नई दिल्ली: कोरोना वायरस के कहर ने स्कूल-कॉलेज पर भी पहरा लगा दिया है। अब बच्चों या छात्रों के लिए ऑनलाइन क्लास के जरिए पढ़ाई हो रही है। क्योंकि स्कूल या कॉलेज कब खुलेंगे इसे लेकर अभी तक कुछ भी साफ नहीं है। ऑनलाइन क्लास उन नौनिहालों के लिए चुनौती भरा जो नर्सरी या प्राइमरी क्लास में है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर यह ऑनलाइन इन बच्चों को क्या सहीं मायने में सार्थक है या नहीं?
इस कोविद महामारी के दौर में ऑनलाइन शिक्षा एक विकल्प के तौर पर उभर कर आया है। अधिकतर स्कूल विभिन्न प्रकार के ऑनलाइन प्लेटफार्म जैसे ज़ूम, माइक्रोसॉफ्ट टीम, इत्यादि के सहारे अपनी कक्षाएं चला रहे हैं। समस्या यह है कि ऑनलाइन शिक्षा के कुछ नुकसान भी है खासकर छोटे बच्चों के सम्बन्ध में। दिल्ली की एक शिक्षाविद अन्विति सिंह के मुताबिक ऑनलाइन शिक्षा के लिए आवश्यक है कि बच्चे इतने समझदार हों जो स्व-शिक्षा करने में सक्षम हों। लेकिन छोटे बच्चे कभी बिना किसी की मदद के शिक्षा हासिल नहीं कर सकते।
ऑनलाइन शिक्षा बच्चों के मानसिक विकास के लिए चुनौती भी
अन्विति सिंह का कहना है कि ऑनलाइन शिक्षा की गुणवत्ता जरूरी नहीं कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में दिए हुए मानकों पर खरी उतरे। जहां तक मनोसामाजिक प्रभाव का प्रश्न है ऑनलाइन शिक्षा बच्चों के मानसिक विकास पर कभी कभी विपरीत असर भी डालती है, और बच्चे अवसाद ग्रस्त भी हो सकते हैं। साइबर सुरक्षा की दृष्टि से भी ऑनलाइन शिक्षा बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं। ऐसी बहुत सी घटनाएं सामने आई हैं जहां बच्चे साइबर बुलिंग और यौन हिंसा के शिकार हुए हैं। ऐसे में जरुरी हो जाता है कि बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा के समस्त अच्छे और बुरे पहलुओं से परिचित कराया जाये। अभिभावकों को ऑनलाइन क्लास के समय सबसे ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।
कितनी देर का हो ऑनलाइन क्लास
ज्यादातर जानकारों का ये कहना है कि ऑनलाइन क्लासेज छोटे बच्चों के लिए 1 या दो घंटा से ज्यादा नहीं होना चाहिए। क्योंकि छोटे बच्चों के लिए आंखों पर जोर पड़ता है चाहे वो मोबाइल ,लैपटॉप हो या कंप्यूटर बच्चों की आंखों पर जोर काफी पढ़ता है। हालांकि दो से तीन साल की उम्र के बच्चों को कोई गतिविधि सिखाने के लिये दो से तीन घंटे का स्क्रीन समय दिया जा सकता है। सबसे बड़ी बात यह भी है कि कम उम्र के बच्चों के लिए यह देखा गया है कि उनकी आंखों पर जोर पड़ता है। साथ ही वह बहुत अधिक देर तक एकाग्रचित नहीं रह सकते है। क्योंकि ऑनलाइन क्लास में संवाद के साथ सामग्री की भी गुणवत्ता जरूरी है। अगर सामग्री बच्चों के हिसाब से नहीं हुई तो वह क्लास बच्चों को सिर्फ बोझिल और बोर करने का काम करेगी। लिहाज ऐसा ऑनलाइन क्लास जो बच्चों के लिए संवाद और सामग्री के लिहाज से उपयोगी हो सर्वोत्तम है। साथ ही ऑनलाइन क्लास बच्चों के उस मॉडल पर आधारित हो जहां इस छोटी उम्र में ऑनलाइन क्लास की सार्थकता पूरी होती हो।
10-10 या 20-20 का नियम ऑनलाइन क्लास के लिए जरुरी
मैक्स हेल्थकेयर में नेत्र रोग विभाग की प्रमुख और निदेशक पारुल शर्मा के मुताबिक स्क्रीन के साइज का असर पड़ता है। एक लैपटॉप या कंप्यूटर पर हाथ भर की दूरी से देखने के मुकाबले टेबलेट या मोबाइल पर करीब से कुछ देखने पर आखों पर ज्यादा जोर पड़ता है। इसके हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिये नियमित अंतराल पर ब्रेक लिया जा सकता है। मिसाल के तौर पर हम 10-10 या 20-20 का नियम अपना सकते हैं जहां हर 10 मिनट के बाद आपको अपनी आंखों को 10 सेकंड के लिये बंद रखने की कोशिश करनी चाहिए इसी तहर 20 मिनट तक काम करने के बाद अपनी आंखों को 20 सेकंड तक बंद रखें।
कुल मिलाकर देखा जाए तो ऑनलाइन क्लास की अपनी भूमिका है। कई मायनों में यह प्रभावकारी तो है लेकिन इसमें शिक्षक या गुरु का संवाद एक स्क्रीन के जरिए होता है इसलिए यह चुनौतीपूर्ण होता है और वह बात नहीं हो पाती है जो आमने सामने बैठकर हो पाती है। लेकिन हालात की विवशता है कि इसके अलावा फिलहाल कोई विकल्प नहीं है। समझदार और बड़े बच्चों के लिए यह उतनी परेशानी का सबब नहीं है जितना छोटे बच्चों के लिए। लिहाजा इस संदर्भ में ऑनलाइन एजुकेशन के उन्हीं पैरामीटर्स को अपनाया जाना चाहिए जो नौनिहालों के लिए सर्वोत्तम हो उनके लिए बोझ ना बने।