नई दिल्ली। विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर की परीक्षाएं आयोजित करने के यूजीसी के 6 जुलाई के निर्देश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है और अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब हर एक पक्ष को फैसले का इंतजार है। इससे पहले14 अगस्त को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं का पक्ष रख रहे वकील ने कहा कि पहले या दूसरे वर्ष के छात्रों की तरह अंतिम वर्ष के छात्रों का भी स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है।कोरोना काल में छात्रों को यातायात संबंधी परेशानी है। यही नहीं महाराष्ट्र के कई कॉलेज क्वारंटाइन केंद्र के तौर पर इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
सभी स्कूलों में एक जैसी सुविधा नहीं
एक अन्य याचिकाकर्ता के पक्ष में अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि देश भर के कॉलेजों में एक जैसी सुविधाएं नहीं हो सकतीं। कई कॉलेजों में पढ़ाई नहीं हुई है। दिल्ली और महाराष्ट्र की सरकारों ने परीक्षा रद्द करने का फैसला लेने से पहले अपने विश्वविद्यालयों के वीसी से सलाह मशविरा किया था जिन्होंने कहा था कि कई स्टूडेंट्स डिजिटली एग्जाम देने में असमर्थ हैं। सिंघवी ने कहा कि यूजीसी के 15 अप्रैल, 1 मई व 29 जून के दिशा-निर्देशों में कोविड-19 की महामारी की गंभीरता को समझा गया और विश्वविद्यालयों को परीक्षा कराने या न कराने की ढील दी गई थी।
यूजीसी ने परीक्षा के महत्व को बताया
इससे पहले गुरुवार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से अपने हलफनामे में उच्चतम न्यायालय से कहा था कि विद्यार्थी के ऐकेडिमिक करियर में अंतिम परीक्षा महत्वपूर्ण होता है और राज्य सरकार यह नहीं कह सकती कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर 30 सितंबर तक अंत तक विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों से परीक्षा कराने को कहने वाले उसके छह जुलाई के निर्देश बाध्यकारी नहीं है। यूजीसी ने कहा कि छह जुलाई को उसके द्वारा जारी दिशा-निर्देश विशेषज्ञों की सिफारिश पर अधारित हैं ।
महाराष्ट्र सरकार की भी तरफ से दायर है याचिका
महाराष्ट्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे पर जवाब देते हुए यूजीसी ने कहा, ''एक ओर राज्य सरकार (महाराष्ट्र) कह रही है कि छात्रों के हित के लिए शैक्षणिक सत्र शुरू किया जाना चाहिए, वहीं दूसरी ओर अंतिम वर्ष की परीक्षा रद्द करने और बिना परीक्षा उपाधि देने की बात कर रही है। इससे छात्रों के भविष्य को अपूरणीय क्षति होगी। इसलिए यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार के तर्क में दम नहीं है।