Ayodhya verdict: शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह समेत 100 मुस्लिमों की मांग- अयोध्या फैसले को ना दी जाए चुनौती

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Updated Nov 25, 2019 | 23:29 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Shabana Azmi and Naseeruddin Shah on Ayodhya verdict: देश के लगभग 100 प्रमुख मुस्लिम नागरिकों ने कहा है कि अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर समीक्षा याचिका नहीं डालनी चाहिए।

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शबाना आजमी और नसीरूद्दीन शाह 

नई दिल्ली: अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी सहित देशभर के लगभग 100 प्रमुख मुस्लिम नागरिकों ने अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिका दायर करने के फैसले का विरोध किया है। उनका कहना है कि विवाद को जीवित रखने से समुदाय को नुकसान होगा। 

पुनर्विचार याचिका दायर करने का विरोध करने वालों में इस्लामी विद्वान, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, पत्रकार, कारोबारी, शायर, अभिनेता, फिल्मकार, थिएटर कलाकार, संगीतकार और छात्र शामिल हैं। उनका कहना है, 'हम इस तथ्य पर भारतीय मुस्लिम समुदाय, संवैधानिक विशेषज्ञों और धर्मनिरपेक्ष संगठनों की नाखुशी को साझा करते हैं कि देश की सर्वोच्च अदालत ने अपना निर्णय करने के लिए कानून के ऊपर आस्था को रखा है।'

बयान में कहा गया है कि इस बात से सहमति रखते हैं कि फैसला न्यायिक रूप से त्रुटिपूर्ण है लेकिन हमारा मजबूती से मानना है कि अयोध्या विवाद को जीवित रखना भारतीय मुसलमानों को नुकसान पहुंचाएगा और उनकी मदद नहीं करेगा। इस पर दस्तखत करने वालों में नसीरूद्दीन शाह, शबाना आजमी, फिल्म लेखक अंजुम राजबली, पत्रकार जावेद आनंद समेत अन्य शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को अयोध्या मामले पर फैसला सुनाया था। कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को रामलला विराजमान को दे दी थी। इसके अलावा मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का आदेश दिया। इस फैसले के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद (अरशद मदनी गुट) ने पुनर्विचार याचिका दायर करने का निर्णय किया है।

AIMPLB ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना गुंबद के नीचे राम जन्मस्थान का प्रमाण नहीं है। जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति नहीं माना जा सकता है। कई मुद्दे पर फैसले समझ से परे हैं। ASI की रिपोर्ट के मुताबिक मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई। जहां मस्जिद बनाई गई थी वहीं मस्जिद रहेगी। दूसरी जगह के लिए हम सुप्रीम कोर्ट नहीं गए थे। न्याय के लिए कोर्ट गए थे। फैसले में खामियां हैं। जमीन की पेशकश स्वीकार नहीं करेंगे। वहीं जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हम पहले से जानते है कि हमारी पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी जाएगी, लेकिन हम अवश्य पुनर्विचार याचिका दायर करनी चाहिए। यह हमारा अधिकार है।

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