टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहा तो पूरे विश्व में उनके करोड़ों फैंस भावुक हो गए। वैसे भारतीय क्रिकेट फैंस हर उस जीत में खुश और भावुक हुई जो धोनी ने अपने शानदार करियर के दौरान देश को हासिल कराईं। लेकिन अगर बात करें खुद धोनी की तो वो हमेशा सफलताओं से भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ते थे। पूर्व महान भारतीय बल्लेबाज वीवीएस लक्ष्मण ने खेल से हटकर धोनी की दो ऐसी ताकत बताईं जिसने उन्हें आम से महान बनाया।
मैदान पर अपने धैर्य के लिए पहचाने जाने वाले धोनी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) की सभी ट्रॉफियां जीतने वाले एकमात्र कप्तान हैं। उन्होंने 15 अगस्त को इंस्टाग्राम पर बेहद संक्षिप्त शब्दों में संन्यास लेने की घोषणा की। लक्ष्मण ने शानदार सफलता के लिए भारतीय टीम के अपने पूर्व साथी को बधाई दी।
सबसे बड़ी ताकत- सफलताओं से भावनात्मक रूप से ना जुड़ना
वीवीएस लक्ष्मण ने स्टार स्पोर्ट्स के शो ‘क्रिकेट कनेक्टेड’ पर कहा, ‘‘मुझे हमेशा से लगता है कि भारत की कप्तानी करना संभवत: किसी के लिए भी सबसे कड़ी चुनौती है क्योंकि दुनिया भर में सभी की आपसे इतनी अधिक उम्मीदें होती हैं। लेकिन महेंद्र सिंह धोनी कभी नतीजों से भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ा रहा। उसने खेल प्रशंसकों को ही नहीं बल्कि लाखों भारतीयों को प्रेरित किया और बताया कैसे अपने देश का दूत बनना चाहिए, सार्वजनिक जीवन में खुद को कैसे रखना चाहिए। और यही कारण है कि वह इतना सम्मानित है।’’
आचरण भी ताकत, निभाई बड़ी भूमिका
धोनी की दूसरी सबसे बड़ी खूबी उनका आचरण था। वीवीएस लक्ष्मण ने कहा कि इस पूर्व विकेटकीपर बल्लेबाज ने अपने आचरण और खेल के प्रति योगदान से भविष्य की पीढ़ियों के लिए उदाहरण पेश किया। उन्होंने कहा, ‘‘क्रिकेट प्रशंसकों का प्यार आपकी क्रिकेट उपलब्धियों के लिए मिलता है लेकिन सम्मान इस चीज से मिलता है कि आपका आचरण कैसा रहा। अगर आप सोशल मीडिया पोस्ट देखें तो सिर्फ पूर्व खिलाड़ियों या क्रिकेट प्रशंसकों ने ही टिप्पणी नहीं की बल्कि सभी भारतीयों ने की जिसमें फिल्मी सितारे, जाने माने उद्योगपति, राजनेता शामिल रहे। दुनिया भर के पूर्व क्रिकेटरों, क्रिकेट जगत ने भारतीय क्रिकेट ही नहीं बल्कि विश्व क्रिकेट में योगदान के लिए महेंद्र सिंह धोनी को शुक्रिया कहा।’’
जब जश्न के बीच गुम हो गए थे धोनी
आईसीसी क्रिकेट विश्व कप 2011 का फाइनल कोई नहीं भूल सकता। वहां भी नजर आया था कि उनका आचरण कैसा है और वो सफलताओं से कैसे खुद को नहीं जोड़ते। खिताब जीतने के बाद एक तरफ जहां सभी खिलाड़ी जश्न मना रहे थे, वहीं दूसरी तरफ थे धोनी जो ड्रेसिंग रूम में कहीं गुम हो गए थे। ट्रॉफी लेने की बारी आई तो उन्होंने बाकी खिलाड़ियों को ट्रॉफी थमा दी और वो अन्य खिलाड़ियों के साथ पीछे कहीं ऐसे खड़े थे मानो वो टीम के कोई साधारण खिलाड़ी थे।
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