नई दिल्ली: जरा इन दो बयानों पर गौर करिए , पहला बयान गोवा विधान सभा चुनाव से पहले, सितंबर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री गोवा के लुइजिन्हो फलेरियो का है। उस वक्त फलेरियों ने तृणमूल कांग्रेस में शामिल होते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से टक्कर लेने के लिए देश को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी जैसी नेता की जरूरत है।
दूसरा बयान भी उसी मौके पर ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी का है। जब उन्होंने कहा "अगर कांग्रेस भाजपा के खिलाफ चुप रहना चुनती है, तो हमसे चुप बैठने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। हम बीजेपी को हराना चाहते हैं। पिछले सात सालों से भाजपा को तृणमूल कांग्रेस हरा रही है। और इस दौरान कांग्रेस को भाजपा ने हराया है।"
ये दो बयान तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के उस नेशनल प्लान का हिस्सा थे, जो वह मई 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा को पटखनी देने के बाद से देख रही है। उनकी कोशिश है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर 2024 के लिए विपक्ष का चेहरा बने। और इसी कड़ी में वह गोवा विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराने की उम्मीद से उतरी थी। उनकी रणनीति थी कि अगर तृणमूल कांग्रेस गोवा में अच्छा प्रदर्शन करती है, तो उनकी दावेदारी मजबूत होगी।
गोवा में फ्लॉप रहा शो
लेकिन जो तृणमूल कांग्रेस, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नाराज नेताओं को पार्टी में शामिल कर, गोवा में कांग्रेस का विकल्प बनना चाह रही थी। उसका गोवा में बेहद खराब प्रदर्शन रहा है। पार्टी 40 सीटों वाली विधानसभा में एक भी सीट नहीं जीत पाई। इन चुनावों में उसे केवल 5.21 फीसदी वोट मिले। जबकि तृणमूल कांग्रेस की तरह चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी ने 2 सीटें जीत ली। इन चुनावों में भाजपा को 20 सीटें और कांग्रेस को 11 सीटें मिली हैं। जाहिर है पार्टी के लिए गोवा का प्रदर्शन बड़े झटके वाला है।
इसके पहले नवंबर 2021 में हुए त्रिपुरा निकाय चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं रहा था। निकाय चुनावों में भाजपा ने 334 सीटों में से 329 सीटें जीती थी। हालांकि इन परिणामों पर तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा पर धांधली और डराने-धमकाने का आरोप लगाया था।
कांग्रेस के असंतुष्ट नहीं आए काम
ममता बनर्जी बंगाल चुनावों में जीत हासिल करने के बाद पूर्वोत्तर भारत और गोवा पर सबसे ज्यादा दांव लगाया । इस कड़ी में उन्होंने कांग्रस के असंतुष्ट नेताओं को अपने साथ जोड़ा । गोवा में जहां फलेरियों के साथ 10 कांग्रेस नेता पार्टी में शामिल हुए थे। वहीं असम से कांग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता सुष्मिता देव पार्टी से 30 साल पुराना नाता तोड़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गईं थी। ममता बनर्जी ने इसके अलावा त्रिपुरा में भी कांग्रेस को झटका दिया था। कांग्रेस के कई प्रमुख नेता तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए। जिसमें पूर्व मंत्री प्रकाश चंद्र दास, सुबल भौमिक, प्रणब देब, मोहम्मद इदरिस मियां, प्रेमतोष देबनाथ, बिकास दास, तपन दत्ता ममता के साथ हो गए हैं । हालांकि इन नेताओं के जरिए वह चुनाव में कोई कमाल नहीं दिखा पाई।
आम आमदी पार्टी की भी उम्मीदें बढ़ी
पंजाब में भारी बहुमत से चुनाव जीतने के बाद आम आदमी पार्टी भी अपने विस्तार की तैयारी में हैं। इसी के तहत हिमाचल प्रदेश में पंजाब जैसा सफल प्रदर्शन करने की योजना पर काम कर रही है। इसके अलावा हरियाणा में भी पार्टी फिर से अपने आधार को मजबूत करने की कोशिश करना चाहती है। जबकि उत्तराखंड और गोवा में वह पहले ही मैदान में उतर चुकी है। इसके अलावा गुजरात विधानसभा चुनाव पर भी पार्टी की नजर हैं। ये ऐसे राज्य हैं, जहां पर अभी ममता बनर्जी का कोई खास प्रभाव नहीं है। ऐसे में उनकी महत्वाकांक्षा के सामने आम आदमी पार्टी भी आने वाले दिनों में चुनौती बन सकती है। इसके अलावा शरद पवार ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। जो कि खुद ममता के लिए चुनौती बन सकते हैं।
ममता की ताकत बंगाल की 42 सीटें
इन चुनौतियों के बावजूद ममता बनर्जी की सबसे बड़ी ताकत पश्चिम बंगाल की 42 लोक सभा सीटें हैं। क्योंकि बंगाल में जिस तरह उनका प्रदर्शन है, वह 2024 के लिए यहां से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना चाहेंगी। क्योंकि कांग्रेस को छोड़कर दूसरे किसी विपक्षी दल में अभी यह ताकत नहीं है कि वह अकेले अपने दम पर 50 सीटों का आंकड़ा पार कर सके। खुद तृणमूल कांग्रेस को 2019 के लोकसभा चुनावों में 22 सीटें हासिल हुई थी। लेकिन गोवा के परिणामों से साफ हो गया है कि वह केवल असंतुष्ट नेताओं के भरोसा चुनावी नैया नहीं पार कर सकती हैं। और अब उनकी अगली परीक्षा त्रिपुरा और मेघालय के विधानसभा चुनावों से होगी।
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