लखनऊ। पंजाब की जेल में दो वर्षों से बंद यूपी का कुख्यात अपराधी और माननीय मुख्तार अंसारी अब बांजा जेल में है। उसके गुनाहों की लिस्ट जितनी लंबी है उतनी ही दूर तर उसके चर्चे भी हैं। कुछ लोग उसे राबिनहुड मानते हैं तो कुछ लोगों की नजर में वो विशुद्ध तौर पर अपराधी है। मुख्तार ने जब अपराध की दुनिया में कदम रखा तो वो आश्चर्यजनक इसलिए था कि एक ऐसा शख्स जिसके दादा आजादी से पहले कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हों, जिसके नाना नौशेरा की लड़ाई के हीरो रहे हों,जिसके पिता कम्यूनिस्ट पार्टी के बड़े नेता रहे हों वो जरायम की दुनिया में कैसे शामिल हो गया।
हिस्ट्री शीट के पन्ने भरते गए
मुख्तार अंसारी की हिस्ट्री शीट के पन्ने गुजरते समय के साथ भरते गए। लेकिन 2005 की एक घटना उसके आपराधिक इतिहास के रुख को बदल देती है। अपराध की दुनिया में वो एक ऐसे शख्स के रूप में सामने आया जो जिसके लिए राजनीति उसकी काली करतूतों को बढ़ावा देने में मददगार साबित हुई। यहां हम बात करेंगे 2005 की उस वारदात की जिसकी चर्चा आज भी होती है हालांकि वो उस केस में बरी हो चुका है, बात हम कर रहे हैं बीजपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या की जिसका जिक्र आज भी होता है।
2005 मर्डर केस में ए के 47 का इस्तेमाल
उस हाईप्रोफाइल हत्याकांड में अत्याधुनिक ए के 47 का जबरदस्त इस्तेमाल किया गया था। करीब 500 राउंड फायरिंग में कृष्णानंद राय की शरीर में अकेले 67 गोलियां पाई गईं थी।अब सवाल यह है कि कृष्णानंद राय को मुख्तार अंसाीर ने निशाना क्यों बनाया तो इसके लिए वर्ष 2002 को याद करना होगा। 2002 में गाजीपुर की मोहम्दाबाद सीट से कृष्णानंद राय मे मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को हरा दिया था जिसे दोनों भाइयों ने खुद के लिए चुनौती माना। बताया जाता है कि मुख्तार ने अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया कि किसी तरह से कृष्णानंद को रास्ते से हटाना है।
कानूनी पैंतरों के मास्टर हैं अंसारी ब्रदर्स
यह बात अलग है कि कानूनी लड़ाई में गवाह टूट गए और मुख्तार अंसारी का सफेद कुर्ता दागदार होने से बच गया। लेकिन उसके गुनाहों की लिस्ट बड़ी लंबी है जिनमें फैसला आना बाकी है। यह बात अलग है कि मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी का कहना है कि उसके भाई के खिलाफ मीडिया गलत जानकारी दे रहा है। मुख्तार के खिलाफ सिर्फ 13 मामले हैं और उनमें भी गंभीर अपराध के सिर्फ 2 या तीन। अफजाल कहते हैं कि एक तरफ तो मुख्तार अंसारी को अपराधी साबित किया जा रहा है। लेकिन दूसरी तरफ बृजेश सिंह जो खुद माननीय बन चुके हैं उन्हें बचाया जा रहा है।