इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देश में बढ़ते हुए कोविड के मामलों को देखते हुए राजनीतिक पार्टियों से अपील करते हुए कहा था कि देश में चुनावों की तारीखों को आगे बढ़ाया जाए, जो देशहित में होगा। सिर्फ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ही नहीं बल्कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी उत्तराखंड को चेताया और उचित कदम उठाने को कहा। हालांकि कोर्ट की बातों को राज्यों से सरे से दरकिनार कर दिया. चुनाव को लेकर यूपी, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब, मणिपुर इन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
इन राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान भी चुनाव आयुक्त ने कर दिया। इसी के साथ ये तय हो गया कि भले ही कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन चुनाव सही समय पर होना उससे कहीं अधिक आवश्यक है। इस लेख को लिखने से पहले मैनें कई एक्सपर्ट से बात की, बातचीत के दौरान उन सभी का कहना था कि शायद इन राज्यों के लिए इस समय जब लोगों की बाजुओं में वैक्सीन से ज्यादा उंगली पर स्याही लगवाना उचित लग रहा है। सवाल तो मेरे मन में भी उपजा कि क्या कोर्ट की बातों और मौजूदा हालात को देखते हुए चुनाव को टाला नहीं जा सकता था।
चुनाव की तारीखों का ऐलान करने से पहले एक ज़िम्मेदार अधिकारी की तरह मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा ने पहले ऐसे हालात में चुनाव कराए जाने के सवाल पर जवाब देते हुए शायराना अंदाज़ में नज़र आए। सुशील चंद्रा ने कहा, 'यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट लेकर भी चिराग जलता है।' मतलब साफ है कि महामारी से लड़ो और अपने उम्मीदवार के लिए मतदान करो ।
वैसे कोरोना के हालात को आज देश का छोटा बच्चा भी समझ रहा है । कोविड के बढ़ते मामले बाज़ार के बढ़ते आंकड़े नहीं हैं, जिन्हें देश के जानकारों और एक्सपर्ट के ज़रिए ही समझा जा सकता है । बहरहाल मैं यहां आपको बताते चलूं कि खुद एक ज़िम्मेदार अधिकारी की तरह मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा ने ही इन पांचों राज्यों में कोरोना के हालात के बारे में बताया। यूपी में लगभग पचास प्रतिशत आबादी को कोरोना का दोनों टीका लगा है. सिर्फ गोवा में 90 प्रतिशत से अधिक लोगों को कोरोना का दोनों टीका लगा है बाकि सभी राज्यों में हाल बेकार है । चुनाव की इन तारीखों के ऐलान के साथ मन में वो मज़ाकिया संदेश भी याद आने लगे, जो लोगों ने बातचीत में कई मर्तबा कहा कि जहां चुनाव होता है वहां कोरोना नहीं होता, ऐसा सरकार मानती है । खैर लोगों के इस मज़ाक को छोड़ भी दें, तो स्थिति सच में देश में भयावह है, ये किसी से छुपा नहीं है ।
पिछली बार याद है आपको जब उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए थे और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हुए थे, तो किस तरह से मौतों का आंकड़ा बढ़ा था । कोविड के मामलों और कोविड से हुई मौत का आंकड़ा सबके सामने था । शहरों से गांव में कोरोना का असली विस्फोट चुनाव के बाद ही हुआ था ।
वैसे आपको बता दें कि चुनाव से कई राजनीतिक पार्टियों ने केंद्र और सत्ताधारी पार्टी पर कोरोना काल में चुनाव को लेकर तंज कसा, लेकिन किसी ने भी चुनाव न करवाने या फिर रैलियों को न करने की अपनी तरफ से अगुवाई नहीं की । हालांकि खुद चुनाव आयोग ने ही 15 जनवरी तक किसी भी बड़ी रैली समेत कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं. हालांकि 15 जनवरी के बाद चुनाव आयोग की टीम के रिव्यू के बाद दोबारा से इसपर फैसला किया जाएगा ।
कई बार इस विषय से दिमाग हटाने के बाद भी बार-बार दिमाग उसी तरफ जा रहा है कि जब पूरी तरह से जनता वैक्सीनेट नहीं हुई है, तो चुनाव में मतदान करने जाने की इजाज़त कैसे, कई जगहों पर ये बातें सामने आई थीं अगर फुली वैक्सिनेटेड नहीं हैं, तो शराब, राशन आदि नहीं मिलेगा तो क्या चुनाव इन सब से ऊपर है? क्या तमाम राजनीतिक पार्टियों के लिए लोगों की ऊंगली पर स्याही लगाना वैक्सीन लगाने से कहीं ज्यादा ज़रूर हो गया है?