24 अगस्त का दिन बिहार की राजनीति में खास दिन के तौर पर याद किया जाएगा। अगर विधानसभा के स्पीकर को अविश्वास मत के जरिए हटाया जाता है तो बिहार के राजनैतिक इतिहास में बड़ी घटना होगी। लेकिन उससे पहले बिहार की सियासय उस समय गरमा गई जब सीबीआई ने आरजेडी के चार बड़े नेताओं के यहां छापेमारी की। नौकरी के बदले जमीन घोटाले में लालू प्रसाद यादव के करीबियों एमएलसी सुनील सिंह, सांसद अशफाक करीम, सांसद फैयाज अहमद और पूर्व एमएलए सुबोध राय शामिल थे। सीबीआई की छापेमारी को आरजेडी ने जहां राजनीति से प्रेरित बताया तो बीजेपी ने कहा कि छापेमारी में नया कुछ नहीं है, जो कुछ पहले से चल रहा था उसका विस्तार है। इन सबके बीच हम यहां बताएंगे कि आखिर नौकरी के बदले जमीन घोटाला क्या है।
2004 से 2009 के बीच का मामला
मामला 2004 से 2009 के बीच का है। उस दौरान लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे और उनके कुछ खास लोग नौकरी दिलाने के नाम पर जमीन का सौदा कर रहे थे। बताया जाता है कि सैकड़ों की संख्या में उन लोगों ने जमीन लालू यादव के परिवार या उनके करीबियों के नाम कर दी जो रेलवे में नौकरी चाहते थे।
मामला तब खुला जब कुछ लोगों ने अपनी जमीन लालू यादव से संबंधित लोगों के नाम कर दी। लेकिन उन्हें रेलवे में नौकरी नहीं मिली।सीबीआई ने अदालत को जानकारी दी थी कि उसके पास करीब 1450 आवेदन है जो रेल मंत्री या जोनल मैनेजर को भेजे गए थे। इसके साथ ही उसके पास कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज मिले हैं जो यादव परिवार से संबंधित हैं। बता दें कि इस मामले में तेजस्वी यादव के घर पर भी छापेमारी हुई थी।
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