World Biggest Gold Coin: दुनिया के सबसे बड़े 12 किलो के सोने के ऐतिहासिक सिक्के को ढूढ़ने की लगभग चार दशक की नाकाम खोज के बाद अब केंद्र सरकार ने फिर से इसकी खोज शुरू कर दी है। इस 12 किलो के सोने के सिक्के को आखिरी बार हैदराबाद के निजाम आठवीं, मुकर्रम जाह के कब्जे में देखा गया था, जिन्होंने कथित तौर पर स्विस बैंक में सिक्के की नीलामी करने की कोशिश की थी। लेकिन सीबीआई उस सिक्के का पता लगाने में नाकाम रही, जो जाह को उनके दादा और हैदराबाद के अंतिम निजाम मीर उस्मान अली खान से विरासत में मिला था।
दुनिया के सबसे बड़े सोने के सिक्के की फिर से शुरू हुई तलाश
अंतिम निजाम को सम्राट जहांगीर द्वारा ढाला गया सिक्का विरासत में मिला था। दुनिया के सबसे बड़े सोने के सिक्के के इतिहास और विरासत पर रिसर्च करने वाले मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के एचके शेरवानी सेंटर फॉर डेक्कन स्टडीज की प्रख्यात इतिहासकार सलमा अहमद फारूकी ने कहा कि ये अनमोल और हैदराबाद का गौरव है। वहीं अब 35 सालों के बाद इस 12 किलो के सोने के सिक्के का पता लगाने के लिए नए सिरे से कोशिशें तेज हो गई हैं।
साल 1987 में जब यूरोप में भारतीय अधिकारियों ने केंद्र सरकार को विश्व प्रसिद्ध नीलामीकर्ता हैब्सबर्ग फेल्डमैन एसए द्वारा पेरिस स्थित इंडोसुएज बैंक की जिनेवा ब्रांच के माध्यम से 9 नवंबर को जिनेवा में होटल मोगा में 11,935.8 ग्राम सोने के सिक्के की नीलामी के बारे में अलर्ट किया तो सीबीआई भी इसमें शामिल हो गई। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक जब जांच शुरू हुई तो बहुत सी जानकारियां सामने आईं। इतिहासकार सलमा अहमद फारूकी ने कहा कि सीबीआई के अधिकारियों ने इतिहासकारों की भूमिका निभाई। कई सीबीआई अधिकारी, जो जांच में शामिल थे, अब वो रिटायर हो गए हैं और इसलिए 12 किलो वाले सोने के सिक्के की तलाशी बेनतीजा रही।
12 किलो है दुनिया के सबसे बड़े सोने के सिक्के का वजन
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वहीं सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक शांतनु सेन ने अपनी किताब में कहा है कि सीबीआई अधिकारियों ने पाया कि जहांगीर ने ऐसे दो सिक्के ढाले थे, जबकि एक को ईरान के शाह के राजदूत यादगर अली को भेंट किया गया था, जबकि दूसरा हैदराबाद के निजामों की संपत्ति बन गया था। सलमा ने आगे कहा कि 1987 में एक अधीक्षक रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में सीबीआई की विशेष जांच इकाई XI ने प्राचीन और कला खजाना अधिनियम, 1972 के तहत एक एफआईआर दर्ज की। आगे की जांच से पता चला कि मुकर्रम जाह साल 1987 में स्विस नीलामी में दो सोने के मोहरों की नीलामी करने की कोशिश कर रहे थे, जिनमें से एक माना जाता है कि वो 1,000 तोला का सिक्का था और तब इसकी कीमत 16 मिलियन डॉलर थी।
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