Chandra Shekhar Azad Interview: उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित नेता के रूप में उभरे आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद, चुनावों में गोरखपुर सदर सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चुनौती दे रहे हैं। उन्होंने गोरखपुर की सीट क्यों चुनी, अखिलेश यादव से क्यों बिगड़ गई बात और नई परिस्थितियों में उनकी क्या संभावनाएं हैं और उनकी भविष्य की राजनीति की दिशा क्या होगी ? इन सब मसलों पर उन्होंने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बात की है। पेश हैं उनके साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश:
सवाल- पहले तो आप सपा गठबंधन के साथ जाने वाले थे, लेकिन अब अकेले लड़ रहे हैं, क्या चुनौती है ?
जवाब- देखिए हमारी पार्टी ने पहला चुनाव बुलंदशहर में उप चुनाव में लड़ा था। और उस चुनाव में सपा-आरएलडी मिलकर चुनाव लड़ रहे थे। उस समय गठबंधन का प्रत्याशी 5 वें नंबर पर आया था। और कांग्रेस चौथे पर नंबर थी। जबकि हम तीसरे नंबर पर थे। उस समय से हम तैयारी कर रहे हैं। बूथ तक हमारा संगठन है। जैसे-जैसे हमारे प्रत्याशी घोषित हो रहे हैं, हमारी बात भी लोगों तक पहुंच रही है। हमने प्रयास किया था कि भाजपा को रोकने के लिए मजबूत मोर्चा बन जाय। लेकिन किन्ही कारणों से बात नहीं बन पाई। हम वैशाखियों के सहारे नहीं मेहनत से आगे बढ़ रहे हैं। पिछले 5 साल से प्रदेश में भाजपा से अगर कोई मुकाबला कर रहा है, तो हम है। इसी का परिणाम है कि जिला पंचायत चुनाव में भी सैकड़ों प्रत्याशी जीत कर आए। हम विधानसभा सीटों में इसी तरह परिणाम लेकर आएंगे।
सवाल: लेकिन भाजपा, सपा गठबंधन जैसे मजबूत दलों को आप कैसे चुनौती देंगे
जवाब: नई पार्टी के लिए कई तरह की चुनौतियां रहती है। लेकिन हमारी मेहनत उन चुनौतियों से पार पाएंगी। जहां तक लड़ने की बात है तो हमने 40 छोटे दलों के साथ गठबंधन कर सामाजिक परिवर्तन मोर्चा मनाया है। जो कि सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। हम 5 जनवरी तक फाइनल लिस्ट तैयार कर लेंगे।
सवाल- सामाजिक परिवर्तन मोर्चे में कौन से दल शामिल हैं
जवाब- देखिए इसमें जातिगत समीकरण को ध्यान रखकर मोर्चा बनाया गया है। इसमें अति पिछड़ी जातियां, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक समुदाय, सिख, बुद्ध, जैन, किसान, कुशवाहा, पाल, प्रजापति, मौर्य, धनखड़, धानुख, कटेरिया, चौहान, निषाद, कश्यप समाज के लोग, पीस पार्टी, भागीदारी संकल्प मोर्चे के बाबू राम पाल, उलेमा काउंसिल आदि शामिल हैं। ये वह लोग हैं, जो गांव-गांव तक संगठन की पकड़ रखते हैं। इनके साथ मिलकर हम मजबूत चुनौती देंगे।
सवाल- क्या ये तैयारियां बड़े दलों से निपटने के लिए काफी होंगी।
जवाब- देखिए सही मायने में अब यह लोकतंत्र नहीं रह गया है। अब राज करने के लिए झूठे वादे, छल , मुफ्त खोरी, डराने-धमाकने वाले, पैसे वाले लोग राजनीति कर रहे हैं और गरीब लोग वोटर बनकर बाहर से देख रहे हैं। इसी के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया है। और मेहनतकश लोगों को हमने बड़े पैमाने पर टिकट दिया है। चुनाव संगठन से लड़ा जाता है। और जिस तरह लगातार भीम आर्मी जमीन पर संघर्ष करती आई है। उससे साफ है कि हम चुनाव में बड़ी चुनौती देने वाले हैं।
सवाल- आप किस तरह लोगों तक पहुंच रहे हैं
