22 साल पहले सचिन के बल्ले से निकला था 'डेजर्ट स्टॉर्म', कंगारुओं को चटाई थी धूल

22 साल पहले सचिन तेंदुलकर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ रेतीले तूफान के बीच जो धमाकेदार पारी खेली थी उसका रंग आज भी फीका नहीं पड़ा है।

Sachin Tendulkar
Sachin Tendulkar 
मुख्य बातें
  • सचिन तेंदुलकर ने खेली थी 131 गेंद में 143 रन की धमाकेदार पारी
  • अकेले दम पर भारत को दिलाया था फाइनल का टिकट
  • अंपायर के आउट करार नहीं देने का बावजूद लौट गए थे पवेलियन

नई दिल्ली: सचिन तेंदुलकर ने अपने 24 साल लंबे क्रिकेट करियर में अनगिनत यादगार पारियां खेलीं। लेकिन प्रशंसक जब भी पीछे मुड़कर उन पारियों में सर्वश्रेष्ठ का चयन करने उतरते हैं तो अनायास ही सबके दिल-दिमाग ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 22 अप्रैल 1998 को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेली पारी की खुमारी छा जाती है। इस मैच में सचिन ने 131 गेंद पर 143 रन की धमाकेदार पारी खेलकर भारत को फाइनल में पहुंचाया था। इस मैच में सचिन की बल्लेबाजी और टोनी ग्रेग की कॉमेंट्री का ऐसा असर था कि 22 साल बाद भी उसकी खुमारी नहीं उतर सकी है।

जीत के लिए मिला था 285 रन का लक्ष्य  
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले गए उस मैच में टीम इंडिया को फाइनल में पहुंचने के लिए जीत दर्ज करना जरूरी था। यदि टीम इंडिया जीत न हासिल कर पाए तो उसे बेहतर रन औसत हासिल करनी थी। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया के कप्तान स्टीव वॉ ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। कंगारू टीम ने माइकल बेवेन के शानदार शतक(101) और मार्क वॉ की(81) शानदार अर्धशतकीय पारियों की बदौलत 7 विकेट पर 284 रन का स्कोर खड़ा किया। 

एक छोर थामे रहे सचिन, नहीं मिला दूसरों का साथ
टीम इंडिया को जीत के लिए 285 और फाइनल में पहुंचने के लिए 254 रन बनाने थे। लक्ष्य का पीछा करने उतरी टीम इंडिया के लिए पारी की शुरुआत करने सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली की जोड़ी उतरी लेकिन सौरव(17) रन बनाकर सस्ते में पवेलियन लौट गए। इसके बाद रन गति को तेज करने के लिए कप्तान अजहर ने नयन मोंगिया को भेजा। ऐसे में उन्होंने सचिन के साथ मिलकर स्कोर को 100 रन के पार पहुंचा दिया। सचिन ने 22वें ओवर में 57 गेंदों पर 3 चौके और 2 छक्के की मदद से अपना अर्धशतक पूरा किया। लेकिन इसके बाद अचानक से फिर विकटों की पतझड़ लग गई। 22वें ओवर में मोंगिया 35 रन बनाकर 107 के स्कोर पर पवेलियन लौटे। इसके बाद कप्तान अजहर और अजय जडेजा भी एक छोर से कंगारू गेंदबाजों की धुनाई कर रह सचिन का साथ नहीं दे सके। अजहर 14 और जडेजा 1 रन बना सके।


तूफान ने रोका खेल, और मुश्किल हुआ लक्ष्य 
29 ओवर में 138 रन पर चार विकेट गंवाने के बाद टीम इंडिया मुश्किल में नजर आ रही थी लेकिन सचिन का बल्ला लगातार रन उगलता रहा। उनका साथ देने आए वीवीएस लक्ष्मण ने पिच पर अंगद की तरह पैर जमा लिए और आउट नहीं हुए। दूसरी तरफ सचिन ने  अपने बल्ले का धमाल जारी रखा। ऐसे में बीच में रेतीला तूफान आ गया और खेल को रोकना पड़ा। जब खेल रुका तब भारत ने 31 ओवर में 4 विकेट पर 143 रन बना लिए थे।


आया सचिन के बल्ले का तूफान
जब तूफान रुका और सचिन बल्लेबाजी करने आए तो जीत के लिए भारत को 46 ओवर में 276 रन बनाने का नया लक्ष्य मिला। वहीं भारत को फाइनल में पहुंचने के लिए 46 ओवर में 237 रन बनाने थे। सचिन के लिए काम पहले से और मुश्किल हो गया था लेकिन उन्होंने इसकी परवाह किए बगैर धमाकेदार बल्लेबाजी करना जारी रखा। उनके शॉट्स देखकर ऐसा लग रहा था कि रेतीले तूफान के शांत होने के बाद सचिन के बल्ले से नया तूफान निकल पड़ा है। सचिन ने मैदान के चारों ओर चौकों छक्कों की झड़ी लगा दी और 43वें ओवर में ही भारत की फाइनल में जगह पक्की कर दी। 

फाइनल का टिकट दिलाया लेकिन नहीं दिला पाए जीत 
सचिन उस वक्त टीम को फाइनल में पहुंचाकर खुश नजर नहीं आ रहे थे। उनका अगला लक्ष्य टीम को जीत दिलाना था और इस दिशा में आगे बढ़ गए। लेकिन 43वें ओवर में ही सचिन डेमियन फ्लेमिंग की एक शॉर्ट पिच गेंद को पुल करने की कोशिश में आउट हो गए। अंपायर ने गेंदबाज और विकेटकीपर की अपील पर उन्हें आउट करार नहीं दिया था लेकिन सचिन खुद ही मैदान के बाहर चल दिए। ऐसे में ऑस्ट्रेलियाई टीम ने राहत की सांस ली। 143 रन की पारी सचिन के वनडे करियर का 14वां शतक और उस समय उनका सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर था।

अंतिम 18 गेंद पर 34 रन नहीं बना पाया भारत
नब्बे के दशक के अन्य मैचों की तरह सचिन के आउट होते ही टीम इंडिया की जीत की संभावनाएं भी खत्म हो गईं। अंतिम 18 गेंद में जीत के लिए भारत को 34 रन बनाने थे लेकिन वीवीए लक्ष्मण और ऋषिकेश कानिटकर की जोड़ी केवल 8 रन बना सकी और सचिन के जीत के अरमानों पर पानी फिर गया और भारत को 26 रन के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। भले ही सचिन जीत नहीं दिला सके लेकिन उनकी इस पारी के लिए उन्हें मैन ऑफ द मैच चुना गया। आज 22 साल बाद भी इस पारी की गिनती सचिन के करियर को परिभाषित करने वाली पारी के रूप में होती है और जिनती बार इसे देखो मन नहीं भरता। 

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