नई दिल्ली: पंजाब में धीरे-धीरे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी है। मंगलवार को जब उनके दो करीबियों ने भाजपा ज्वाइन की, तो यह सवाल सहसा उठ गया कि यह कौन सा खेला है। जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुद अपनी पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी बनाई है, तो उनके पुराने कांग्रेसी साथी भाजपा क्यों ज्वाइन कर रहे हैं। असल में इस रणनीति के पीछे गांव और शहर की सीटों का गणित है। जिसके जरिए भाजपा-कैप्टन की पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी और शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) सीटों का बंटवारा कर रहे हैं।
किन करीबियों ने भाजपा का दामन थामा
मंगलवार को भाजपा का दामन थामने वालों में सबसे अहम नाम फतेह बाजवा का था। जो कि कादियां से कांग्रेस के विधायक है। फतेह कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रताप बाजवा के भाई है। प्रताप बाजवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनके परिवार का कांग्रेस से पीढ़ियों का नाता है। फतेह के पिता 3 बार पंजाब सरकार में मंत्री और 4 बार विधायक रह चुके हैं। और 1987 में आतंकवादी हमले में शहीद हुए थे। बाजवा परिवार का मांझा क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव है।
असल में इस समय प्रताप बाजवा और फतेह बाजवा के बीच कांदियान सीट से चुनाव लड़ने की खींचतान चल रही है। ऐसे में लगता है कि चुनावों में दोनों भाई आमने सामने हो सकते हैं।मांझा क्षेत्र में 25 विधानसभा सीटें हैं और 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से 22 सीटें जीतीं थीं। ऐसे में बाजवा और अमरिंदर का साथ कांग्रेस को चुनावों में बड़ा झटका दे सकता है।
इसी तरह हरगोविंदपुर से कांग्रेस विधायक बलविंदर सिंह लड्डी भी बाजवा के साथ मंगलवार को भाजपा में शामिल हुए हैं। वह भी अमरिंदर के साथ खास माने जाते हैं। वह पहली बार विधायक बने हैं।
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इसके पहले 21 दिसंबर को अमरिंदर सिंह के करीबी पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुरमीत सिंह सोढ़ी भाजपा में शामिल हो गए थे। वह कैप्टन सरकार में खेल मंत्री थे। फिरोजपुर के गुरूहरसहाय विधानसभा से राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी कांग्रेस से लगातार चार बार विधायक रहे हैं। वे 40 साल तक कांग्रेस में रहे।
क्या है रणनीति
कांग्रेस से अलग होने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाजपा और अकाली दल (संयुक्त) के साथ मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। हालांकि कौन से दल किस सीट से चुनाव लड़ेंगे, उसका ऐलान अभी नहीं हुआ है। लेकिन मोटे तौर पर तीन दलों में सहमति बन गई हैं। सूत्रों के अनुसार भाजपा ज्यादातर शहरी सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी। वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी और अकाली दल (संयुक्त) ग्रमीण क्षेत्रों में प्रमुख रुप से चुनाव लड़ेंगे।
एक सूत्र के अनुसार इसी रणनीति के तहत तीनों नेता भाजपा में शामिल हुए हैं। क्योंकि चाहे फिरोजपुर सीट हो हरगोविंदपुर या कादियान ये तीनों सीटें भाजपा के खाते में आ सकती हैं।
राज्य में सीटों का ये है गणित
राज्य की कुल 117 विधान सभा सीटों में 35-40 सीटें शहरी क्षेत्र की है। जबकि करीब 80 सीटें ऐसी हैं, जहां पर किसान असर डालते हैं। और मालवा क्षेत्र, जहां पर करीब 70 सीटें हैं। 2017 में कांग्रेस ने अकाली दल को सत्ता से हटाकर बहुमत के साथ जीत हासिल की थी। उस वक्त, उसे मालवा क्षेत्र में 40 सीटें मिली थीं। वहीं माझा में 22 सीटें और दोआब में 15 सीटों पर जीत हासिल हुईं थीं। पार्टी को कुल 77 सीटें मिली थी।
जबकि अकाली दल को 15 सीटें मिली थीं। जबकि उसकी साथी भाजपा केवल 3 सीटों पर जीत दर्त कर पाई थी। वहीं आम आदमी पार्टी को 20 सीटें मिली थी, उसमें उसे 18 सीटें मालवा क्षेत्र से मिली थी। जहां किसान निर्याणक भूमिका निभाते हैं।