1971 की जंग और पाकिस्तान के 2 टुकड़े होने की पूरी कहानी

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मुकुन्द झा
मुकुन्द झा | प्रोड्यूसर
Updated Dec 17, 2021 | 16:47 IST

India-Pakistan war : साल 1947, दरअसल बांग्लादेश की कल्पना पाकिस्तान से पहले ही हो गई थी. तारीख थी 20 जून. उस वक्त की बंगाल विधानसभा में सर्वसम्मति से भारत से अलग बंगाल की मांग को लेकर लाया गया एक प्रस्ताव बहुमत के साथ पास हो गया।

1971 war and story of division of pakistan
1971 के युद्ध में पाक को मिली थी करारी शिकस्त।  |  तस्वीर साभार: PTI

बांग्लादेश को आजाद हुए 50 साल हो गए हैं। 16  दिसंबर 1971 बांग्लादेश की आजादी और भारत के शौर्य से भरे इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण तारीख है। जब कभी बांग्लादेश के अस्तित्व की बात होगी तब पाकिस्तान के जुल्म, आतंक और बर्बरता और भारत के अदम्य साहस का जिक्र जरूर होगा। दिसंबर 1971 से पहले बांग्लादेश का अस्तित्व नहीं था इसे पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। 1947 में भारत से दो बड़े सूबे कटकर अलग हुए। जिनमें से एक था बंगाल सूबा। लेकिन बांग्लादेश के बनने की कहानी 1947 से ही शुरू हो गई थी। भाषा, प्रांत, आर्थिक भेदभाव और राजनीतिक द्वेष के दंश के बीच पूर्वी पाकिस्तान में कई आंदोलन हुए जिसका नतीजा हुआ साल 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध और इसके बाद बांग्लादेश का जन्म।

हम सिलसिलेवार तरीके से आपको एक एक कर बांग्लादेश के बनने की कहानी बता रहे हैं। कहां से गुस्सा फूटा, आंदोलन कब शुरू हुआ, आमार सोनार बांग्ला की कल्पना, बंग बंधू मुजीबुर्रहमान और फिर युद्ध ठान कैसे भारत ने निभायी निर्णायक भूमिका।

बंगाली भाषा को लेकर विवाद बढ़ा
साल 1947, दरअसल बांग्लादेश की कल्पना पाकिस्तान से पहले ही हो गई थी। तारीख थी 20 जून। उस वक्त की बंगाल विधानसभा में सर्वसम्मति से भारत से अलग बंगाल की मांग को लेकर लाया गया एक प्रस्ताव बहुमत के साथ पास हो गया। लेकिन इसके अगले ही महीने यानी 7 जुलाई 1947 को एक जनमत करवाया गया जिसमें पाकिस्तान के साथ जाने के पक्ष में ज्यादा मत आए और 15 अगस्त 1947 को पूर्वी पाकिस्तान एक हकीकत थी। मजहब के नाम पर भारत से अलग पाकिस्तान तो बन गया जिसमें पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान दो 2 बड़े धड़े थे। लेकिन जल्द ही भाषा को लेकर विवाद पनपने लगा। पूर्वी बंगाल से आने वाले नेताओं ने मांग रखी कि बंगाली को अंग्रेजी और उर्दू के साथ राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए। विवाद और ज्यादा बढ़ गया जब मोहम्मद अली जिन्ना ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाबियों का दबदबा था
भाषा को लेकर हुए कई आंदोलनों में पुलिस बर्बरता का शिकार हुए कई लोगों ने अपनी जानें गंवाई। लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में अब बंगाली राष्ट्रवाद अपने चरम पर था। पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाबियों का दबदबा था। साथ ही पूर्वी पाकिस्तान से होने वाली कमाई जिसे सरकारी भाषा में रेवेन्यु कहा जाता है उसे पश्चिमी पाकिस्तान में निवेश किया जाता। इससे भी बंगाल की तरफ के लोग नाराज थे। भाषा, प्रांत, आर्थिक और राजनीतिक अनदेखी को लेकर पूर्वी पाकिस्तान में भयंकर गुस्सा था। इसी दौरान उदय हुआ बंग बंधू और बांग्लादेश की मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान का।

