नई दिल्ली : तृणमूल कांग्रेस के यूपीए को लेकर बयान के बाद कांग्रेस और टीएमसी के बीच तकरार बढ़ने लगा है। कांग्रेस के नेताओं ने टीएमसी सुप्रीमो पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने गुरुवार को पूछा कि क्या टीएमसी अपने 4 प्रतिशत पॉपुलर वोटों के साथ प्रधानमंत्री मोदी का मुकाबला कर सकती है। चौधरी ने ममता पर पीएम मोदी का भेदिया होने और कांग्रेस एवं विपक्ष को कमजोर करने का आरोप लगाया। बता दें कि बुधवार को ममता बनर्जी ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि ‘अब कोई यूपीए नहीं है।’
लोकसभा में कांग्रेस के नेता चौधरी ने कहा कि देश के पॉपुलर वोट की अगर बात करें तो कांग्रेस के साथ यह वोट 20 प्रतिशत है जबकि टीएमसी के पास यह वोट केवल 4 प्रतिशत है। चौधरी ने पूछा, 'क्या आप कांग्रेस के इस 20 प्रतिशत वोट के बिना मोदी का मुकाबला कर सकती हैं? ममता बनर्जी मोदी का भेदिया बनकर कांग्रेस और विपक्ष को कमजोर करना चाहती हैं।'
कांग्रेस नेता ने कहा, 'ममता बनर्जी को यहा नहीं पता कि राष्ट्रगान का सम्मान कैसे किया जाना चाहिए। देश के लिए कुछ करने की बजाय वह अपने भतीजे की प्रशंसा में ज्यादा दिलचस्पी लेती हैं। कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है और यही कारण है कि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मुद्दों उठाती है।'
इससे पहले कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ममता बनर्जी पर ‘प्रधानमंत्री मोदी की तरह विधायकों एवं पार्टियों की तोड़फोड़ करने’ का आरोप लगाया और सवाल किया कि कहीं वह फासीवादी विचारधारा के रास्ते पर तो नहीं चल पड़ी हैं? गत बुधवार को मुंबई में एक कार्यक्रम में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ने कहा था कि राजनीति के लिए लगातार प्रयास आवश्यक हैं। राहुल गांधी पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए उन्होंने कहा था, ‘आप ज्यादातर समय विदेश में नहीं रह सकते हैं।’ यह पूछने पर कि क्या वह चाहती हैं कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार संप्रग के अध्यक्ष बनें, इस पर ममता ने कहा था, ‘अब कोई संप्रग नहीं है।’
कांग्रेस और टीएमसी के बीच आई दूरी पर महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि ममता बनर्जी और शरद पवार दोनों कांग्रेस से दूरी बनाकर रखना चाहते हैं। फडणवीस ने मीडियाकर्मियों से कहा, 'ममता बनर्जी और शरद पवार कांग्रेस से दूरी बनाकर रखना चाहते हैं। ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय स्तर के विपक्षी दलों में अंदरूनी झगड़े की स्थिति है।'
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