दारा सिंह चौहान, 12 जनवरी तक योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। लेकिन अब वो सरकार और बीजेपी के हिस्सा नहीं हैं। चुनाव से ऐन पहले उन्हें महसूस हुआ कि जिस गरीब, दलित शोषित वंचित समाज के लिए वो बीजेपी और सरकार का हिस्सा बने थे उस समाज की बात नहीं सुनी गई हालांकि यह सबकुछ समझने में वो पौने पांच साल लग गए। लेकिन सवाल यह है कि क्या उनकी बातों में दम है। सबसे पहले आपको यह समझने की जरूरत होगी कि दारा सिंह चौहान की राजनीतिक यात्रा की प्रकृति कैसी रही है।
बीएसपी छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे दारा सिंह चौहान
2 फरवरी 2015 को दारा सिंह चौहान बीएसपी छोड़कर बीजेपी में शामिल होते है और उनका रेड कार्पेट वेलकम होता है। जिस सामाजिक न्याय को जमीन पर उतारने में वो नाकाम रहे उसे अमलीजामा पहनाने के लिए बीजेपी ने अपने ओबीसी मोर्चे का अध्यक्ष बनाया और 2017 के विधानसभा चुनाव में मधुबन विधानसभा से टिकट भी दिया। मधुबन विधानसभा सीट से उन्हें करीब 30 हजार मतों से जीत हासिल हुई और उसका इनाम बीजेपी ने मंत्री बनाकर दिया। लेकिन पौने पांच साल तक शासन में बने रहने के बाद उन्हें महसूस हुआ कि सामाजिक न्याय को धरातल पर उतारने की कोशिश पर बीजेपी ब्रेक लगा रही है और अपने लिए नया रास्ता तलाशना शुरू कर दिया और उस रास्ते की मंजिल समाजवादी पार्टी पर जाकर रुक गई।
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बीएसपी से हुई थी एंट्री
बीजेपी में शामिल होने से पहले वो बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर चेहरों में से एक थे। राजनीति की मुख्य धारा में दारा सिंह चौहान की एंट्री बहुजन समाज पार्टी के जरिए होती है।1996 में वो राज्यसभा का सांसद बनते हैं और 2000 में दूसरी बार उन्हें मौका मिलता है, 2009 में वो घोसी लोकसभा से सांसद चुने जाते हैं।लेकिन 2014 के चुनाव में वो हरिनारायण राजभर से चुनाव हार जाते हैं और उसके बाद वो सामाजिक न्याय और बीएसपी सुप्रीमो मायावती की शोषणकारी सोच का हवाला देते हुए नए राजनीतिर सफर पर चल पड़ते हैं और ठिकाना भारतीय जनता पार्टी होती है। लेकिन 2017 से 2022 में सरकार में रहने के बाद उन्हें लगा कि अपने समाज के लिए जितना कुछ उन्हें करना चाहिए था उतना वो नहीं कर सके और उनके मकसद को पूर्ण करने में अगर कोई पार्टी सहायक होगी तो वो समाजवादी पार्टी होगी।
क्या सोचती है मऊ की जनता
अब सवाल यह है कि दारा सिंह के इस फैसले पर मऊ, मधुबन विधानसभा की जनता क्या सोचती है। मधुबन के लोगों ने कहा कि दारा सिंह चौहान के फैसले से आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उनके लिए कुर्सी पहले है, सामाजिक न्याय की आड़ में वो अपने फैसले को सही ठहराते हैं लेकिन जनता सबकुछ समझती है। जहां तक समाजवादी पार्टी में जाने का सवाल है तो उन्हें इस बात का अहसास हो चुका था कि इस दफा भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर उनका राजनीतिक भविष्य सुरक्षित नहीं है लिहाजा उन्होंने पाला बदल किया। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इस बात की संभावना है कि वो इस बार मधुबन की जगह घोसी विधानसभा से किस्मत आजमाएं क्योंकि वहां का राजनीतिक समीकरण उन्हें एक बार फिर लखनऊ तक पहुंचा सकता है।