नई दिल्ली: भाजपा ने स्वामी प्रसाद मौर्य से झटका खाने के बाद, बैकडोर पॉलिटिक्स से उन्हें पटखनी देने का बड़ा दांव चल दिया है। पार्टी ने स्वामी प्रसाद मौर्य के चिर-परिचित प्रतिद्वंदी आरपीएन सिंह को भाजपा में शामिल कर लिया है। और ऐसी पूरी संभावना बन गई है कि पडरौना का चुनाव आरपीएन बनाम स्वामी प्रसाद होने वाला है। हालांकि अपने चिर-परिचित प्रतिद्वंदी के भाजपा में शामिल होने पर मौर्य ने कहा कि वहां जो भी आएगा वह हारेगा। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सपा उन्हें पडरौना से टिकट देती है? अगर ऐसा होता है तो पूर्वांचल की सबसे रोचक लड़ाई में से एक, पडरौना का चुनाव होगा।
पहली लड़ाई में आरपीएन पड़े थे भारी
पूर्व केंद्रीय मंत्री रतनजीत प्रताप नारायण सिंह (आरपीएन) का स्वामी प्रसाद मौर्य से पहली बार 2009 में सामना हुआ था। वह 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। और उनके खिलाफ बसपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य खड़े थे। इस चुनाव में आरपीएन सिंह ने स्वामी प्रसाद मौर्य को 20 हजार से ज्यादा मतों से हरा दिया था।
दूसरी लड़ाई में मौर्य पड़े भारी
लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पडरौना सीट आरपीएन को छोड़नी पड़ी। और वहां से उन्होंने अपनी मां श्रीमती मोहिनी देवी को चुनाव मैदान में उतारा। लेकिन इस बार स्वामी प्रसाद मौर्य ने बाजी मारी और वह पडरौना से चुने गए। मौर्य की जीत इसलिए भी मायने रखती थी, क्योंकि पहली बार बसपा का वहां खाता खुला। उसके बाद मौर्य 2012 में बसपा और 2017 में भाजपा के टिकट पर पडरौना से चुनाव जीत चुके हैं।
स्वामी प्रसाद मौर्य को भाजपा ने फंसाया
स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब से भाजपा का दामन छोड़ा है, तब से वह कह रहे हैं कि भाजपा को यूपी से खत्म कर देंगे। लेकिन अब आरपीएन सिंह के रूप में भाजपा को नया चेहरा मिल गया है। सूत्रों के अनुसार आरपीएन अपने साथ कांग्रेस के दूसरे स्थानीय नेताओं को भी भाजपा में शामिल करेंगे। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि भाजपा आरपीएन सिंह को पडरौना से ही चुनाव लड़ाएगी। ऐसे में अगर सपा स्वामी प्रसाद मौर्य को पडरौना से नहीं टिकट देगी तो भाजपा यह संदेश देगी कि मौर्य डर गए। और अगर मौर्य पडरौना से चुनाव लड़ते हैं तो उनके लिए अब राह आसान नहीं होगी।
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आरपीएन सिंह के लिए रिवाइवल का मौका
पडरौना राजघराने से ताल्लुक आरपीएन सिंह पिछले 32 साल से कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए थे। उन्हें स्थानीय स्तर पर अभी भी राजा कहा जाता है। वह पडरौना सीट से 1996 से 2009 तक 3 बार विधायक भी रह चुके हैं। लेकिन पिछले एक दशक से राजनीतिक रूप से स्थानीय स्तर पर उनका प्रभाव कम होता दिख रहा था। उसकी वजह यह है कि आरपीएन सिंह 2014 और 2019 दोनों लोकसभा चुनाव हार गए थे। ऐसे में अगर, भाजपा उन्हें पडरौना से टिकट देती है और वह स्वामी प्रसाद मौर्य को हराने में सफल होते हैं, उनकी राजनीति करियर को बड़ा बूस्ट मिलेगा। साथ ही भाजपा कुशीनगर क्षेत्र में स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी से अलग होने की भरपाई कर सकती है।
पडरौना का राजनीतिक समीकरण
पडरौना कुशीनगर जिले की 7 विधानसभा सीटों में से एक हैं। पडरौना में करीब 3.50 लाख वोटर हैं। जिसमें सबसे ज्यादा 84 हजार मुस्लिम वोटर हैं। इसके बाद अनुसूचित जाति के करीब 76 हजार वोटर हैं। वहीं ब्राह्मण 52 हजार, यादव 48 हजार, सैंथवार 46 हजार, और कोइरी जाति के करीब 44 हजार वोट हैं।
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