Amazing Indian Award 2022 :वनविल ट्रस्ट की डायरेक्टर और मैनेंजिंग ट्रस्टी रेवती राधाकृष्णन को भारत के अग्रणी न्यूज चैनल टाइम्स नाऊ के अमेजिंग इंडियन पुरस्कार से नवाजा गया है। रेवती ने अपने प्रयास से घुमंतू आदिवासी समुदाय बूम बूम मातुकारन के हजारों लोगों का जीवन पूरी तरह से बदल दिया है। और उसी का परिणाम है कि जिस समुदाय में लोग पूरी तरह से निरक्षर थे, उस समुदाय के लोग अब आईटी सेक्टर में काम कर रहे हैं। वह पत्रकार और शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
बूम बूम मातुकारन समुदाय जिसे पू आडयार भी कहा जाता है। 46 साल की रेवती ने उनके बीच साल 2005 में काम करना शुरू किया था। और उनके प्रयास से आज समुदाय के बच्चों का जीवन पूरी तरह से बदल गया है। बूम बूम मातुकारन एक घुमंतू समुदाय है। और आज उनके पास पारंपरिक काम बैलों को सजाने और दूसरे काम उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में वह भीख मांगने और सड़कों पर सामान बेचने आदि का काम करने को मजबूर हैं।
वनविल की कैसे हुई शुरूआत
17 साल पहले रेवती की इस समुदाय के एक कुपोषित बच्ची लक्ष्मी के बारे में जानकारी मिली, जिसकी कुपोषण की वजह से मृत्यु हो गई थी। बच्ची की मौत ने रेवती को सरकारी स्कूलों में बूम बूम मातुकरार बच्चों को मुख्यधारा में लाने के दावों और जमीनी हकीकत में अंतर का सामना कराया। वर्षों तक समुदाय के साथ काम करने के दौरान, वह बच्चों को भीख मांगने से रोकने और शिक्षा के माध्यम से कुपोषण से बाहर निकालने के प्रयास करती रही और इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि केवल बच्चों को मुख्यधारा में लाने से समस्या का हल नहीं होगा। बल्कि समुदाय के साथ बहुत लंबे समय तक काम करने और उसके लिए मजबूत संकल्प की आवश्यकता है। ब्रिज स्कूल इसके लिए सबसे अच्छा जरिया बना सकते थे। और इसी के बाद सुनामी राहत के समय रेवती ने साल 2005 में वनविल की शुरूआत की।
समुदाय की बदली जिंदगी
पिछले 17 वर्षों में रेवती के मेहनत का नतीजा है कि नागपत्तनम और आसपास के जिलों में समुदाय का गंभीर सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं के बारे में लोगों को जागरूक किया । और वनविल ट्रस्ट के जरिए हजारों परिवारों और एक हजार से अधिक बच्चों तक पहुंच बनाई । आज, वनविल तमिलनाडु में घुमंतू आदिवासी समुदाय के साथ काम करने वाले एकमात्र संगठन के रूप अपनी पहचान बना चुका है। वनविल ट्रस्ट एक प्राथमिक विद्यालय, बच्चों का घर, आदिवासी बस्तियों में , 11 स्कूल के बाद के केंद्र और बच्चों के लिए एक उच्च शिक्षा कार्यक्रम चलाता है। इसके अलावा वह समुदाय की महिलाओं के लिए आजीविका सहायता भी प्रदान करता है। इस समय वनविल ट्रस्ट से आदिवासियों के 850 से अधिक बच्चे और 390 महिलाएं जुड़े हुए हैं।
वनविल के प्रयासों से भीख मांग रहे 437 बच्चों का पुर्नवास किया गया और उन्हें वनविल स्कूल में शिक्षा दी गई। समुदाय के 64 बच्चे स्नातक की डिग्री हासिल कर चुके हैं। समुदाय में ऐसा पहली बार हुआ है। उनका पहला स्नातक अब एक शिक्षक है और इसी तरह पहला इंजीनियरिंग स्नातक चेन्नई में आईटी क्षेत्र में कार्यरत है। वनविल के वरिष्ठ छात्रों में से एक प्रमुख तमिल समाचार चैनल में पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं। बूम बूम मातुकारन समुदाय के सदस्य, जो 17 साल पहले शत-प्रतिशत निरक्षर थे, अब उनके बच्चे खुद स्कूल जाने लगे हैं।
इन राज्यो में भी है तैयारी
इसी तरह समुदाय के हाशिए पर चले गए 520 से ज्यादा बच्चों को वनविल बाल गृह में लाया गया। और स्कूल के बाद के केंद्रों में लगभग 900 बच्चों को पोषण और शैक्षिक सहायता प्रदान की गई है। और चेन्नई बाढ़, गाजा और COVID-19 के दौरान 15,000 परिवारों को भी राहत सामग्री प्रदान की गई। इसके अलावा 6 स्वयं सहायता समूह और दो दुग्ध सहकारी समिति भी बनाई गई।
वनविल के प्रयासों से अब समुदाय के परिवारों का राशन कार्ड, आधार कार्ड और सामुदायिक प्रमाण पत्र बन गया है। और उसके जरिए, उन्हें सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में शामिल किया जा रहा है। बूम बूम मातुकारन आदिवासी समुदाय तमिलनाडु के 19 जिलों में मौजूद हैं। वनविल, अभी केवल तीन जिलों में काम कर रहा है, आने वाले वर्षों में, वनविल की योजना सभी 19 जिलों में विस्तार करने की है। इस काम के लिए वनविल ट्रस्ट लोगों के व्यक्तिगत दान और ऑनलाइन क्राउड फंडिंग से पूंजी जुटाता है।