यूपी विधानसभा चुनाव के रुझानों से साफ है कि समाजवादी पार्टी को 2027 की तैयारी करनी होगी। समाजवादी पार्टी जीत के आंकड़ों में 150 के मार्क को भी नहीं छू सकी। यही वो सवाल है कि आखिर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की सभाओं में जो भीड़ जुटा करती थी क्या वो मतों में तब्दील नहीं हो पायी। अगर एक पल को मान लिया जाए कि लोगों की भीड़ सिर्फ भीड़ थी तो सपा को आखिर 127 सीटें कहां से आईं। यही वो सवाल हैं जो राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी विचार मंथन के लिए पसंदीदा विषय बन रहे हैं।
जादुई आंकड़े से पीछे रह गए अखिलेश यादव
2022 के चुनाव में अभी सभी 403 सीटों के नतीजों का ऐलान नहीं किया गया है। लेकिन जो तस्वीर आई है वो सपा के लिए 2017 के चुनाव से बेहतर है। सपा इस बार अपने सहयोगियों के साथ 127 सीटों पर आगे हैं जो यकीन उसके 2017 की सीट संख्या से अधिक है। जानकारों का कहना है कि अगर आप 2022 के रुझानों को देखें तो एक बात साफ है कि बीएसपी लड़ाई से पूरी तरह बाहर है। अब सवाल यह है कि बीएसपी अगर लड़ाई में रहती तो क्या सपा को और नुकसान होता। इसका जवाब यही है कि बीएसपी से सीधे तौर पर सपा को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है। यदि ऐसा है तो वो कौन सी वजह है कि समाजवादी पार्टी, बीजेपी को परास्त कर पाने में कामयाब नहीं हुई।
कथनी और करनी के फर्क से सपा का हुआ नुकसान
जानकार कहते हैें कि अगर आप बीजेपी के चुनावी नतीजों को देखें तो एक बात साफ है कि बीजेपी अपने पुराने आंकड़े को सहेज पाने में नाकाम रही है। लेकिन इस नुकसान के बाद भी वो सरकार बनाने जा रही है। ऐसे में अखिलेश यादव ही खुद न खुद अपनी हार के लिए जिम्मेदार हैं। चुनावी सभाओं में या मीडिया से बातचीत के दौरान समाजवादी पार्टी के नेता कहा करते थे कि यूपी सरकार सभी मोर्चों पर नाकाम रही है। लेकिन जब उनसे पूछा जाता था कि यदि योगी आदित्यनाथ सरकार सभी मोर्चों पर खरी नहीं उतर रही थी तो आप लोग सड़क पर क्यों नहीं उतरते थे। इस सवाल के जवाब में अखिलेश यादव कहा करते थे कि वो तो सरकार के खिलाफ आंदोलन करते हैं, आवाज उठाते हैं लेकिन दुख की बात यह है कि उनका विरोध नजर नहीं आता था।
अखिलेश यादव कहां चूके
लंबी होती है सियासी लड़ाई
सियासी लड़ाई कभी छोटी नहीं होती है। समय के साथ लोगों का मिजाज बदलता है ऐसे में राजनीतिक दलों को यह समझना पड़ता है कि कौन से मुद्दे उनके लिए संजीवनी का का करेंगे। अगर आप इतिहास में देखें तो राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर कांग्रेस का बोलबाला होता था। लोग भी कांग्रेस को आंदोलन के तौर पर देखते थे। कांग्रेस की तरफ से गलतियां दर गलतियां होती गईं और उसका नतीजा यह है कि देश के अस्सी फीसद नक्शे से कांग्रेस गायब है। समाजवादी पार्टी को चिंतन और मनन करना होगा कि सिर्फ ड्राइंग रूम पॉलिटिक्स से सियासी लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है। सियासी कुर्सी को हासिल करने के लिए लोगों से सीधे तौर पर जुड़ना पड़ता है।
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