नई दिल्ली। भारत 2019 में मिशन शक्ति के तहत एंटी सैटेलाट सिस्टम का सफल परीक्षण कर चुका है और उस परीक्षण के बाद अमेरिका और रूस जैसे देशों के क्लब में शामिल हो गया था। अब उस सिलसिले में डीआरडीओ मे एंटी सैटेलाइट मिसाइल की डिजाइन को सार्वजनिक किया है जिसका उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया। यह भारत के तकनीक के क्षेत्र में उन्नत विकास को दिखाता है, इसके साथ ही दुश्मन देशों के लिए चेतावनी है कि अगर वो आकाश से गलत इरादे से निगहबानी करते हुए पाए गए तो उन्हें ध्वस्त कर दिया जाएगा।
प्राकृतिक और कृत्रिम उपग्रह में अंतर
वो छोटे खगोलीय पिंड जो किसी बड़े खगोलीय पिंड के चारों तरफ एक निश्चित समय में चक्कर लगाते रहते हैं। उन्हें प्राकृतिक उपग्रह कहा जाता है. जैसे चंद्रमा, पृख्वी का उपग्रह है। चंद्रमा पृथ्वी के चारों तरफ निश्चित कक्षा (ऑरबिट) में चक्कर लगाता है, इसके एक चक्कर का समय भी निश्चित लगभग 27 दिन होता है। जब वैज्ञानिक कृत्रिम तरह से इस तरह के उपग्रह बनाते हैं जो पृथ्वी के चारों तरफ निश्चित कक्षाओं में चक्कर लगाएं तो उन्हें कृत्रिम उपग्रह कहते हैं। कृत्रिम उपग्रहों को उनकी कक्षाओं को ऊंचाई के आधार पर चार हिस्सों में बांटा गया है।
लो अर्थ ऑरबिट
पृथ्वी से 2000 किलोमीटर से कम ऊंचाई पर स्थित कक्षाओं को पृथ्वी की निचली कक्षा या लो अर्थ ऑरबिट कहलाते हैं।
मीडियम अर्थ ऑरबिट
2000 किलोमीटर की ऊंचाई से 35,786 किलोमीटर की ऊंचाई तक की कक्षा को मीडियम अर्थ ऑरबिट या पृथ्वी की मध्यम कक्षा कहा जाता है।
जियोसिंक्रोनस ऑरबिट
35,786 किलोमीटर ऊंचाई से 42,164 किलोमीटर की ऊंचाई तक की ऊंचाई वाली कक्षाओं को जियोसिंक्रोनस ऑरबिट कहा जाता है।
हाई अर्थ ऑरबिट
जियोसिंक्रोनस ऑरबिट से ज्यादा ऊंचाई वाली कक्षाएं हाई अर्थ ऑरबिट या पृथ्वी की उच्च कक्षाएं होती हैं।
लो अर्थ ऑरबिट में चक्कर लगाने वाले सैटेलाइट को लियो सैटेलाइट कहा जाता है। ये आमतौर पर सूचनाओं के आदान प्रदान में काम आते हैं। भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन के पास ही एंटी सैटेलाइट मिसाइल की क्षमता थी। अमेरिका ने यह क्षमता साल 1958 में हासिल की थी जबकि रूस ने 1964 और चीन ने 2007 में ए-सैट मिसाइलों का सफल परीक्षण किया था। लेकिन कभी दूसरे देश के सैटेलाइट को गिराने में इनका इस्तेमाल नहीं किया गया।डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख के मुताबिक भारत की अग्नि-5 मिसाइल जिसकी मारक क्षमता 5,000 किलोमीटर है, से भी अंतरिक्ष में 600 किलोमीटर ऊंचाई तक हमला किया जा सकता है।
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