आज भारतीय क्रिकेट की दो ऐसी हस्तियों का जन्मदिन है जो अपने आप में अनोखे और दिलचस्प हैं। दोनों मैदान पर थे बेहद आक्रामक और करियर खत्म होते ही दोनों का अलग ही अंदाज नजर आया। हम बात कर रहे हैं नवजोत सिंह सिद्धू और वीरेंद्र सहवाग की। आज सिद्धू का 57वां जन्मदिन है जबकि सहवाग का 42वां जन्मदिन है। आइए जानते हैं दोनों के बारे में कुछ दिलचस्प व खास बातें।
टीवी पर हंसी का बादशाह और दूसरा सोशल मीडिया का किंग
ये दोनों ही धमाकेदार बल्लेबाज एक दशक से भी ज्यादा टीम रहे और दोनों का खेलने का अंदाजा तकरीबन एक जैसा यानी धमाकेदार शॉट्स था। दोनों की धमाकेदार बल्लेबाजी का यह आलम था कि गेंद को हवा में बाउंड्री के बाहर भेजने में कभी नहीं हिचकते थे। दोनों अपने क्रिकेटर करियर के दौरान सार्वजनिक तौर पर कम ही सक्रिय रहते थे और उन्हें शर्मीला माना जाता था। फिर क्रिकेट से संन्यास के बाद दोनों ही काफी मुखर होकर अपनी बात रखने लगे। जहां सिद्धू ने टीवी की दुनिया में हंस-हंसकर और कमेंट्री के जरिए नए अंदाज में नाम कमाया। वहीं वीरू ने कमेंट्री से लेकर सोशल मीडिया तक अपने बेबाक व चुटीले अंदाज से दिल जीते।
अपने पिता को नहीं किया निराश, कड़ी मेहनत से टीम में पहुंचे
सिद्धू का जन्म 20 अक्टूबर 1963 को पंजाब के पटियाला जिले में हुआ था। उनके पिता सरदार भगवंत सिंह सिद्धू भी एक क्रिकेटर थे। भगवंत सिंह चाहते थे कि उनका बेटा नवजोत एक बेहतरीन क्रिकेटर बने। सिद्धू ने अपने पिता को निराश नहीं किया और कड़ी मेहनत से अपनी अंतरारष्ट्रीय पहचान बनाई। नवजोत सिंह सिद्धू ने अंतरारष्ट्रीय क्रिकेट में करीब 16 साल तक धूम मचाई। उन्होंने 1983 में टेस्ट डेब्यू किया। हालांकि, उनके टेस्ट करियर शुरुआत में कुछ खास नहीं रहा। उन्हें महज दो टेस्ट मैच के बाद ही टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। सिद्धू ने टीम से बाहर होने के बाद काफी मेहनत की और दोबारा टीम इंडिया में अपनी जगह बनाई।
बिना कदम हिलाए छक्के जड़ने की खूबी
'मुल्तान का सुल्तान' और 'नजफगढ़ के नवाब' जैसे नामों से मशहूर वीरेंद्र सहवाग क्रिकेट इतिहास के उन धमाकेदार बल्लेबाजों में से एक थे जिनसे हर गेंदबाज कांपता था। बतौर ऑलराउंडर अपने क्रिकेटर करियर शूरू करने वाले सहवाग ने पिच पर अपना जबरदस्त खौफ कायम किया। वो बेहद अनिश्चित बल्लेबाज थे। वो मैच की पहली गेंद से ही तूफानी बल्लेबाजी करने वाले खिलाड़ी रहे। खड़े-खड़े गेंद पर छक्का मारने की उनकी काबिलियत लाजवाब थी।
'वीरू' का जन्म 20 अक्टूबर 1978 को हरियाणा में हुआ था। सहवाग ने भारत की ओर से पहला वनडे मैच 1999 में और पहला टेस्ट मैच 2001 में खेला था। 14 साल के करियर में सहवाग ने 104 टेस्ट मैचों में 49.34 की औसत से 8586 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने 23 शतक और 32 अर्धशतक जमाए। वहीं, 251 वनडे मैचों में उन्होंने 35.05 की औसत से 8273 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने 15 शतक और 38 अर्धशतक लगाए। इसके अलावा सहवाग ने 19 टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले जिसमें दो अर्धशतकों की बदौलत उन्होंने 394 रन बनाए। सहवाग के नाम टेस्ट में 91, वनडे में 136 और टी20 में 16 छक्के दर्ज हैं।
नजफगढ़ के नवाब ने पाकिस्तान के मुल्तान में मचाया धमाल
वीरू ने मुल्तान में 530 मिनट तक चली अपनी पारी में 375 गेंदों का सामना कर 309 रन बनाए थे। वो पहले दिन का खेल खत्म होने तक 228 रन बनाकर नाबाद रहे थे। टेस्ट के दूसरे दिन सहवाग दूसरे सत्र में 295 रन बनाकर खेल रहे थे लेकिन उन्होंने आसानी से तिहरा शतक जड़ने की बजाए यह इतिहास छक्के लगाकर बनाया। उन्होंने सकलैन मुश्ताक की गेंद पर छक्का लगाकर अपना पहला तिहरा शतक पूरा किया। उस समय वो टेस्ट इतिहास में एकमात्र बल्लेबाज थे जिन्होंने तिहरा शतक छक्का मारकर पूरा किया था। उनका ये विश्व रिकॉर्ड 10 साल तक बरकरार रहा। सहवाग अभी भी टेस्ट क्रिकेट में सबसे लंबी पारी खेलने में वाले भारतीय खिलाड़ी हैं। उन्होंने 2008 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ चेन्नई टेस्ट में 319 की पारी खेली थी।
दादा बोलते थे, सहवाग अपनी मर्जी करते थे
पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वीरेंद्र सहवाग अपने आप में अनोखे थे। कप्तान होने के नाते वो उनको कई बार बताया करते थे कि आज पिच पर जाकर कुछ देर ठहरना है और फिर पारी की रफ्तार बढ़ाना। सहवाग मेरी पूरी बात सुनते थे लेकिन पिच पर पहुंचने के बाद वो जैसे सब भूल जाते थे। उसके बाद सिर्फ वो वही करते थे जो उनका दिल करता था। गांगुली ने कभी इस बात का बुरा नहीं माना क्योंकि यही वीरू का अंदाज था जिसने भारत को ना जाने कितने मुकाबले जिताए। ऐसा ओपनर भारतीय क्रिकेट में पहले कभी नहीं दिखा था और देखना भी मुश्किल लगता है।
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