किसी जमाने में गांधी-नेहरू परिवार के करीबी माने जाने वाले अमेठी के राजा डॉ. संजय सिंह ने अपनी सियासी पारी कांग्रेस नेता संजय गांधी के साथ शुरू की थी। आर्टिकल 370 के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी की सदस्यता और राज्य सभा से इस्तीफा देने वाले डॉ. संजय सिंह को अमेठी विधानसभा सीट से बीजेपी ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है। अमेठी को कांग्रेस का गढ़ बनाने वाले संजय सिंह पिछले 33 साल बादपहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं।
डॉ. संजय सिंह 1980 के चुनाव में कांग्रेस से विधायक बने। साल 1985 के चुनाव में भी सिंह कांग्रेस से विधायक रहे। इस दौरान प्रदेश की कांग्रेस सरकार में मंत्री भी थे। 1989 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े। इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में संजय सिंह सुल्तानपुर सीट से कांग्रेस से टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली। इसके बाद संजय सिंह और उनकी पत्नी अमिता ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया। अब बीजेपी ने संजय सिंह की दोनों पत्नियों अमिता और गरिमा में से किसी एक को चुनने के बजाय उन्हें टिकट दे दिया है।
पिछले चुनाव में संजय सिंह की दोनो पत्नियां चुनावी मैदान में थी। जहां गरिमा सिंह को बीजेपी ने मैदान में उतारा था, वही अमिता कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ी थी। गायत्री प्रजापति की पत्नी महाराजी देवी को सपा ने इस सीट से टिकट दिया है। उसकी छोटी बेटी अपनी माँ के लिए प्रचार करती दिखी। जनता से रोकर वोट मांग रही है कहती है कि मेरे पिता को बीजेपी सरकार ने फसाया है। हमारा परिवार और हमारी ज़िंदगी बर्बाद कर दी गई।
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संजय सिंह का मानना है कि अमेठी सीट पर उनके मुकाबले पर कोई दिख ही नहीं रहा है। यहां से लोगों का भी कहना है कि वह बीजेपी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बजाए अपने राजा को वोट कर रहे है। ज्यादातर लोग कई पीढ़ियों से राजा से जुड़े है। उनका कहना है की राजा के परिवार ने न सिर्फ इस क्षेत्र का विकास किया है बल्कि उनके सुख दुख में भी खरे रहे है। बहरहाल कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए संजय सिंह को उम्मीद तो थी राज्यसभा सीट मिलने की, लेकिन अब उनकी प्रतिष्ठा अमेठी की विधानसभा सीट पर दांव पर लगी है। वही गांधी परिवार के गढ़ को बचाने को चुनौती राहुल प्रियंका के उपर है।
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