जवाब- देखिए एक तरफ अमीरों की राजनीति है, दूसरी तरफ लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए गरीबों की राजनीति है। हम कांशीराम के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। एक नोट एक वोट सिद्धांत के जरिए, हमारे कार्यकर्ता साइकिल और मोटरसाइकिल से लोगों तक पहुंच रहे हैं। लोगों को यह भी बता रहे हैं कि अगर आप पैसे वालों को मजबूत करेंगे तो वह राजनीति को व्यापार बना देंगे। परिवारवाद, सामंतदावद के हम खिलाफ हैं। आप हमें मौका देंगे तो क्षेत्र का विकास रहे हैं।
सवाल- फिर सपा के साथ गठबंधन की कोशिश क्यों
जवाब- हमारा प्रयास था कि भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष के बिखराव की वजह से मौका नहीं मिलना चाहिए। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी धन बल, ध्रुवीकरण, पाकिस्तान, धर्म, कब्रिस्तान की राजनीति करती है। सरकारी मशीनरी की मिलीभगत से हमारे खुर्जा, मेरठ, हापुड़ में हमारे प्रत्याशियों के पर्चे खारिज कर दिए गए। हमने चुनाव आयोग से शिकायत की है। हम कोर्ट भी जा रहे हैं। भाजपा यही सब करती है लेकिन इससे विकास नहीं होता है। इसलिए हम गठबंधन की कोशिश कर रहे थे लेकिन यह विकल्प तैयार नहीं हो पाया। इसलिए हमने अपना विकल्प चुका है।
सवाल-आप मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ लड़ रहे हैं, गोरखपुर जाने की क्या वजह है
जवाब - यूपी की आम जनता ने पिछले 5 साल से जंगलराज देखा है। उसके लिए भारतीय जनता पार्टी और उसके मुख्यमंत्री जिम्मेदार हैं। उन्हें युवाओं की जिंदगी बदलने का काम मिला था लेकिन उसके बदले में प्रयागराज में लाठियां मिली। प्रमोशन में रिजर्वेशन का सुप्रीमकोर्ट का आदेश आता है, लेकिन अनुसूचित जाति के अधिकारी को मौक न मिले इसलिए उसे डस्टबिन में डाल देते हैं। हाथरस, उन्नाव, आगरा, सहारनपुर भी सबने देखा है। वह पूरे समय सत्ता के जरिए एक जाति को संरक्षण देने का काम करते रहे।तमाम माफियाओं पर कार्रवाई हुई पर उनकी जातियों के माफियों पर कार्रवाई नहीं की गई। आज भी वह दलितों को अछूत समझते हैं, इसीलिए फोटो डालकर दिखाते हैं। मैं समझता हूं जो लोग गैर बराबरी को बढ़ावा दे रहे हैं। उनके सरदार को मौका नहीं देना चाहिए। कोरोना में लोगों को इलाज नहीं मिला, आवाज उठाने पर लाठिया मिली। ऐसे में मुख्यमंत्री को मैं नहीं चाहता कि वह दोबारा सदन में जाय।
सवाल- पश्चिमी यूपी से भी चुनाव लड़ने की चर्चा है, क्या दो जगह से चुनाव लड़ेंगे
जवाब- ये सब पार्टी फैसले करते हैं, संभावना तो राजनीति में रहती है। लेकिन अभी तक इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि मैं नहीं कर सकता हूं।
सवाल- इन चुनावों में बसपा प्रमुख मायावती की भूमिका को कैसे देखते हैं।
सवाल- मान्यवर कांशीराम जी कहते थे कि जिनका दल नहीं होता उनका बल नहीं होता और जिनका बल नहीं होता उनका हल नहीं होता। और जिनका नेता नही होता उनका कुछ नही होता है। मायावती जी का मैं बहुत सम्मान करता हूं, लेकिन जब तक वह बहुजन समाज की अगुआई कर रह रही थी, समाज उनके साथ था। लेकिन पिछले 5 साल में वह अपने कार्यालय तक सीमित रह गई, इसलिए जनता का उनसे मोह भंग हो गया।
सवाल- अगर जरूरत पड़ी तो क्या चुनाव बाद सपा से गठबंधन हो सकता है
जवाब- देखिए यह भारत है, इस लोकतंत्र में हमने निर्दलीय विधायक को भी मुख्यमंत्री बनते देखा है। और अपनी पार्टी के इकलौते सांसद को प्रधानमंत्री भी बनते देखा है। अगर चुनाव बाद, भाजपा को रोकने के लिए मुझे किसी की मदद करनी पड़ी तो जरूर करेगा।