1971 की जंग से पहले की हलचल
1970 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए। चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान की 162 सीटों में से 160 सीटों पर शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी आवामी लीग ने जीत दर्ज की और पश्चिमी पाकिस्तान में इस पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। पश्चिमी पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी को 138 में 81 सीटों पर जीत मिली। शेख मुजीब के पास प्रधानमंत्री बनने के लिए पर्याप्त सीटें थी लेकिन भुट्टो को पाकिस्तानी सेना का समर्थन मिला हुआ था। इसके बाद सरकार बनाने की जद्दोजहद हुई जिसमें सेना ने भी हस्तक्षेप किया लेकिन बात बनी नहीं। ऐसी स्थिति में चली सेना की ही और पाकिस्तानी संसद को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। जिसके बदले 1 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर्रहमान ने हड़ताल का आह्वान किया। हड़ताल वाली बात सेना को अच्छी नहीं लगी और कार्रवाई शुरू कर दी। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 172 लोगों की मौत और 358 लोग घायल हुए थे।

पाकिस्तानी सैनिकों ने 1100 बंगालियों को जान से मार दिया
आवामी लीग के कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर उतरना शुरू कर दिया। 19 मार्च 1971 को 24 पाकिस्तानी सैनिकों ने 1100 बंगालियों को जान से मार दिया। 25 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर पश्चिमी पाकिस्तान ले जाया गया। अप्रैल 1971 को जिंजिरा हत्याकांड हुआ जिसमें महज 9 घंटों में 1000 से ज्यादा लोगों का मार डाला गया। इसके बाद आंदोलन और तेज हुआ। बंगाल की जनता ने सेना की नाम में दमन करना शुरू कर दिया। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने वो फैसला लिया जिसने बांग्लादेश के भविष्य को तय कर दिया। पाकिस्तानी सेना के अध्यक्ष याहया खान ने ढाका में एक मीटिंग बुलाई। मीटिंग में तय हुआ ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया जाए। पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन को अंजाम दिया जाना शुरू हुआ। इसके बाद बंगाल के लोगों पर पाकिस्तान ने वो जुल्म करने शुरू किए। वो कहर ढाया जिसकी कल्पना मात्र से किसी भी रूह कांप जाए। पाकिस्तान की हमूदुर रहमान कमिशन के मुताबिक ऑपरेशन सर्चलाइट में 26000 लोगों की जानें गई।  लेकिन बांग्लादेश का दावा है कि इस दौरान 3 लाख से ज्यादा लोगों की जान गई, औरतों के साथ पाकिस्तानी सेना ने बलात्कार किया और कत्लेआम मचाया। इसी दौरान लाखों लोग अपनी जान बचाकर भारत की तरफ भागे।

