हार से कब सबक लेगी कांग्रेस, 5 राज्यों में पराजय की कोई नैतिक जिम्मेदारी भी नहीं ले रहा

Congress's defeat in 5 states : गुजरात एवं कर्नाटक में इसी साल विधानसभा चुनाव होंगे। इन राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन यदि खराब रहा तो उसे राज्यसभा में नेता विपक्ष के पद से भी हाथ धोना पड़ सकता है।     

When will Congress learn from defeat, no moral responsibility is being taken for defeat in 5 states
पांच राज्यों में हुई कांग्रेस की बुरी हार।  |  तस्वीर साभार: PTI

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए सदमे की तरह हैं। देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए यह पहला झटका नहीं है। पिछले कई चुनावों में उसे झटके पर झटके लग रहे हैं लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि वह अपनी गलतियों, कमियों को दूर करने की बजाय उन्हें दोहराती रहती है। चुनाव नतीजों से वह न तो कोई सीख लेती है और न ही चुनाव जीतने की उसमें कोई ललक दिखाई देती है। जहां जीतने और सत्ता में वापसी की संभावना रहती है उसे भी वह खत्म कर देती है। 

पांच राज्यों में हुई बुरी हार 
10 मार्च को यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा एवं मणिपुर पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आए। यूपी को छोड़ भी दिया जाए तो बाकी के चार प्रदेशों में से एक पंजाब में उसकी सरकार थी। उत्तराखंड, गोवा एवं मणिपुर में वह मुख्य विपक्षी पार्टी थी। इन चार राज्यों में सत्ता में वापसी करने के उसके पास मौके थे लेकिन उसने इस मौके को गंवा दिया। सबसे बड़े राज्य यूपी की अगर बात करें तो कांग्रेस ने यहां 399 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। चुनाव में उसे केवल दो सीटों पर जीत दर्ज हुई और चार सीटों पर उसके प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे। हालांकि जीतने वाले उम्मीदवार से मतों का फासला बहुत ज्यादा था। 2017 के चुनाव में 6.25 प्रतिशत वोटों के साथ सूबे में उसे सात सीटें मिली थी। इस बार उसका वोट प्रतिशत गिरकर 2.33 हो गया। 

यूपी में पार्टी के बड़े पदाधिकारी हारे
जाहिर है कि यूपी चुनाव में उसे वोट शेयर और सीटों दोनों का नुकसान हुआ है। चुनाव में पार्टी के बड़े चेहरे हार गए हैं। प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू अपनी सीट नहीं बचा पाए और तमकुहीराज से हार गए। युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कनिष्क पांडेय कानपुर की महराजपुर सीट पर चौथे स्थान पर रहे। चुनाव में कांग्रेस के पदाधिकारियों का कमोबेश यही हाल रहा। पार्टी का 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' नारा महिलाओं को अपनी तरफ आकर्षित करने में असफल रहा। कांग्रेस किसी भी तबको को अपने साथ नहीं जोड़ पाई। 2017 का विस चुनाव उसने सपा के साथ मिलकर लड़ा था लेकिन इस बार वह अकेली थी। या यूं कहें कि अन्य दलों ने उससे दूरी बना ली। 

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पंजाब में भी मिली शिकस्त
उत्तराखंड में कांटे की लड़ाई बताई जा रही थी लेकिन वह यहां भी हार गई। कांग्रेस ने हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। रावत खुद अपनी सीट लालकुआं नहीं बचा पाए। पंजाब में उसकी सरकार थी, यहां भी बुरी पराजय हुई। गोवा में वह राकांपा-शिवसेना गठबंधन से दूर रही और हार का सामना करना पड़ा। मणिपुर में विपक्ष में रहते हुए वह जनता का भरोसा नहीं जीत पाई। पांच राज्यों में पार्टी के इतने लचर प्रदर्शन के बाद हार की जिम्मेदारी लेने के लिए कांग्रेस का कोई नेता अब तक सामने नहीं आया है। कभी लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। पंजाब प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अपनी सीट हार गए लेकिन पार्टी की हार के लिए उन्होंने सीधे चरणजीत सिंह चन्नी को जिम्मेदार ठहरा दिया। 

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हार की नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए
यूपी में प्रियंका गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा तो उत्तराखंड में हरीश रावत के। कांग्रेस में हालात यह हो गए हैं कि नेता हार की नैतिक जिम्मेदारी लेने से बच रहे हैं। कोई भी अपना इस्तीफा देने के लिए तैयार नहीं है। यह किसी पार्टी के लिए और भी चिंताजनक एवं गंभीर स्थिति है। पिछले कुछ वर्षों में युवा नेताओं ने पार्टी छोड़ी है तो जी-23 समूह में शामिल वरिष्ठ नेताओं ने सक्रिय राजनीति से खुद को दूर रखा है। पार्टी आंतरिक कलह एवं मतभेद का शिकार है। क्षेत्रीय दलों पर उसका प्रभाव घट गया है। वह दलों को अपने साथ जोड़े रखने की काबिलियत पर खोती जा रही है। गुजरात एवं कर्नाटक में इसी साल विधानसभा चुनाव होंगे। इन राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन यदि खराब रहा तो उसे राज्यसभा में नेता विपक्ष के पद से भी हाथ धोना पड़ सकता है।     
 

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