क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसने कई बार अपना रूप बदला। अंग्रेजों द्वारा शुरू किए गए इस खेल को शुरुआती दिनों में सिर्फ राजा-महाराजा या शीर्ष पदों पर मौजूद लोग ही खेला करते थे लेकिन जैसे-जैसे समय बीता ये खेल आम लोगों में लोकप्रिय हुआ और आज कई देशों में इसको लेकर दीवानगी देखने लायक है। जैसे-जैसे क्रिकेट बदला उसके नियम और अंदाज के साथ-साथ सामानों का रूप भी बदल गया। क्रिकेट बैट से लेकर क्रिकेट बॉल तक, सभी में बदलाव देखने को मिले। आज हम आपको बताने जा रहे हैं क्रिकेट के सबसे महत्वपूर्ण सामानों में से एक- बल्ले (Cricket Bat) के बारे में।
अगर क्रिकेट पर लिखी गई तमाम किताबों व उससे जुड़े लेखों की मानें तो पहला क्रिकेट बैट 1624 में देखने को मिला था। वो आज के क्रिकेट बैट से काफी जुदा था। इतिहास का वो पहला क्रिकेट बैट किसी हॉकी स्टिक की तरह था। पतला और लंबा। उस बैट से जुड़ा एक ऐसा किस्सा भी दर्ज है जिसको सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं।
फील्डर की गई जान
जब-जब 1624 में इस्तेमाल हुए पहले क्रिकेट बैट की चर्चा होती है, तो उसके साथ-साथ एक डरावने वाकया का जिक्र भी होता है। दरअसल, एक बार उस हॉकी जैसे दिखने वाले सबसे पुराने क्रिकेट बैट से एक खिलाड़ी खेल रहा था। उस दौरान एक फील्डर काफी करीब खड़े होकर फील्डिंग कर रहा था। एक गेंद पर बल्लेबाज ने गलती से हवा में शॉट खेला तो फील्डर उस कैच को पकड़ने वाला था लेकिन बल्लेबाज ने कैच रोकने के इरादे से इस तरह बल्ला घुमाया कि वो फील्डर के सिर से टकराया और फील्डर की मौत हो गई। बताया जाता है कि उसके बाद मामले की आधिकारिक जांच भी हुई थी।
1770 में बदला स्वरूप, गेंदबाजी भी बदल गई
पहले क्रिकेट बैट से ज्यादा लोग खुश नहीं थे और शॉट खेलना भी मुश्किल होता था इसलिए आखिरकार 1770 में बल्ले का स्वरूप बदल गया। इस बार बल्लेे को ऊपर हल्का रखते हुए बीच में और नीचे चौड़ा रखा गया। इसका वजन भी ज्यादा था और मोटाई भी। यही वो बल्ला है जिसमें थोड़े बहुत मामूली बदलाव और हुए, जो आज तक इस्तेमाल हो रहा है। इसके बाद 1820 में गेंदबाजी का नियम व तरीका भी बदल गया। पहले गेंद 'अंडरआर्म' डाली जाती थी लेकिन उसके बाद तय हुआ कि गेंद हाथ घुमाकर ऊपर से फैंकी जाएगी ताकि बाउंस मिल सके।
(Cricket bats - Twitter)
ऐसे तैयार हुआ था क्रिकेट बैट
इसके बाद 1835 में क्रिकेट बैट की लंबाई 38 इंच तय की गई जो आज तक बरकरार है। फिर 1853 से विलो (Willow) लकड़ी से बनने वाले बल्ले के हैंडल को अलग केन लकड़ी से बनाया जाने लगा जो कि बल्ले से जोड़ दिया जाता था जबकि उससे पहले लकड़ी की पूरी एक पट्टी से एक बैट बनता था।
जबकि 1864 आते-आते बल्ले के हैंडल में रबर ग्रिप भी लगाना भी शुरू कर दी गई जो आमतौर पर भारत से ही आती थी। आज शानदार बल्लों के साथ-साथ बल्लेबाज के पास सुरक्षा के कई सामान होते हैं जो कि पुराने जमाने में नहीं हुआ करते थे।
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