एक खेल पत्रकार के रूप में आपको पक्ष ना लेते हुए प्रतिभा और प्रदर्शन को सलाम करना होता है। किसी खिलाड़ी के लिए भावुक होना शायद सही नहीं होता लेकिन जब आपने किसी एक नाम के साथ अपना बचपन गुजारा हो और वैसी दीवानगी में दशक बीत गए हों, तो जुड़ाव लाजमी है। सचिन रमेश तेंदुलकर का नाम कुछ था ही ऐसा। इसीलिए जब आज से 6 साल पहले 16 नवंबर 2013 को इस खिलाड़ी ने क्रिकेट को अलविदा कहा तो देश थम सा गया था। करोड़ों आंखें नम थी, जैसे कुछ कम सा हो गया था। मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में अपनी आखिरी मैच को जीतने के बाद सचिन ने जो कुछ कहा वो हमेशा के लिए लोगों के दिल में ठहर सा गया।
सचिन ने 15 नवंबर 1989 को पाकिस्तान में अपने करियर की शुरुआत की थी और इसी तारीख के आस-पास तकरीबन 24 साल गुजारने के बाद उन्होंने क्रिकेट को छोड़ने का फैसला लिया। वेस्टइंडीज के खिलाफ अपने घरेलू मैदान पर अंतिम मैच खेला, अंतिम पारी में 74 रन बनाए और सचिन..सचिन की गूंज के बीच फैंस ने भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े नाम को आखिरी बार पवेलियन लौटते हुए देखा।
वो खास शब्द..
मैच के बाद प्रेजेंटेशन सेरेमनी में रवि शास्त्री ने सचिन से सवाल पूछने के बजाय उन्हें माइक सौंप दिया। ऐसा नजारा पहली बार दिखा था। ये एक सम्मान था उस क्रिकेटर के लिए जिसने भारतीय क्रिकेट का नक्शा बदला था। सचिन एक पर्ची लेकर आए थे ताकि शुक्रिया कहने में किसी का नाम छूट ना जाए, कोई बात रह ना जाए। आइए उसी अंतिम संबोधन के कुछ खास अंशों को याद करते हैं।
शुरुआत कुछ अनोखी थी
मैदान पर सब सचिन..सचिन चिल्ला रहे थे। तभी सचिन ने माइक पकड़ा और कहा- 'दोस्तों, कृपया बैठ जाइए वर्ना मैं और भावुक हो जाऊंगा। मैंने अपना पूरा जीवन यहीं बिताया है। ये सोचकर अजीब लगता है कि मेरे इस सुनहरे सफर का अंत हो रहा है।'
बेटे ने पिता को किया याद, मां वहीं थी मौजूद
सचिन तेंदुलकर अपने पिता के काफी करीब थे लेकिन विश्व कप 1999 के दौरान उनके पिता का निधन हो गया था। सचिन ने शुक्रिया कहने की शुरुआत अपने पिता से ही की। उन्होंने कहा, 'सबसे पहले अपने पिता का नाम लेना चाहूंगा जिनका निधन 1999 में हो गया था। उनकी सीख के बिना आज शायद यहां ना होता। उन्होंने सिखाया कि अपने सपनों के पीछे भागो, रास्ता मुश्किल होगा लेकिन हार मत मानना। आज उनकी बहुत याद आ रही है। मेरी मां ने मुझ जैसे शैतान बच्चो को कैसे संभाला मुझे नहीं पता। उन्होंने हमेशा मेरे लिए प्रार्थना ही की है।'
इन लोगों को भी शुक्रिया कहा
सचिन ने माता-पिता के अलावा अपने अंकल-आंटी को शुक्रिया कहा जिनके यहां उन्होंने काफी समय बिताया था। फिर बड़े भाई अजीत को उनके संघर्ष के लिए सलाम किया जिन्होंने अपने करियर से पहले सचिन के बारे में सोचा और फिर कोच रमाकांत आचरेकर को सलाम किया जिनके बिना शायद उनका क्रिकेटर बनना नामुमकिन था।
मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत चीज
सचिन ने वहां खड़ी अपनी पत्नी अंजलि तेंदुलकर के बारे में बोला था अंजलि भी भावुक हो गईं। सचिन ने कहा कि 1990 में मेरे जीवन में सबसे खूबसूरत चीज हुई जब मैं अंजलि से मिला। सचिन ने कहा कि अंजलि एक डॉक्टर हैं लेकिन सचिन के करियर के लिए उन्होंने अपना करियर दांव पर लगा दिया और बच्चों का ख्याल रखा जब वो बाहर रहते थे। उन्होंने कहा कि अंजलि उनके जीवन की बेस्ट पार्टनरशिप साबित हुईं। इसके साथ ही सचिन ने बेटे अर्जुन और बेटी सारा को शुक्रिया कहा और माफी भी मांगी कि वो उनके साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाए लेकिन अब उनका पूरा समय उन्हीं के लिए होगा।
सचिन ने उन सभी खिलाड़ियों को शुक्रिया कहा जिन्होंने उनके साथ अच्छा-बुरा समय बिताया। खासतौर पर राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, सौरव गांगुली का नाम लिया जो मैदान में मौजूद थे। इसके अलावा अनिल कुंबले को भी शुक्रिया कहा। इसके साथ ही उन्होंने धोनी को भी शुक्रिया कहा जिन्होंने उनको उनके 200वें टेस्ट मैच की कैप सौंपी थी।
मार्क मैस्करैन्हस का शुक्रिया, मीडिया को भी धन्यवाद
सचिन ने अपने स्वर्गीय दोस्त मार्क मैस्करैन्हस को भी शुक्रिया कहा जो शुरुआती दिनों से उनका मैनेजमेंट देखते थे और अपने मौजूदा मैनेजर विनोद नायडू को भी शुक्रिया कहा। सचिन ने इसके अलावा मीडिया को भी शुक्रिया कहा जिन्होंने बचपन से देश के कोन-कोने में उनको कवर किया और सभी फोटोग्राफर्स को भी जिन्होंने उनके जीवन के खास पहलुओं को कैमरे में कैद किया।
अंतिम पंक्ति पर रो पड़े फैंस
फिर अंत में सचिन ने कहा कि लगता है मेरा भाषण काफी लंबा हो गया है। उन्होंने अपने सभी फैंस को शुक्रिया कहा और अंत में जो लाइन कही उसने उन फैंस को भी रोने पर मजबूर कर दिया जो आंसू रोके बैठे थे। सचिन ने कहा, 'मेरे कानों में एक चीज हमेशा गूंजती रहेगी, और वो है- सचिन..सचिन।' इन्हीं शब्दों के साथ मैदान में सचिन-सचिन की गूंज उठी और मास्टर ब्लास्टर का शानदार करियर वानखेड़े स्टेडियम में तिरंगे के साथ घूमते हुए खत्म हो गया।
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