लखनऊ : उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सात चरणों में संपन्न होंगे। इसकी शुरुआत 10 फरवरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 10 जिलों से होगी। 10 फरवरी को इन 10 जिलों की 58 सीटों पर मतदान होगा। यूपी में विधानसभा चुनाव की शुरुआत सूबे के इसी हिस्से से होती रही है। हरित क्षेत्र के रूप में मशहूर यह इलाका चुनावी रूप से काफी अहम रहा है। सभी दलों की कोशिश विस चुनाव में बढ़त बनाने और उसे आगे के चरणों में बरकरार रहने की होती है। राजनीतिक दलों की कोशिश इस बार भी कुछ वैसी ही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना परचम लहराने के लिए भाजपा और सपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीम मायावती इसी इलाके से आती हैं। इस क्षेत्र की कई सीटों पर उनका भी अच्छा प्रभाव है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विधानसभा की करीब 76 सीटें आती हैं। 2017 के चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 66 सीटों पर अपना कब्जा जमाया। जबिक सपा को महज चार सीटें मिलीं। कांग्रेस को दो, रालोद को एक और बसपा को 3 सीटें मिलीं। एक तरह से पश्चिमी यूपी में विपक्ष का सूपड़ा साफ हो गया। पिछले चुनाव में सहारनपुर दंगे और कैराना पलायन ने ध्रुवीकरण करने में बड़ी भूमिका निभाई। हिंदू समुदाय का एकमुश्त वोट भाजपा को मिला लेकिन इस बार तस्वीर दूसरी है। इलाके में किसान आंदोलन का मुद्दा गरम रहा है। इसके अलावा गन्ना मूल्य का भुगतान एवं किसानी से जुड़े अन्य मुद्दे भाजपा को इस बार परेशान कर सकते हैं। सपा-रालोद गठबंधन इस बार अपने प्रदर्शन में सुधार कर सकता है। कुल मिलाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए चुनौती पहले से ज्यादा है।
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पहले चरण के दौरान दस जिलों की नोएडा, दादरी, जेवर, सिंकदराबाद, बुलंदशहर, मेरठ कैंट, मेरठ, मेरठ साउथ, छपरौली, बड़ौत, बागपत, लोनी, मुरादनगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद, मोदी नगर, धौलाना, हापुड़, कैराना, थाना भवन, शामली, बुढ़ाना, छरतावल, पुरकाजी, मुजफ्फरनगर, खतौली, मीरापुर, सिवालखास, सरधना, हस्तीनापुर, किठौर, गढ़मुक्तेश्वर,स्याना, अनूपशहर, डेबाई, शिकारपुर, खुर्जा, खैर, बरौली, अतरौली, छर्रा, कोइल, अलीगढ़, इगलास, छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा, बलदेव, एतमादपुर, आगरा कैंट, आगरा साउथ, आगरा नॉर्थ, आगरा रूरल, फतेहपुर सीकरी, फतेहाबाद और बाह विधानसभा सीट पर मतदान होना है।
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पश्चिमी यूपी में मुस्लिमों की आबादी करीब 26 प्रतिशत तक जाता है। सपा के साथ रालोद के आने से यह गठबंधन भाजपा की राह मुश्किल कर सकता है। एआईएमआईएम मुखिया असदुद्दीन ओवैसी इस इलाके में काफी समय से प्रचार करते रहे हैं, ओवैसी यदि मुसलमानों का एक हिस्सा अगर अपने साथ ले जाने में कामयाब रहे तो यहां अखिलेश के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बहरहाल, पहले चरण में भाजपा और सपा दोनों की कोशिश बढ़त बनाने और इस बढ़त को अंतिम चरण तक ले जाने की होगी।