नई दिल्ली: राज्य की करीब 40 फीसदी सीटों वाले पूर्वांचल में सत्ता की बिसात बिछ गई है। भाजपा ने जहां ज्यादातर पुराने चेहरों पर दांव लगाकर सोशल इंजीनियरिंग की कोशिश की है, वहीं समाजवादी पार्टी ने भाजपा के 2017 के साथियों को तोड़कर, उसे ओबीसी और ब्राह्मण विरोधी साबित करने का दांव खेला है। क्षेत्र की 150 से ज्यादा सीटें सीधे तौर पर सत्ता की कुर्सी पर पहुंचाती हैं। पूर्वांचल पार्टियों के लिए कितना अहम है यह इसी बात से साबित हो जाता है कि खुद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ गोरखपुर से मैदान में उतरकर पूर्वांचल को साधने की कोशिश में हैं। वहीं अखिलेश यादव ने ओम प्रकाश राजभर, कृष्णा पटेल, स्वामी प्रसाद मौर्य, राम अचलभर , लालजी वर्मा, विनय शंकर तिवारी जैसे नेताओं के जरिए भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश की है। भाजपा को पूर्वांचल में पिछली बार करीब 120 सीटें मिली थीं।
ये इलाके बेहद अहम
पूर्वांचल में किसी राजनीतिक दल की हवा तय करने में गोरखपुर, बनारस, आजमगढ़, मऊ, प्रतापगढ़, बलिया, पडरौना जैसे जिले अहम भूमिका निभाते हैं। गोरखपुर से जहां महाराजगंज, संत कबीर नगर , देवरिया, पडरौना, सिद्धार्थ नगर, बस्ती, बलरामपुर, गोंडा पर असर पड़ता है। वहीं बनारस से जौनपुर,मिर्जापुर, पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इसी तरह आजमगढ़, मऊ, बलिया, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ से राजनीतिक फिजा तय होती है।
भाजपा ने साधे जातीय समीकरण
भाजपा ने अब तक 355 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान किया है। रविवार को जारी लिस्ट में पार्टी ने बलिया के बैरिया से विधायक सुरेंद्र सिंह और आजमगढ़ के फूलपुर पवई से विधायक अरुणकांत यादव का टिकट काट दिया है। टिकट कटने के बाद विधायक सुरेंद्र सिंह बागी हो गए हैं और बोले कि टिकट नहीं मिलने पर ऐसा थोड़ी है कि चुनाव नहीं लड़ूंगा। उनकी जगह मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला को टिकट मिला है। वहीं शहर सीट से प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह को टिकट मिला है।
दयाशंकर सिंह अपनी पत्नी के साथ लखनऊ की सरोजनी नगर सीट से टिकट की उम्मीद लगाए बैठे थे। वहीं बनारस से 5 मौजूदा विधायकों पर पार्टी ने फिर से भरोसा जताया है। इसी तरह गोरखपुर शहर से खुद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ, पनियरा से फतेह बहादुर सिंह के चिल्लूपार से राजेश त्रिपाठी और पडरौना से आरपीएन सिंह के करीबी मनीष जायसवाल को टिकट दिया है। इसी तरह बलिया, गाजीपुर, आजमगढ़, मऊ, चंदौली, भदोही, मिर्जापुर और वाराणसी की सीतों पर पिछड़ी जाति के सात, छह ब्राह्मण, दो भूमिहार, तीन राजपूत और एक कायस्थ को मौका दिया गया है। इसके अलावा निषाद पार्टी और अनुप्रिया पटेल की अगुआई वाले अपना दल के साथ गठबंधन पार्टी निषाद और कुर्मी वोटर को लुभाने की कोशिश में है।
अखिलेश चल रहे हैं ब्राह्मण और पिछड़ा विरोधी दांव
इस चुनाव में अखिलेश यादव ने खास तौर से पूर्वांचल में भाजपा को मात देने के लिए ब्राह्मण विरोधी और पिछड़ा विरोधी का दांव चला है। वह बार-बार यही कहते हैं कि भाजपा और खास तौर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ब्राह्मण विरोधी, ठाकुरवाद की राजनीति करने वाले और पिछड़ा विरोधी हैं। इसीलिए उन्होंने गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ के विरोधी रहे हरिशकंर तिवारी के परिवार के बेटे विनय शंकर तिवारी और उनके भांजे गणेश शंकर पांडे को सपा में शामिल कर, ब्राह्मणों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है।
हालांकि भाजपा ने एक बार फिर चिल्लूपार से राजेश त्रिपाठी पर भरोसा जताया है और विनय शंकर तिवारी के खिलाफ उन्हें उतार दिया है। राजेश त्रिपाठी से विनय शंकर तिवारी चुनाव में शिकस्त खा चुके हैं। इसी तरह ओम प्रकाश राजभर अपनी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल की कृष्णा पटेल और स्वामी प्रसाद मौर्य के जरिए ओबीसी वोटरों में सेंध लगाने की कोशिश की है। हालांकि टिकट वितरण को लेकर अपना दल से थोड़ी खटास भी आ गई है। साफ है कि भाजपा और सपा पूर्वांचल को साधने का कोई भी कसर नहीं छोड़ रहे हैं। अब देखना है कि 2022 में पूर्वांचल किसे विजय रथ पर बैठाता है।
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