UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश में पहले चरण की 58 सीटों पर वोटिंग जारी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 11 जिलों में हो रहे मतदान में दो राजनीतिक दलों पर सबकी नजर है। ये दल भले ही सत्ता की रेस में नहीं हैं, लेकिन भाजपा और सपा गठबंधन का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं। पहला दल असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) का ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) है तो दूसरा दल चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) की आजाद समाज पार्टी है। इन दोनों दलों में वोट कटवा बनने का दम है। अगर ओवैसी मुस्लिम वोटों को अपनी ओर खींच लेते हैं और चंद्रशेखर दलित वोटों को अपनी ओर खीचतें हैं तो निश्चित तौर पर पश्चिमी यूपी का राजनीतिक समीकरण बिगाड़ सकते हैं।
कौन कितनी सीटों पर लड़ रहा है चुनाव
एआईएमआईएम ने पहले चरण की 58 सीटों में से 10 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। पार्टी इसके तहत शामली, मीरापुर, सिवालखास, सरधना,मेरठ कैंट, धौलाना, गढ़मुक्तेश्वर, मोदीनगर, बरौली, सिकंदराबाद से चुनाव लड़ रही है। एआईएमआईएम ने जिस तरह से बिहार में पांच सीटें जीती थीं, और राजद का खेल बिगाड़ा था वैसा ही इन 10 सीटों पर भी हो सकता है। इसकी सबसे बड़ी वजह है एआईएमआईएम जिन 10 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वहां पर मुस्लिम वोटर बेहद असर डालते हैं।
इसी तरह आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद के अनुसार उनकी पार्टी 40 छोटे-छोटे दलों के साथ मिलकर सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इन सीटों पर जातिगत समीकरण को ध्यान रखकर मोर्चा बनाया गया है। इसमें अति पिछड़ी जातियां, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक समुदाय, सिख, बुद्ध, जैन, किसान, कुशवाहा, पाल, प्रजापति, मौर्य, धनखड़, धानुख, कटेरिया, चौहान, निषाद, कश्यप समाज के लोग शामिल हैं। आजाद समाज पार्टी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ (उप-चुनाव छोड़कर) रही है। लेकिन जिला पंचायत चुनाव में कई उम्मीदवारों के जीतने से पार्टी के लिए वोट जुटाना आसान हो सकता है।
मुस्लिम और दलित वोटर
पश्चिमी यूपी में मुस्लिम आबादी करीब 30 फीसदी है। कैराना, छपरौली, बागपत,सिवालखास, किठौर, मेरठ, मेरठ दक्षिण, मेरठ कैंट, लोनी, धौलाना, गढ़मुक्तेश्वर, कोल, अलीगढ़, मीरापुर,शिकारपुर, सहारनपुर देहात, बेहट, मुजफ्फरनगर सदर से मुस्लिम उम्मीदवार खड़े हैं। जहां पर एक से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में हैं। जिसकी वजह से भी मुस्लिम वोटों के बंटने की संभावना है। अगर मुस्लिम वोट बंटता है तो निश्चित तौर पर सपा-आरएलडी गठबंधन को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इसी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में करीब 25 फीसदी दलित आबादी है। और उसमें भी 75-80 फीसदी जाटव आबादी है। जो कि बसपा का बड़ा समर्थक रहा है। ऐसे में अगर चंद्रशेखर आजाद इस तबके में सेंध लगा पाते हैं तो मायावती को बड़ा नुकसान हो सकता है।
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इनका बिगड़ेगा खेल
इन समीकरणों को देखते हुए अगर ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम और चंद्रशेखर की पार्टी आजाद समाज पार्टी को वोटरों का साथ मिलता है, तो सबसे ज्यादा सपा-आरएलडी गठबंधन को हो सकता है। जो इस बार जाट, मुस्लिम एकता के नाम पर चुनाव लड़ रहा है। वहीं उसके बाद बसपा को अपने परंपरागत वोट से झटका लग सकता है। हालांकि इसका पता 10 मार्च को रिजल्ट आने पर ही पता चल सकेगा कि ये दोनों दल वोटकटवा साबित हुए या फिर जनता ने अभी इंतजार करने का सबक दिया है।