नई दिल्ली: लगता है भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों के गठबंधन की काट के लिए अपना एजेंडा सेट कर लिया है। और वह है, कैराना पलायन और मथुरा के जरिए हिंदू मतदाताओं को एकजुट करना है। पिछले 20 दिनों में चाहें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हो या गृहमंत्री अमित शाह, उन्होंने कैराना पलायन और सपा के समय के हुए दंगों की याद पश्चिमी यूपी पहुंचकर वहां की जनता को जरूर याद दिलाई है। और इस रणनीति में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने मथुरा का जिक्र कर साफ कर दिया है कि भाजपा हिंदू वोटर को एकजुट कर पश्चिमी यूपी में अपनी नैया पार करना चाहती है।
सपा के समय हुए दंगे की याद दिलाती रहती है भाजपा
बीते 9 नवंबर को मुख्यमंत्रीआदित्यनाथ कैराना में पहुंचे थे। वहां उन्होंने कहा था कि जो अराजकता करने की कोशिश करेगा,दंगा करेगा, उसकी आने वाली पीढ़ियां भूल जाएंगी कि दंगे कैसे होते हैं। उन्होंने एक बच्ची से भी पूछा अब कोई डर नहीं है न ! दावा यह है कि अब 2016 में जिन परिवारों ने एक विशेष समुदाय के डर से अपने घरों को छोड़ा था, वह अब घर वापसी कर रहे हैं। और टाइम्स नाउ नवभारत को दिए इंटरव्यू में भी मुख्यमंत्री ने कहा कि 2012-2017 के समय प्रदेश में 300 दंगे हुए थे। जिसमें से ज्यादातर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए।
और इसके बाद 2 दिसंबर को सहारनपुर में मां शाकुंभरी देवी राज्य विश्वविद्यालय का शिलान्यास करने के लिए पहुंचे गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दंगे और सपा के शासन काल की याद दिलाते हुए कहा कि एक समय था जब यहां न केवल दंगे होते थे बल्कि हमारी बेटियों को भी पढ़ाई के लिए दूसरे राज्यों में भेजना पड़ता था क्योंकि यहां कोई सुरक्षा नहीं थी। आज पश्चिमी यूपी में किसी भी बेटी को पढ़ाई के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता है। कोई भी उनके साथ दुर्व्यवहार करने की हिम्मत नहीं करता।
क्या है कैराना मुद्दा
कैराना मुद्दे को समझने के लिए 2017 के यूपी विधान सभा चुनाव के पहले 2016 के घटनाक्रम पर नजर डालाना होगा। मई 2016 में भाजपा के तत्कालीन सांसद हुकूम सिंह ने दावा किया कि भय के कारण कैराना से हिंदुओं का पलायन हो रहा है। इसको साबित करने के लिए उन्होंने 346 परिवारों की एक सूची भी पेश की। यही नहीं भाजपा नेताओं ने दावा किया कि कैराना कश्मीर बनता जा रहा है। इसके बाद यह मामला ऐसा सुर्खियों में आया कि भाजपा के लिए 2017 के चुनाव में मौजूदा समाजवादी पार्टी की सरकार के खिलाफ ट्रंप कार्ड बन गया। और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब 80 फीसदी सीटें भाजपा ने जीत ली।
अब योगी सरकार यह दावा कर रही है कि उसके शासनकाल में न केवल कैराना से पलायन करने वाले हिंदू वापस घर लौटे बल्कि अब प्रदेश में कानून-व्यवस्था के कारण कोई दंगे नहीं होते है। पिछले साढ़े चार साल में योगी सरकार का दंगों के मामले में रिकॉर्ड अच्छा रहा है। और इस दौरान प्रदेश में कोई दंगे नहीं हुए हैं।
पश्चिमी यूपी में कैराना से कैसे मिलेगा फायदा
पश्चिमी यूपी की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक रक्षित के अनुसार, 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद से गांवों से बड़ी संख्या में मुसलमान कस्बों में आकर बसने लगे थे। इसकी वजह से पश्चिमी यूपी के हर जिले में 4-5 कस्बे ऐसे मिल जाएंगे, जहां पर मुस्लिम आबादी, हिंदुओं की तुलना में ज्यादा है। मसलन बिजनौर में ही चांदपुर, निंदूड़, नूरपुर ऐसे इलाके हैं। ऐसे में कैराना का मुद्दा उठा तो इन इलाके के लोगों में यह भावना घर कर गई कि मुस्लिम आबादी बढ़ती जा रही है। और इसी का भाजपा को 2017 के चुनावों में फायदा मिला।
मथुरा मुद्दे का कैसे असर
इसके पहले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी अचानक ऐसे मुद्दे पर ट्वीट कर दिया। जिस पर भाजपा सीधे बोलने से बचती रही है। उन्होंने लिखा कि अयोध्या काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है ,मथुरा की तैयारी है । जाहिर है चुनावों से पहले भाजपा मथुरा का मुद्दा उठाकर हिंदू वोटरों को एक जुट करना चाहती है। मथुरा का मुद्दा गरम कर भाजपा पश्चिमी यूपी में हिंदू वोटरों के साध सकती है।
विकास परियोजनाओं पर भी जोर
कानून व्यवस्था, कैराना पलायन के साथ भाजपा युवा मतदाताओं को खास तौर से अपनी विकास योजनाओं के जरिए लुभाना चाहती है। इसलिए चाहे अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय और सहारनपुर में मां शाकुंभरी देवी विश्व विद्यालय हो या फिर जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट, इन प्रोजेक्ट के शिलान्यास के जरिए वह बदलते यूपी की छवि को भी पेश करना चाहती है। और इसी कड़ी सरकार की कोशिश है कि मेरठ से शुरू होने वाले गंगा एक्सप्रेस-वे का भी शिलान्यास आचार संहिता लगने से पहले कर दिया जाय।
पश्चिमी यूपी जातिगत समीकरण
पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन के बाद जाट और मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए अखिलेश यादव और जयंत चौधरी गठबंधन कर 2017 के समीकरण को उलटना चाहते हैं। यहां पर बड़ी संख्या में दलित वोटर भी है, जो बसपा का बड़ा वोट बैंक हैं। इन राजनीतिक समीकरणों के बीच भाजपा 2017 जैसे कारनामे के लिए नए एजेंडे पर काम कर रही है। अब देखना है कि उसे पिछली बार की तरह 120 सीटों में से एक बार फिर 90 सीटों के करीब मिलती हैं, या फिर किसान आंदोलन और विपक्ष का गठबंधन मंसूबे पर पानी फेर देगा।