2022 का यूपी विधानसभा चुनाव अखिलेश यादव के लिए अहम है। यह चुनाव उनके लिए करो या मरो का सवाल बन चुका है। कोरोना काल में वैसे तो अभी पब्लिक रैली पर रोक लगी हुई है। लेकिन अखिलेश यादव को यकीन है कि जन का मन सपा की साइकिल के साथ है। साइकिल का हैंडल और पहिए दोनों इस बार दुरुस्त हैं। 2017 वाली गलती वो नहीं दोहराने जा रहे हैं लिहाजा लखनऊ की गद्दी पर सपा कब्जा कर लेगी। इन सबके बीच अखिलेश यादव की निजी और राजनीतिक जिंदगी के बारे में लोगों को दिलचस्पी है।
सियासत की सड़क पर साइकिल दौड़ाई
अखिलेश यादव, नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव के बड़े बेटे हैं। 1 जुलाई 1973 को उनका इटावा के सैफई में जन्म हुआ था। अखिलेश यादव जब पैदा हुए तो उनके पिता का राजनीतिक संघर्ष जारी था। मैसूर के जेएसएस साइंस और टेक्नॉलजी से पढ़ाई लिखाई के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई आस्ट्रेलिया से की थी। आस्ट्रेलिया से आने के बाद वो धीरे धीरे राजनीति का हिस्सा बने। लेकिन 2007 के बाद से वो सक्रिय राजनीति में कूद पड़े। 2007 से लेकर 2012 तक उन्होंने बीएसपी सरकार के खिलाफ अलख जगाई। 2012 में समाजवादी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आई और सभी तरह के कयासों को विराम देते हुए नेताजी ने उन्हें सीएम पद का पसंद बताया और इस तरह से सबसे कम उम्र में 15 मार्च 2012 को सीएम पद की शपथ ली।
विधान परिषद का चुना था रास्ता
खास बात यह है कि वो सूबे के सीएम बने। लेकिन रास्ता विधानपरिषद का चुना। अखिलेश यादव ते शुरूआती ढ़ाई साल के कार्यकाल के बारे में कहा गया कि यूपी में ढ़ाई सीएम हैं, इशारा आजम खान और शिवपाल यादव की तरफ होता था। 2015 के बाद से जब अखिलेश यादव ने खुद को उस छत्रछाया से निकलने की कोशिश की तो उसके बाद से विरोध के सुर भी सुनाई देने लगे।
2017 में पारिवारिक कलह आया सामने
अखिलेश यादव का कार्यकाल धीरे धीरे समाप्ति की ओर था। लेकिन समाजवादी पार्टी के अंदर घमासान बढ़ चुका था। चुनाव से ऐन पहले लखनऊ में प्रदेश और देश की जनता ने यादव परिवार के कलह को देखा । पार्टी किसकी है इसका झगड़ा निर्वाचन आयोग की चौखट तक पहुंचा, हालांकि अखिलेश यादव का पार्टी पर कब्जा बरकरार रहा। लेकिव वो 2017 के चुनाव में बुरी तरह शिकस्त खा गए।