नई दिल्ली: करीब ढाई महीने बाद मुंबई में शरद पवार (Sharad Pawar) एक बार फिर से तीसरे मोर्चे (Third Front) के लिए अपना आशीर्वाद देते नजर आए। लेकिन 20 फरवरी को हुई बैठक में इस बार एनसीपी प्रमुख शरद पवार का समर्थन लेने वाला किरदार बदला हुआ था। इस बार शरद पवार के साथ तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस प्रमुख के.चंद्रशेखर राव (KCR) मौजूद थे। ठीक इसी तरह की बैठक बीते एक दिसंबर को ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने शरद पवार के साथ थी। उस समय उन्होंने यह कहते हुए तीसरे मोर्चे के गठन को बल दिया था कि यूपीए कही नही है।
शरद पवार और उद्धव ठाकरे से मुलाकत के मायने
बीते रविवार को के.चंद्रशेखर राव ने शरद परवार के साथ-साथ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से भी मुलाकात की थी। और उसके बाद उन्होंने उद्धव ठाकरे के साथ प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि हम लोग इस बात पर सहमत है कि देश में बड़े परिवर्तन की जरूरत है। हम ज़ुल्म के साथ लड़ना चाहते हैं। वहीं
उद्धव ठाकरे ने बदलाव को देश की जरूरत बताते हुए कहते हैं कि मौजूदा राजनीतिक हालात में बदले की भावना से कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने कहा, 'हमारा हिंदू बदला लेने वाला नहीं है।' इसके अलावा शरद पवार से मुलाकात के बाद चंद्रशेखर राव ने कहा कि देश के कुछ और नेताओं से बातचीत के बाद हम 'एजेंडा' पेश करेंगे। इन नेताओं के बयानों से साफ है कि भाजपा के खिलाफ देश के सामने एक नया मोर्चा बनाने की तैयारी है। इसके लिए गैर भाजपा दलों को एक जुट करने पर जोर है।
दक्षिण के सहारे तीसरा मोर्चा
ममता बनर्जी के बाद केसीआर की कवायद से साफ है कि अब दोनों नेता कांग्रेस के बिना तीसरा मोर्चा बनाना चाहते हैं। क्योंकि ममता बनर्जी पहले से ही कांग्रेस में सेंध लगाकर उनके नेताओं को तृणमूल कांग्रेस में शामिल कर रही हैं। इसके अलावा वह यह भी कह चुकी है कि भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस में ताकत नहीं है। इसी तरह केसीआर भी गैर कांग्रेस दलों के साथ ही आगे बढ़ेंगे। क्योंकि तेलंगाना में उनकी सीधी टक्कर कांग्रेस से हैं। ऐसे में वह किसी भी हालत में राष्ट्रीय राजनीति के लिए राज्य की राजनीति में समझौता नहीं करेंगे। हालांकि पिछले कुछ समय से राव कांग्रेस के मुकाबले भाजपा को ज्यादा सख्त नजर आ रहे हैं।
केसीआर को आगे करने में ममता बनर्जी की अहम भूमिका रही है। उन्होंने 13 फरवरी को के चंद्रशेखर राव और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को फोन करके गैर बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक की कवायद शुरू की है। असल में ममता बनर्जी राज्य सरकारों के साथ केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपालों के साथ चल रही खींचतान को मुद्दा बनाकर, भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करना चाहती हैं। और इस कड़ी में अब के.चंद्रशेखर राव भी उनके साथ हो गए हैं।
यूपी कमजोर कड़ी
लेकिन इस कवायद में सबसे कमजोर कड़ी उत्तर प्रदेश है। क्योंकि चाहे ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव हो या फिर शरद पवार। इनमें से किसी भी राजनेता का जनाधार उत्तर प्रदेश में नहीं है। और दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है। जहां पर 80 लोकसभा सीटें है। इसके अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़,हरियाणा ऐसे राज्य हैं जहां पर भाजपा और कांग्रेस की सीधी टक्कर है। और दक्षिण के क्षेत्रीय दलों का इन राज्यों में कोई जनाधार नहीं है। और इन राज्यों में कुल मिलाकर लोकसभा की 185 सीटें आती हैं। इसके अलावा दिल्ली और पंजाब में भी दक्षिण के दल कमजोर हैं। इसके साथ ही देश की 200 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जहां पर कांग्रेस की भाजपा या अन्य दलों से सीधी टक्कर है।
कांग्रेस के बिना क्या संभव है मोर्चा
अगर गैर भाजपाई दलों को देखा जाय तो करीब 226 लोकसभा सीटों पर ये दल असर रखते हैं। इसमें पश्चिम बंगाल में 42 लोक सभा सीटें हैं, महाराष्ट्र में 48, तमिलनाडु में 39, तेलंगाना में 17 सीटें हैं। इसके अलावा झारखंड में 14, उड़ीसा 21, आंध्र प्रदेश में 25 और केरल में 20 लोकसभा सीटें हैं। जहां पर गैर भाजपाई मुख्यमंत्री हैं। लेकिन समस्या यही है कि इन गैर भाजपा शासित राज्यों में झारखंड और महाराष्ट्र में जहां कांग्रेस के समर्थन से सरकार चल रही है। वहीं उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी के रिकॉर्ड को देखते हुए भाजपा विरोधी गुट में शामिल होना आसान नहीं है। वहीं केरल में वाम दलों की सरकार है, जिसके लिए ममता बनर्जी को समर्थन देना आसान नहीं। इसीलिए कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने कहा केसीआर की कवायद पर कहा कि वह भाजपा के विरोध में विपक्षी गठबंधन बनाना चाह रहे हैं। क्या कांग्रेस के बगैरर यह संभव है? साथ में उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह सवाल अघाड़ी के नेताओं से है।
यूपी के नतीजे पर बहुत कुछ निर्भर
अगर के.चंद्रशेखर राव की मीटिंग की टाइमिंग को देखा जाय तो उन्होंने शरद पवार और उद्धव ठाकरे के साथ बैठक उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में चल रहे चुनाव के दौरान की है। साफ है कि 10 मार्च के नतीजे तीसरे मोर्चे की कवायद को बहुत हद तक प्रभावित करेंगे। अगर यूपी में भाजपा की बहुमत के साथ सरकार बनती है तो निश्चित तौर भाजपा के अपने सहयोगी दलों पर कहीं ज्यादा प्रभाव बढ़ जाएगा और दूसरे दल भी एनडीए के कुनबे में 2024 के लिए साथ आ सकते हैं। लेकिन अगर भाजपा हारती है और समाजवादी पार्टी या दूसरे समीकरण के जरिए सरकार बनती है तो तीसरा मोर्चे के लिए काफी कुछ सकारात्मक होगा। और ऐसी स्थिति भाजपा के सहयोगी भी उसका साथ छोड़ सकते हैं। ऐसे में 10 मार्च का दिन 2024 की राजनीतिक तस्वीर के लिए बेहद अहम दिन होने वाला है।