नई दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी के दौरान जिन डॉक्टरों को कोरोना वॉरियर कहा गया, भारत सरकार के पास उन्हीं से जुड़े आंकड़े नहीं है। कोविड-19 के मरीजों का इलाज करते हुए कितने डॉक्टर्स ने अपने जीवन का बलिदान दे दिया, सरकार के पास इसकी जानकारी नहीं है। इसके लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने केंद्र सरकार की आलोचना की है।
आईएमए ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन द्वारा संसद में दिए गए बयान के जवाब में अपनी बात कही है। संसद में केंद्रीय मंत्री ने इस महामारी के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों के योगदान को स्वीकार तो किया, लेकिन कोविड-19 के कारण मरने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के आंकड़े उनके बयान से गायब थे। पत्र में आईएमए ने सरकार पर महामारी के कारण डॉक्टरों और हेल्थकेयर वर्कर्स के बलिदान के प्रति उदासीन रहने का आरोप लगाया है। पत्र में कहा है कि ये राष्ट्रीय नायकों का परित्याग है, जो लोगों के लिए खड़े हुए।
हालांकि, आईएमए द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि कोविड-19 के कारण महामारी में कम से कम 382 डॉक्टरों की मृत्यु हो गई है। IMA ने पत्र में कहा है, 'भारत की तरह किसी भी राष्ट्र ने इतने डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों को नहीं खोया है।'
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा ने कहा, 'अगर सरकार कोविड-19 से संक्रमित कुल डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या और उनमें से कितने महामारी के कारण अपना जीवन बलिदान कर देते हैं, के आंकड़े को नहीं रखती है, तो यह महामारी अधिनियम 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम को संचालित करने के नैतिक अधिकार को खो देती है।'
संसद में राज्य मंत्री (स्वास्थ्य) अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि पब्लिक हेल्थ और अस्पताल राज्यों के अंतर्गत आते हैं, इसलिए बीमा मुआवजा डेटा केंद्र सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। आईएमए ने पत्र में आरोप लगाया कि एक तरफ सरकार ने स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों को कोरोना योद्धा कहा, दूसरी ओर मृतक डॉक्टरों के परिवारों को इस तरह छोड़ दिया।
एसोसिएशन ने कोविड-19 महामारी में मरने वाले डॉक्टरों की एक सूची प्रकाशित की है और सरकार से मृतक डॉक्टरों के परिवारों को सहायता प्रदान करने का आग्रह किया है। उनके परिवार और बच्चे सरकार की ओर से सांत्वना और मुआवजा के पात्र हैं। पत्र में मांग की गई है कि उन्हें शहीद का दर्जा दिया जाए।
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