Akhilesh Yadav:'हिन्दुत्व' की धार से विवश हुए अखिलेश यादव पहुंचे चाचा शिवपाल सिंह की शरण

इलेक्शन
आईएएनएस
Updated Dec 19, 2021 | 18:24 IST

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस गठबंधन से यादव वोटों की सपा और प्रसपा के लिए गोलबंदी तो होगी, साथ में शिवपाल यादव की राजनीतिक पार्टी भी मजबूत होगी। मुलायम के बाद शिवपाल ही ऐसे व्यक्ति है जो कि संगठन की जमीनी पकड़ रखते हैं। वह भाजपा विरोधी और कांग्रेस विरोधी गैंग को जुटान करने में माहिर खिलाड़ी थे।

Akhilesh Yadav Shivpal Singh
मुलायम के बाद शिवपाल ही ऐसे व्यक्ति है जो कि संगठन की जमीनी पकड़ रखते हैं 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सत्ता पाने के फिराक में जुटी समाजवादी पार्टी ने अपने वोटों सहजने के लिए सारे दांव-पेंच चलने शुरू कर दिए हैं। भाजपा ने अयोध्या, मथुरा के बाद काशी कॉरिडोर के बहाने जिस प्रकार से हिन्दुत्व की धार को तेज किया है, ऐसे में अखिलेश के सामने अपने चाचा की शरण में जाकर वोटों को बिखराव को रोकने की कवायद करनी पड़ी है।

मुलायम जब अन्य संगठन के कार्यों में व्यस्त रहते थे, तब वो इनकी गोलबंदी करते थे। बताया जा रहा है कि शिवपाल यादव का पश्चिम उत्तर प्रदेश, अवध व बुंदेलखंड की कई दर्जन सीटों पर प्रभाव है। सपा के साथ आने से इन सीटों पर सपा को सीधे फायदा होगा। संगठन में भी उनकी पैठ है। साथ ही उनकी सहकारी समितियों में भी गहरी पकड़ है। इसका भी फायदा सपा को मिलेगा।

अखिलेश ने अपने वोटों के विभाजन को रोकने के लिए अपने चाचा शिवपाल संग गठबंधन की घोषणा की

भाजपा ने भी 2022 के चुनाव के लिए अयोध्या में राममंदिर के बाद मथुरा की तान छेड़ रखी है। अभी हाल में प्रधानमंत्री ने काशी कॉरिडोर के लोकार्पण में गेरूआ वस्त्र धारण कर गले में रूद्राक्ष धारण किए हुए। गंगा स्नान और फिर हिन्दुत्व से ओत प्रोत भाषण कर पार्टी के लिए जमीन बनाने की बड़ी कोशिश की हैं जिसका संदेश बहुत दूर तलक गया है। इसी के बाद से अखिलेश अपने वोटों के विभाजन को रोकने के लिए अपने चाचा शिवपाल के शरण में पहुंचे और गठबंधन की घोषणा कर दी है।

चाचा के अलग रहने से वोटों के बटवारे भय सता रहा था

सपा ने जातीय गोलबंदी के लिए छोटे-छोटे दलों से पूरब से लेकर पश्चिम तक गठबंधन रखा है। लेकिन फिर चाचा के अलग रहने से वोटों के बटवारे भय सता रहा था। उन्हें यह भी डर था कि चाचा के पार्टी में आने से कहीं एक बार फिर माहौल न बदल जाए। इसीलिए शिवपाल की बार-बार चेतावनी के बावजूद भी वह उनके पास नहीं जा पा रहे थे। लेकिन भाजपा के धार्मिक एजेंडे की मजबूती को देखते हुए वह एक बार अपने चाचा के दर पर पहुंचने को मजबूर हो गये।

मुलायम सिंह के बाद संगठन की नब्ज को शिवपाल ही समझते रहे हैं

समाजवादी पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि मुलायम सिंह के बाद संगठन की नब्ज को शिवपाल ही समझते रहें हैं। अपनी पार्टी बनाने से पहले संगठन से लेकर टिकट तक उनका बड़ा दखल रहा है। इसकी कमी साफतौर से 2019 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिली थी। वोटों का बड़ा बिखराव हुआ था। इस कारण सपा को कई सीटों पर इस खमियाजा भुगतना पड़ा था। इस लड़ाई में रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव चुनाव हार गए थे। समाज में भी अच्छा संदेश नहीं जा रहा था। बार-बार परिवारिक विवाद को लेकर अखिलेश सत्तारूढ़ दल से भी घिरते रहे हैं। अखिलेश इस बात को समझ रहे थे इसी कारण वह चाचा की शरण में पहुंच गये।

चुनाव में सपा से गठबंधन और विलय को लेकर प्रसापा प्रमुख शिवपाल उन्हें कई बार चेतावनी दे रहे थे

यूपी की राजनीति में दशकों से पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि यूपी विधानसभा चुनाव में सपा से गठबंधन और विलय को लेकर प्रसापा प्रमुख शिवपाल उन्हें कई बार चेतावनी दे रहे थे। लेकिन सपा मुखिया अखिलेश यादव कहीं न कहीं इसे टाल रहे थे। उन्हें डर था शिवपाल जमीन से जुड़े हैं। कार्यकर्ता शिवपाल के करीब हो जाएंगे। शिवपाल की पार्टी और जाति में भी अच्छी पकड़ मानी जाती है। ऐसे में अखिलेश के नेतृत्व को फिर कहीं गृहण न लग जाए। हालांकि, मोदी की इस लाइन को लेना हिन्दुत्व के धार को तेज कर देना अखिलेश को विवश कर रहा था कि वह सारे भय भूल कर सबको साथ लेकर चलें और वोटों के विभाजन को रोकें।

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