इंदिरा गांधी के लिए बांग्लादेश से होता पलायन और पाकिस्तान बना सिरदर्दी
साल बदला। सालों से चला आ रहा आंदोलन और पाकिस्तानी सेना की बर्बरता जारी रही। लेकिन इधर दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के माथे पर बल पड़ने लगा। एक तरफ पाकिस्तानी सेना की हरकतें और दूसरी तरफ बांग्लादेश से हो रहा लाखों की संख्या में पलायन। इंदिरा गांधी की सरकार ने बांग्लादेश में शेख मुजीबुर्रहमान को अपना समर्थन दे दिया। भारत ने पहले तो ये तय किया कि वो सीधे तौर पर इसमें शामिल नहीं होंगे और पर्दे के पीछ रहकर ही मामले से निपटेंगे। भारतीय सेना के पूर्वी कमांड ने मुक्ति बाहिनी के लड़ाकों को ट्रेनिंग, हथियार और सप्लाई मुहैया करवानी शुरू की। लेकिन पलायन का मसला बढ़ता ही जा रहा था। कई आंकड़े तो ये भी बताते हैं कि करीब 1 करोड़ लोग बांग्लादेश से भागकर भारत में घुसे थे। लेकिन पाकिस्तान ने भारत के लिए भी कई मुश्किलें पैदा की और अबतक भारत ने युद्ध में जाने का मन बना लिया था। इस बात को और पुख्ता किया पाकिस्तान ने ही जब 3 दिसंबर को पाकिस्तानी एयर फोर्स ने पश्चिमी भारत में हवाई हमले किए। इसके बाद भारत ने अधिकारिक तौर पर युद्ध की घोषणा कर दी। 4 दिसंबर 1971 को शुरू हुआ युद्ध महज 13 दिन चला और पाकिस्तान ने 16 दिसंबर 1971 को घुटने टेक दिए। इतिहास का सबसे बड़ा सरेंडर भी इसी युद्ध में हुआ था जब भारत ने पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया था जिसके बाद पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर किया।

कैसे इस मामले में अमेरिका और सोवियत संघ भी कूद पड़े थे?
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश एक बड़े सिरदर्द बन चुके थे। ऐसे में इंदिरा ने पाकिस्तान पर हमला करने का पूरा मन बना लिया था। इंदिरा चाहती थीं कि मार्च में ही पाकिस्तान पर हमला कर युद्ध शुरू कर देना चाहिए। इंदिरा ने अपनी इच्छा फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के सामने जाहिर की। सैम बहादुर ने इससे साफ इंकार कर दिया और कहा सेना अभी हमले के लिए तैयार नहीं है। लेकिन इंदिरा नहीं मानी जिद पर अड़ी रहीं। सैम ने एक सवाल पूछा कि क्या आप युद्ध में जीतना चाहती हैं? तो इंदिरा गांधी ने हां में जवाब दिया। इसके बाद सैम ने 6 महीनों का वक्त मांगा और कहा कि जीत आपकी ही होगी। पाकिस्तान ने जब भारत पर पश्चिम की तरफ यानी राजस्थान और गुजरात की तरफ से हमला किया तो भारतीय सेना ने युद्ध की घोषणा कर दी और युद्ध शुरू हुआ। 

नौबत युद्ध तक आ गई
युद्ध से पहले भारत वैश्विक स्तर पर अपनी कूटनीतिक जोर लगा रहा था और पाकिस्तान के जुल्म और सितम की तरफ दुनिया का ध्यान खींचना चाह रहा था। लेकिन नौबत युद्ध तक आ गई। दिसंबर 1971 में भारत और पाकिस्तान दोनों फुल फ्लैजेड वॉर में थे। भारत की जीत तो सुनिश्चित थी लेकिन इससे 7 समुंदर पार बैठे अमेरिका के पेट में दर्द उठा। अमेरिका ने टास्क फोर्स 74 का गठन किया। ये अमेरिकी नेवी के सेवंथ फ्लीट को बंगाल की खाड़ी में भेजा। अमेरिका, पाकिस्तान के साथ था। अमेरिका के इस युद्ध में कूदने से मामला बड़ा हो गया। अमेरिका को उस वक्त कोई टक्कर दे सकता था तो वो सिर्फ सोवियत संघ ही था। सोवियत संघ पहले से ही खुलकर भारत का समर्थन कर रहा था। चाहे वो सैन्य हो या राजनीतिक। सोवियत संघ ने भी अपने युद्धपोत, डिस्ट्रॉयर, क्रूजर और न्यूक्लियर सबमरीन भेज दिए। कोल्ड वॉर के इतिहास में ये भी एक बड़ा मोड़ था। सोवियत संघ का ये कदम भारत के लिए बड़ी राहत लेकर  आया और अमेरिकी नेवी को कदम पीछे खींचने पड़े। इसके बाद जो हुआ वो इतिहास है और आज बांग्लादेश अपना 50वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है।
 

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