नई दिल्ली: दिल्ली के 17 साल के युवा छात्र ने कमाल कर दिखाया है। यह छात्र कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सबसे युवा सिपाही बनने जा रहा है। इस छात्र ने अपने वेब आधारित एप्लीकेशन LungAI को 'Aatmanirbhar Bharat Ideathon competition ' में प्रस्तुत किया था। जिसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने पुरस्कार से सम्मानित किया है। आर्यन गुलाटी उन पांच युवाओं में शामिल हैं जिन्हें ये सम्मान मिला है। इनके आवेदन को स्थायी वातावरण की श्रेणी में प्रमुखता से जगह मिली है।
गुलाटी दिल्ली पब्लिक स्कूल, आरके पुरम के छात्र हैं। वो इस समय भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद्, (ICMR ) के साथ अपने इस एप्लीकेशन को आगे के परीक्षण के लिए मान्य कराने पर चर्चा कर रहे हैं। यह एप्लीकेशन 'six machine-learning models' पर आधारित है और इसका एक्यूरेसी रेट 90 प्रतिशत तक है। यह एप्लीकेशन तीन से पांच सेकंड में कोविड की पहचान कर सकता है।
16 बीमारियों की पहचान करने में सहायक
इसके साथ ही यह फेफड़े के कैंसर के साथ फेफड़े से जुड़ी 16 बीमारियों की पहचान कर सकता है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए गुलाटी ने बताया कि उनका मानना था कि जब कोई व्यक्ति संक्रमित हो जाए तो स्वाब टेस्ट के अलावा फेफड़ों के तरल पदार्थ में आए बदलाव के विषय में जांच करके हम ज़्यादा आसानी से पता लगा सकते हैं कोविड के संक्रमण का।
इस एप्लीकेशन में आटोमेटिक मैसेजिंग सिस्टम का भी इस्तेमाल
गुलाटी द्वारा बनाया गया यह एप्लीकेशन शरीर के अंदर हो रहे बदलाव को एक फैक्टर के रूप में लेता है। यह इस बात को देखता है कि कितने फैक्टर कोविड के लक्षणों से मिलते हैं। इन सभी की तुलना करने के बाद यह कोविड की पहचान करता है। यह एप्लीकेशन फेफड़े से जुड़ी दूसरी बीमारियों की भी पहचान कर सकता है ताकि इसे कोरोना मरीज़ों के अलावा आम मरीज़ों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सके। इस एप्लीकेशन में आटोमेटिक मैसेजिंग सिस्टम का भी इस्तेमाल किया गया है।
एक से ज़्यादा अस्पताल और डॉक्टरों को रिपोर्ट भेज सकता है
यह एक बार में एक से ज़्यादा अस्पताल और डॉक्टरों को रिपोर्ट भेज सकता है। गुलाटी की ख्वाहिश है के वो किसी भी आईआईटी से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर सकें। वो बताते हैं कि इस तकनीक की मदद से अस्पतालों में भी टेस्टिंग की जा सकेगी। इसके लिए किसी विशेष लैब की जरूरत नहीं होगी, बस उस मरीज़ के एक्सरे की आवश्यकता होगी।
गुलाटी के पिता सेना में हैं। गुलाटी इस प्रोजेक्ट पर मार्च से काम कर रहे थे। उन्होंने इंटरनेट पर मौजूद सत्यापित डाटा का इस्तेमाल किया। उन्होंने कोविड के डाटा के लिए अमेरिका के जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय सहित कई रेडियोलॉजी संस्थानों से भी संपर्क किया।