नई दिल्ली: वैसे तो उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में जातिगत समीकरण ही मायने रखते हैं। लेकिन भाजपा जातिगत समीकरण को साधने के अलावा एक ऐसे वोट बैंक पर दांव लगाने की कोशिश कर रही है। जिसके जरिए वह सभी जातियों में सेंध लगाना चाहती है। जिससे कि विपक्षी दलों के गठबंधन को मात दे सके। पार्टी का इसके जरिए केंद्र और राज्य की योजनाओं पर भरोसा है, जिसने उसे 2017 से प्रमुख रूप से लागू किया है।
कौन सी है योजनाएं
चलेगा दांव
राजनीतिक विश्लेषक से लेकर भाजपा के अंदर भी यह मानना है कि 2019 में 300 से ज्यादा सीटें मिलने में कल्याणकारी योजनाओं का बड़ा हाथ रहा है। और ऐसा ही फायदा एक बार मिल सकता है। अगर ऐसा होता है तो भाजपा को जातिगत समीकरण में सेंध लगाकर एक नए वोट बैंक का साथ मिल सकता है। खैर यह तो 10 मार्च के परिणामों से साफ होगा।
यूपी के जातिगत समीकरण
उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर जातीय समीकरणों को देखा जाय तो पहले नंबर पर पिछड़ा वर्ग, दूसरे नंबर पर दलित और तीसरे नंबर पर सवर्ण और चौथे नंबर पर मुस्लिम समुदाय आता है। प्रदेश में ओबीसी वोटर्स की संख्या सबसे अधिक 40 फीसदी से ज्यादा है। वहीं दलित वोटरों की संख्या करीब 22 फीसदी है। वहीं सवर्ण जातियां करीब 18 से 20 फीसदी है। इसके साथ ही मुस्लिम वोटर भी 17 से 18 फीसदी है।
यूपी में वोटिंग से पहले सीएम योगी बोले- विजय सुनिश्चित, ट्वीट की पीएम मोदी के साथ 'नई तस्वीर'