नई दिल्ली: पिछले 2 दिनों से भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में झटके पर झटके लग रहे हैं। पहले तो मंगलवार को प्रमुख ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके साथ तीन विधायकों ने भाजपा का दामन छोड़ा। फिर बुधवार को वन मंत्री दारा सिंह चौहान ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया है। वहीं समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के गठबंधन साथी और सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर यह दावा कर रहे हैं कि अभी देखते रहिए आगे क्या होता है, और डेढ़ दर्जन मंत्री भाजपा का साथ छोड़ेंगे। जिस तरह पिछड़ी जाति के नेता भाजपा को छोड़ रहे हैं, उससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या इस बार भाजपा के ओबीसी वोट में सेंध लग जाएगी ?
अखिलेश बोले मेला होबे
भाजपा नेताओं का पार्टी छोड़, समाजवादी पार्टी ज्वाइन करना इस समय अखिलेश यादव को भी खूब भा रहा है। उन्होंने ऐसे नेताओं के समूह को उपेक्षितों का मेला' बताया है और कहा कि अब राजनीति का मेला होबे। जाहिर है अखिलेश बेहद उत्साहित है, उन्होंने मंगलवार को दारा सिंह के साथ एक तस्वीर को साझा करते हुए कहा कि सपा व उसके सहयोगी दल एकजुट होकर समता-समानता के आंदोलन को चरम पर ले जाएंगे , भेदभाव मिटाएंगे! सबको सम्मान, सबको स्थान ! जाहिर अखिलेश इस समय भाजपा को कमजोर करने वाले हर नेता को अपने साथ लेने के लिए तैयार है।
राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य सबसे बड़ा दांव
मेला होबे की इस खेल में अखिलेश यादव ने ओबीसी वोट में सेंध लगाने के लिए सबसे बड़ा दांव ओम प्रकाश राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य पर चला है। ये दोनों वहीं नेता हैं, जिन्हें भाजपा ने 2017 में अपने पाले में किया था। और उसका उन्हें फायदा 300 प्लस सीटों के रूप में मिला था।
ओम प्रकाश राजभर, असल में पिछड़ों की राजनीति करते आए हैं और उनकी राजभर समुदाय में अच्छी खासी पकड़ है। उनकी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की गाजीपुर, मऊ, वाराणसी, बलिया, महाराजगंज, श्रावस्ती, अंबेडकर नगर , बहराइच और चंदौली में काफी मजबूत स्थिति है। पू्र्वांचल में 17-18 फीसदी राजभर मतदाता हैं। और इन जिलों में प्रदेश की 60-70 सीटें आती हैं। इसी दम पर भले ही भाजपा के साथ चुनाव लड़कर उन्हें 2017 में भले ही 4 सीटें मिली थी। लेकिन उससे भाजपा को बहुत फायदा मिला है।
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इसी तरह स्वामी प्रसाद मौर्य पडरौना से 5 बार विधायक हैं। और उनका उनका प्रभाव पडरौना, रायबरेली, शाहजहांपुर और बदायूं के क्षेत्रों में माना जाता है। और वह करीब 25-30 सीटों पर असर रखते हैं। इसके अलावा पिछड़ी जाति के नेताओं में भी अच्छी पकड़ रखते हैं। जिसका नमूना पिछले दो दिनों में 4 भाजपा विधायकों का उनके साथ पार्टी छोड़ने के रूप में दिखता है।
इसके अलावा ओबीसी मतों को एक जुट करने के लिए अखिलेश यादव ने विधायक माधुरी वर्मा, भाजपा विधायक राकेश राठौर और शिवशंकर सिंह पटेल, पूर्व बसपा नेता राम अचल राजभर और लालजी वर्मा को अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी में शामिल कर चुके हैं।
भाजपा को ओबीसी वोट ने दिलाई थी बड़ी जीत
2017 की जीत में भाजपा का ओबीसी वोटों में सेंध लगाना था। उसमें लोध, कुर्मी, कोइरी, मौर्य, कुशवाहा, राजभर जैसी ओबीसी जातियों का समर्थन मिला था। सीएसडीएस सर्वे के अनुसार 2012 की तुलना में भाजपा को गैर यादव ओबीसी वोट, 2014 में 17 फीसदी से बढ़कर 60 फीसदी हो गया था। और 2017 के विधानसभा चुनावों में करीब 44 फीसदी वोट मिला था। इसी कारण पूर्वांचल में भाजपा को 150 सीट में से 100 से ज्यादा सीटें मिल गईं थी।
अखिलेश यादव अब इन नेताओं के जरिए ओबीसी कैटेगरी में गैर यादव जातियों में सेंध लगाने का संदेश देना चाहते हैं। समाजवादी पार्टी को आम तौर पर माना जाता है कि उसे ओबीसी जातियों में मुख्य रूप से यादव जाति का ही समर्थन मिलता है।
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