नई दिल्ली: दिल्ली के अपने स्कूल शिक्षा बोर्ड के अगले साल से क्रियाशील होने की संभावना है हालांकि अन्य राज्यों से उलट इसे सरकारी स्कूलों पर नहीं थोपा जाएगा। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने यह बात कही है। राज्य शिक्षा बोर्ड गठित करने की योजना के विवरण देते हुए, सिसोदिया ने कहा कि यह बोर्ड नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में प्रस्तावित सुधारों के अनुरूप होगा और ध्यान लगातार आकलन पर होगा न कि वर्ष के अंत में होने वाली परीक्षाओं पर।
सिसोदिया ने एक साक्षात्कार में पीटीआई-भाषा को बताया, 'हमने प्रस्तावित बोर्ड के साथ ही पाठ्यक्रम सुधारों पर काम करने के लिए हाल में दो समितियां गठित की हैं। आदर्श स्थिति में हम इसे अगले साल से क्रियाशील बना सकते हैं। शुरुआत में, करीब 40 स्कूलों को बोर्ड से संबद्ध किया जाएगा जो या तो सरकारी होंगे या निजी स्कूल।' उन्होंने कहा कि अन्य राज्य बोर्डों में यह होता है कि निजी स्कूलों के पास सीबीएसई, आईसीएसई या राज्य बोर्ड में से किसी को चुनने का विकल्प होता है जबकि सरकारी स्कूलों में राज्य बोर्ड का पाठ्यक्रम लागू होता है। लेकिन यहां यह सरकारी और निजी दोनों ही तरह के स्कूलों के लिए वैकल्पिक होगा। हम बोर्ड को उपयोगी एवं समृद्ध बनाना चाहते हैं।
दिल्ली सरकार ने पिछले महीने राज्य शिक्षा बोर्ड के गठन और पाठ्यक्रम सुधारों के लिए योजना एवं रूपरेखा तैयार करने के लिए दो समितियों का गठन किया था। आप शासन ने मार्च के अपने वार्षिक बजट में राष्ट्रीय राजधानी के लिए अलग शिक्षा बोर्ड के गठन की योजना की घोषणा की थी। सिसोदिया ने कहा कि उनकी सरकार हाल में घोषित नयी शिक्षा नीति का विस्तार से अध्ययन कर रही है।
उन्होंने कहा, 'हम नीति का विस्तृत अध्ययन कर रहे हैं। हम इसमें प्रस्तावित कुछ सुधारों पर पहले से काम कर रहे हैं। इसमें कुछ खामियां हैं लेकिन कुछ अच्छी चीजें भी हैं। मैंने दो समितियों को बताया है कि हमारा बोर्ड नई शिक्षा नीति के अनुरूप होगा क्योंकि एक राष्ट्र के तौर पर हम साथ हैं लेकिन हमारा ध्यान विद्यार्थियों का साल में एक बार मूल्यांकन करने पर नहीं होगा और रटकर सिखाने की प्रक्रिया को हम प्रोत्साहित नहीं करेंगे।'