लखनऊ : राज्यसभा के बाद विधान परिषद (एमएलसी) चुनाव में समाजवादी पार्टी के गठबंधन धर्म की बड़ी परीक्षा होंने वाली है। पार्टी के अंदरखाने कई नाम चल रहे हैं और सपा मुखिया अखिलेश यादव को कार्यकर्ता और गठबंधन दोनों को देखते हुए फैसला लेना है। विधायकों की संख्या के आधार पर सपा चार लोगों को उच्च सदन भेज सकती है। समाजवादी पार्टी गठबंधन के पास कुल विधायकों की संख्या 125 हैं। एमएलसी की एक सीट के लिए 32 विधायकों की जरूरत है। संख्या के आधार पर चार सीटें सपा के खाते में आएगी। बाकी भाजपा जीत लेगी। अभी रालोद के पास आठ विधायक हैं। जबकि सुभासपा के पास छह सीटें हैं। लोकसभा चुनाव को देखते हुए अखिलेश यादव कोई बड़ा जोखिम नहीं लेना चाहेंगे। वह जातीय और क्षेत्रीय समीकरण में फिट होने वाले को ही आगे रखना चाहेंगे।
इस बार अहम है एमएलसी चुनाव
सपा के एक बड़े नेता ने बताया कि राज्यसभा चुनाव में राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पूरी तरह से गठबंधन धर्म निभाते हुए फैसला लिया है। एमएलसी चुनाव में अब बहुत सोच समझकर निर्णय लेना होगा क्योंकि अभी हाल में उपचुनाव भी है इसे देखते हुए जनाधार वाले नेताओं और कार्यकतार्ओं को आगे लाने की जरूरत है।उन्होंने कहा कि इससे पार्टी में एकजुटता का संदेश जाएगा। भाजपा ने राज्यसभा में सबसे ज्यादा पिछड़ों को तवज्जों देकर एक बड़ा मैसेज देने का प्रयास किया है। ऐसे में पार्टी को समाजिक समीकरण साधने की भी बड़ी चुनौती है। अब जो निर्णय हों उसमें कार्यकतार्ओं और आने वाले चुनाव को प्राथमिकता देनी चाहिए।
चर्चा में हैं कई नेताओं के नाम
सपा सूत्रों के अनुसार एमएलसी पद के लिए भाजपा से सपा में गए फाजिल नगर सीट हारने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या, नेता प्रतिपक्ष रहे रामगोविंद चैधरी, कांग्रेस से आए इमरान मसूद, बाराबंकी से अरविन्द सिंह गोप, करहल से अखिलेश के लिए सीट छोड़ने वाले सोबरन सिंह इसके अलावा तीन एमएलसी राजपाल कश्यप, अरविन्द सिंह, संजय लाठर का नाम चर्चा में है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) की ओर से ओमप्रकाश राजभर भी अपने बेटे के लिए एक सीट के लिए दबाव बना रहे हैं। सुभासपा के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर का कहना है कि एमएलसी चुनाव में समय है। साथ है कुछ न कुछ करना पड़ेगा। गठबंधन के एक साथी को दिया जा रहा है तो दूसरे को भी दिया जाना चाहिए।
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