई गई इस कार में एडवांस्ड फ्यूल सेल लागाया गया है। ये एडवांस सेल ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के कॉम्बिनेशन से इलेक्ट्रिसिटी जनरेट करता है। इसी इलेक्ट्रिसिटी से कार चलती है।
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क्या है फ्यूल सेल?
मेडिसिन सेक्टर में स्टेम सेल की तरह, ऑटोमोटिव वर्ल्ड में फ्यूल सेल एक नई टेक्नोलॉजी है। ये टेक्नोलॉजी इलेक्ट्रोलाइसिस की तरह काम करती है लेकिन रिवर्स में। सरल शब्दों में कहें तो पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में अलग करने के लिए बिजली का इस्तेमाल करने की जगह, इन दो एलिमेंट्स को मिलाकर पानी और बिजली का उत्पादन किया जाता है। इसके बाद बिजली का इस्तेमाल कार के मोटर को चलाने के लिए किया जाता है और यहां वाटर बायप्रोडक्ट होता है।
क्या ये इलेक्ट्रिक कारों से बेहतर ऑप्शन है?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, Mirai को फुल टैंक हाइड्रोजन के साथ 650 किलोमीटर तक चलाया जा सकता है। साथ ही हाइड्रोजन फ्यूलिंग स्टेशन आसपास होने से पेट्रोल और डीजल कारों की तरह इसे महज 2-3 मिनट में रिफिल भी किया जा सकता है। जबकि, इलेक्ट्रिक कारों को पूरी तरह से चार्ज होने में घंटों लगते हैं। खास बात ये है कि हाइड्रोजन यूनिवर्स में सबसे भारी मात्रा में पाया जाने वाले वाला एलिमेंट है।
जबकि, बैटरी में इस्तेमाल किया जाने वाला लिथियम मुख्य तौर पर चिली और चीन में पाया जाता है और चीनी कंपनियां सप्लाई चेन को कंट्रोल करती हैं। वहीं, लिथियम-आयन बैटरी को डिस्पोज करने के लिए भी कई समस्याएं हैं। जैसे ही हम एक बार कम लागत में स्थायी तौर पर पर्याप्त हाइड्रोजन प्रोड्यूस करने लगेंगे वैसे ही FCEVs का उदय हो जाएगा।
पेट्रोल-डीजल पर कम होगी निर्भरता:
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अभी हम जो ईंधन इस्तेमाल करते हैं उसका बड़ा हिस्सा कच्चे तेल, कोयले, प्राकृतिक गैस से प्राप्त होता है। हाइड्रोजन का उत्पादन बढ़ने और इसका इस्तेमाल ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होने पर मौजूदा ईंधनों से हमारी निर्भरता कम हो जाएगी। फिलहाल हम अपनी जरूरत के लिए 86 फीसदी तेल और 54 फीसदी प्राकृतिक गैसे आयात करते हैं। इसी तरह सौर ऊर्जा के यंत्र भी आयात के जरिए ही आते हैं। इंडस्ट्री रिपोर्ट्स के मुताबिक हम अभी केवल तेल के आयात के लिए 12 लाख करोड़ रुपये खर्च करते हैं।
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भारत की हाइड्रोजन पॉलिसी:
भारत में हाइड्रोजन पॉलिसी की घोषणा 17 फरवरी को की गई थी। इसका लक्ष्य ग्रीन हाइड्रोजन के डॉमेस्टिक प्रोडक्शन को बढ़ावा देना है। सौर जैसे स्वच्छ ईंधन से हाइड्रोजन को बनाना है। इस पॉलिसी के तहत 2030 तक 5 मिलियन टन तक ग्रीन हाइड्रोजन प्रोड्यूस करना है और भारत को इसके एक्सपोर्ट हब के तौर पर स्थापित करना है। अगर ये लक्ष्य सफल होता है तो ऑटोमोटिव की दुनिया में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा और प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।