पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन के बाद भी भाजपा ने कैसे जीत ली 75 सीटें, जानें इनसाइड स्टोरी

इलेक्शन
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Mar 11, 2022 | 14:21 IST

UP Election Result 2022: फ्री राशन, कानून व्यवस्था, पलायन, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के मुद्दे ने पश्चिमी यूपी में भाजपा को सपा-आरएलडी गठबंधन के मुकाबले कहीं ज्यादा सीटें दिलाई हैं। भाजपा ने पहले चरण में घटी सीटों की भरपाई दूसरे चरण में बड़ी जीत से पूरी की है।

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पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन का रहा जोर  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • इस बार भाजपा को पहले चरण 58 में से 28 सीटें और दूसरे चरण की 55  में से 47 सीटें मिली हैं।
  • 2017 के मुकाबले, इन दो चरणों में भाजपा को केवल 16 सीटों का नुकसान हुआ। 
  • किसान आंदोलन, आरएलडी-सपा गठबंधन के बाद ऐसी संभावना था कि गठबंधन भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचाएगा।

UP Election Result 2022: बीते 19 नवंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2020 में संसद से पारित तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। तो उस वक्त, फरवरी 2022 में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को देखते हुए इसे दो नजरिए से देखा गया था। एक पक्ष जहां इसे प्रधानमंत्री का मास्टर स्ट्रोक मान रहा था। वहीं विपक्ष दलों और किसान नेताओं का कहना था कि भाजपा ने बहुत देर कर दी है। और उसका यूपी के पश्चिमी क्षेत्र में बड़ा असर होगा। हालात यह होंगे कि भाजपा का सफाया हो जाएगा। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और भाजपा को पहले दो चरण की 113 सीटों में से 75 सीटों पर जीत हासिल हुई। जबकि पिछले बार उसे 91 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। साफ है कि तीन कृषि कानूनों की वापसी योगी सरकार के लिए मास्टर स्ट्रोक बन गया। और किसान-जाट-मुस्लिम समीकरण का विपक्षी दांव फेल हो गया। 

इस तरह भाजपा ने जीती सीटें

पहले और दूसरे चरण के चुनाव में किसान आंदोलन के प्रभाव वाली सबसे ज्यादा 113 सीटें थी । भाजपा ने 2017 में पहले चरण की 58 सीटों में से 53 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि दूसरे चरण में 55 सीटों में से 38 पर जीत हासिल की थी। यानी कुल 113 सीटों में से भाजपा को 91 सीटें मिली थी। जबकि इस बार भाजपा को पहले चरण 58 में से 28 सीटें और दूसरे चरण की 55  में से 47 सीटें मिली हैं। इन दो चरणों में भाजपा को केवल 16 सीटों का नुकसान हुआ। 

पहले चरण की भरपाई दूसरे चरण में 

नतीजों से साफ है कि भाजपा को पहले चरण में 25 सीटों का नुकसान हुआ है। इस चरण में किसान राजनीति का प्रमुख केंद्र रही मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, कैराना,शामली, बुढ़ाना, चरथावल, खतौली, बड़ौत, छपरौली, सरधना जैसी जाट बहुल विधानसभा सीटें आती हैं। जिसमें से जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल ने 7 सीटें जीती है। जबकि समाजवादी पार्टी को 21 सीटें मिली हैं। साफ है कि भाजपा को पहले चरण में भारी नुकसान हुआ है। लेकिन उसकी भरपाई दूसरे चरण की 55 में से 47 सीट पर जीत हासिल कर हो गई है। भाजपा को दूसरे चरण में 2017 के मुकाबले 9 सीटों का फायदा हुआ है।

अखिलेश-जयंत-केशव क्यों नहीं कर पाए कमाल

असल में अखिलेश यादव, जयंत चौधरी और महान दल के केशव प्रसाद मौर्य ने जाट, मुस्लिम, दलित और ओबीसी दल के वोटरों को साधने के लिए  मिलकर चुनाव लड़ा था। उन्हें उम्मीद थी कि ये जातिगत समीकरण भाजपा को पटखनी देंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। जबकि पश्चिमी यूपी में 17 फीसदी जाट मतदाता, 25 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। जबकि 21 फीसदी दलित मतदाता है। ऐसे में सारे समीकरण पक्ष में होने के बावजूद क्यों नहीं कमाल कर पाए। तो उसको समझने के लिए बागपत के रहने वाले राज कुमार की बातों को समझना होगा। जिन्होंने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से चुनाव परिणाम से पहले कहा था 'दो साल से फ्री में खाना मोदी और योगी दिए हैं। सड़के बनवाई है, रात में 10 घंटे ट्यूबल पर खेतों के लिए पानी आता है और घर की महिलाएं और बच्चे रात में भी बेधड़क घूम-फिर सकते हैं।' ऐसी ही बातें कैराना के पास नूह कस्बे के रहने वाले विवेक कुमार भी कहते हैं। उनका कहना है पिछले 5 साल में दिल्ली-सहारनपुर से लेकर, कैराना के आस-पास इतनी सड़कें बनी हैं कि जो कि पहले कभी नहीं हुआ। इसकी वजह से वह नूह में दोपहिया वाहनों की डीलरशिप ले सके, पहले तो ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं था कि इस तरह का बिजनेस शुरू किया जा सके।'

उम्मीदवारों को लेकर नाराजगी

राष्ट्रीय लोक दल के एक नेता ने टाइम्स नाउ नवभारत से कहा कि देखिए यह गठबंधन कागज पर जितना मजबूत था, उतना जमीन पर उम्मीदवारों के चयन की वजह से नहीं हो पाया। इसकी  जह यह है कि रालोद को वैसे तो 40 सीटें दी गई। लेकिन टिकट वितरण में कई सपा नेताओं को रालोद के टिकट पर उतारा गया इसके अलावा जहां जाट आबादी ज्यादा थी, वहां मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था। जिसकी वजह से जाट वोट ट्रांसफर नहीं हुआ। इसके अलावा युवा वोटरों में भाजपा के प्रति लगाव है। इसलिए सारे वोट गठबंधन को ट्रांसफर नहीं हुए।

भाजपा ने इस पर लगाया दांव

भाजपा ने अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के गठबंधन की काट मथुरा जन्मभूमि, कैराना पलायन, अपराध नियंत्रण, विकास योजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास के जरिए तोड़ने की कोशिश की। इसके अलावा पार्टी ने  पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की  नाराजगी दूर करने के लिए ट्रैक्टर रैली भी निकाली है। निजी ट्यूबवेल के लिए चुनाव से पहले बिजली दरें भी 50 फीसदी घटाई। इसके अलावा गन्ना के राज्य परामर्श मूल्य में करीब साढ़ें तीन साल बाद 25 रुपये की बढ़ोतरी भी योगी सरकार ने की। साथ ही महिला, युवा, अनुसूचित, पिछड़ा, किसान सम्मेलन भी किए गए। साथ ही गुर्जर, जाटव वोटों को भी अपने पाले में लाने के लिए भाजपा ने खास रणनीति पर फोकस किया। जिसका फायदा इन सीटों पर मिलता दिखा है।

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