देश के सबसे बड़े सूबों में से एक यूपी सात चरणों के चुनावी दौर से गुजरने जा रहा है। सात चरण के बाद जब 10 मार्च को नतीजे सामने आएंगे तो यह साफ हो जाएगा कि यूपी में दोबारा कमल खिला या साइकिल अपनी मंजिल पर पहुंच गई या हाथी ने अपने पैरों तले सबको कुचल दिया या कांग्रेस का हाथ सबको भा गया। इन सबके बीच तीन खास चेहरों के बारे में जानना जरूरी है जो आज चर्चा में हैं और उनका संबंध बीएसपी के संस्थापक रहे कांशीराम से थी। बात हम ओमप्रकाश राजभर, डॉ संजय निषाद, सोनेलाल पटेल और महान दल के केशव देव मौर्य की।
ओम प्रकाश राजभर
ओमप्रकाश राजभर इन दिनों चर्चा में हैं। वो ताल ठोंक कर कहते हैं कि 2022 के चुनाव में बीजेपी सत्ता से बाहर होगी। कांशीराम के बारे में ओमप्रकाश राजभर बताते हैं कि वो हमेशा कहा करते थे कि अपनी जाति के लोगों को जागरुक बनाने के लिए पार्टी का गठन जाति के आधार पर करना होगा। राजभर बताते हैं कि कॉलेज के दिनों में कांशीराम की बैठकों में हिस्सा लिया करते थे और वो जो कुछ कहा करते थे उसमें तर्क होता था। 1981 में गठित दलित शोषित समाज संघर्ष समिति संगठन का हिस्सा बन गए और इस तरह से राजनीति की सड़क पर उतर गए
डॉ संजय निषाद
निषाद पार्टी के अध्यक्ष और बीजेपी के सहयोगी संजय निषाद भी कांशीराम के साथ जुड़े रहे। बामसेफ संगठन का संजय निषाद हिस्सा संजय निषाद बताते हैं कि वो गोरखपुर और आसपास के इलाकों में बामसेफ के लिए काम किया करते थे। खासतौर से इस संगठन से लोगों को जोड़ने का काम करते थे। बीएसपी के गठन के बाद कांशीराम ने उनसे बामसेफ में ही सक्रिय भूमिका अदा करने के लिए कहा। संजय निषाद बताते हैं कि कांशीराम की मौत के बाद मायावती से उनका रिश्ता खराब हुआ और उसके बाद उन्होंने खुद का संगठन बनाने का फैसला किया और निषाद पार्टी गठित किया। जून 2015 में गोरखपुर जिले में सहजनवां स्टेशन के पास रेलवे लाइन को ब्लॉक कर दिया जिसमें उनके खिलाफ केस भी चल रहा है।
केशव देव मौर्य
महान दल के अध्यक्ष केशव देव बताते हैं कि वो बीएसपी के छोटे से कार्यकर्ता थे, बाद में समाजवादी पार्टी का भी हिस्सा बने। उन्हें कांशीराम के साथ करीब से काम करने का मौका नहीं मिला। लेकिन वो उनसे प्रभावित थे। कांशीराम ने दलित और पिछड़ी जातियों को राजनीतिक शक्ति और आवाज दी। वो कहते हैं कि जब उन्हें कोई जातिवादी कहता है तो उन्हें खराब नहीं लगता। वो अपने समुदाय की लड़ाई लड़ रहे हैं।
सोनेलाल पटेल
सोनेलाल पटेल अब इस दुनिया में नहीं हैं और उनकी विरासत को उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल और उनकी पत्नी कृष्णा पटेल कर रही हैं। सियासत का खेल देखिए कि बेटी अनुप्रिया पटेल, एनडीए के साथ तो उनकी पत्नी कृष्णा पटेल समाजवादी पार्टी गठबंधन के साथ हैं। सोनेलाल पटेल 1990 के दशक में एकाएक उभर कर सामने आए और एक तरह से किंगमेकर की भूमिका अदा करने लगे। कांशीराम उनके गुरु थे और उनकी शागिर्दी में सोनेलाल पटेल ने राजनीति का ककहरा सीखा।