UP Assembly Election 3rd Phase: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का तीसरे चरण के प्रचार के लिए जालौन जाने से पहले कू ऐप पर दिया गया मैसेज, आगे की लड़ाई की तस्वीर साफ कर रहा है। उन्होंने अपने संदेश में ऋषि जलवान, महाभारत के रचयिता वेदव्यास का खास तौर से उल्लेख किया है। भाजपा के लिए सत्ता वापसी में तीसरे चरण का चुनाव, पहले दो चरणों के रूझान के बाद सबसे अहम है। वही अखिलेश यादव के लिए अपने गृह क्षेत्र में खोई साख वापस लौटाने की चुनौती है। पिछले बार भाजपा ने न केवल मुलायम और अखिलेश यादव के घर में सपा का सूपड़ा साफ किया था बल्कि बुदेलखंड के इलाके में भी एकतरफा जीत हासिल की थी। 2017 के चुनावों में भाजपा को 59 में से 49 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। जबकि सपा को 9 और कांग्रेस को एक सीट पर जीत हासिल हुई थी। तीसरे चरण के चुनाव 20 फरवरी को होंगे।
हाथरस रेप कांड, खुशी दुबे, इत्र कारोबारी अहम मुद्दे
इस चरण के तीन मुद्दे बेहद अहम हैं। योगी सरकार को विपक्ष सबसे ज्यादा हाथरस में दलित लड़की के साथ हुए बलात्कार के मामले पर घेरता रहा है। मामले को जिंदा रखने के लिए समाजवादी पार्टी हर महीने 'हाथरस की बेटी स्मृति दिवस' मना रही है। जबकि बिकरू कांड, विकास दुबे पुलिस एनकाउंटर और उसके एक सहयोगी अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे को जेल भेजा जाना भी अहम मुद्दा है। जिसके जरिए विपक्ष योगी सरकार को ब्राह्मण विरोधी साबित करने की कोशिश कर रहा है। कांग्रेस ने खुशी दुबे की बहन नेहा तिवारी को नारायणपुर से टिकट दिया है।
विपक्ष की तरह भाजपा कन्नौज में इत्र कारोबारी पीयूष जैन के यहां से मिले 250 करोड़ रुपये से ज्याद की नकदी और उसके कथित समाजवादी पार्टी के कनेक्शन का मुद्दा उठा रही है। इसके अलावा भाजपा कानून व्यवस्था को भी बड़ा मुद्दा बनाकर अखिलेश यादव को घेर रही है।
किन सीटों पर होना है चुनाव
तीसरे चरण में हाथरस, फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, कासगंज की 19 विधानसभा सीटों, बुंदेलखंड में झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा की 13 विधानसभा सीटों और कन्नौज और इटावा ,कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फर्रुखाबाद, की 27 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा। तीसरे चरण के चुनाव को यादवलैंड का चुनाव इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि तीसरे चरण की 59 विधानसभा सीटों में से 30 सीटों पर यादव वोट बैंक का दबदबा है। असल में तीसरे चरण में जिन 16 जिलों में चुनाव होना है, उनमें से 9 जिलों में यादव वोट निर्णायक।
सत्ता में रहते हुए अखिलेश नहीं बचा पाए थे गढ़
2017 के चुनाव के समय समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री थी। इसके बावजूद वह अपने गृह क्षेत्र में बुरी तरफ मात खाए थे। सबसे अहम बात यह थी कि जिस यादव वोट बैंक पर उन्हें सबसे ज्यादा भरोसा था, वह भी उनसे दूर हो गया था। इसी का परिणाम था कि पार्टी को केवल 9 सीटें मिली थीं। और भाजपा ने गैर यादव ओबीसी कार्ड का दांव चल लोदी, शाक्य जातियों का भरोसा जीत लिया था। जबकि 2012 के चुनावों में अखिलेश ने 59 में से 37 सीटें जीती थीं।
इस बार गठबंधन के भरोसे भाजपा और सपा
2017 के नतीजों को दोहराने के लिए भाजपा ने अपना दल (सोनेलाल पटेल) के साथ गठबंधन कर रखा है। वहीं सपा ने शाक्य वोटरों को लुभाने के लिए महान दल के साथ गठबंधन कर रखा है। और इस बार अखिलेश यादव के पास चाचा शिवपाल सिंह यादव का भी साथ है। पिछली बार चाचा-भतीजे में अनबन होने से दोनों की राहें अलग हो गई थीं। इस वजह से भी अखिलेश यादव को भारी नुकसान उठाना पड़ा था।
अखिलेश सहित ये दिग्गज मैदान में
तीसरा चरण इसलिए भी अहम हो गया है क्योंकि खुद अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव में कूद गए हैं। वह मैनपुरी के करहल से चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे और केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को चुनाव मैदान में उतारा है। इसी तरह शिवपाल सिंह यादव इटावा की जसवंतनगर सीट से मैदान में हैं। इसके अलावा कानपुर की महाराजपुर सीट से योगी सरकार में मंत्री सतीश महाना, इत्र कारोबारी के यहां छापे से चर्चा में आई कन्नौज सीट से पूर्व आईपीएस असीम अरूण भाजपा की टिकट पर किस्मत आजमा रहे हैं। वहीं फर्रूखाबाद से कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद मैदान में हैं।
इसके अलावा भाजपा ने सपा के बागी नेताओं पर दांव लगाकर भी अखिलेश के गढ़ में दोबारा सेंध लगाने का दांव चला है। इसके तहत मुलायम सिंह यदाव के समधी हरिओम यादव के सिरसागंज सीट से, पुराने सपाई ओमप्रकाश निषाद को मैनपुरी की किशनी सीट और आशु दिवाकर को फिरोजबाद से चुनाव मैदान में उतारा है।
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