Agnipath Scheme Protest: अग्निपथ स्कीम का बिहार में भारी विरोध और भाजपा नेताओं पर हुए हमले से , बिहार में अब सत्ताधारी दल ही आमने-सामने हैं। एक तरफ जहां भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल खुल कर भाजपा नेताओं पर हुए हमले के लिए नीतीश सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वहीं जनता दल (यू) के नेता लल्लन सिंह ने भी उनके आरोपों पर हमला बोलते हुए कहा है कि युवा अपने भविष्य को लेकर चिंतित होकर विरोध कर रहे हैं । विरोध की आड़ में हिंसा किसी को भी मंजूर नहीं है। भाजपा को युवाओं से बात करने की बजाए प्रशासन पर आरोप लगा रही है। जाहिर है कि दोनों दलों के बीच जुबानी जंग जारी है। और इसका राजनीतिक असर आने वाले दिनों में दिख सकता है। खास तौर से जब बिहार में जातिगत जनगणना शुरू होने जा रही है। और जद (यू) के कई नेताओं को भाजपा के साथ ज्यादा करीबी की वजह से पार्टी से निकाल दिया गया है।
भाजपा नेताओं के घरों और कार्यालय पर हुए हमले
14 जून को अग्निपथ योजना के ऐलान के बाद बिहार में सबसे ज्यादा उग्र प्रदर्शन हो रहा है। उपद्रवियों द्वारा कई ट्रेनें जला दी गई, वहीं बिहार में भाजपा के कार्यालय और नेताओं के घरों पर भी हमले किए गए हैं। अग्निपथ स्कीम का विरोध प्रदर्शन कर रहे उपद्रवियों ने बिहार के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के घर पर हमला कर तोड़-फोड़ की , वहीं डिप्टी सीएम रेणु देवी के आवास पर पथराव किया, इसके अलावा मधेपुरा में पार्टी कार्यालय पर भी हमला किया गया। इन हमलों के बाद ही संजय जायसवाल ने प्रेस कांफ्रेंस कर नीतीश सरकार पर सीधे आरोप लगाकर उसके नीयत पर सवाल उठा दिए।
राज्य सभा टिकट के समय से खींचतान !
असल में एक सरकार में रहते हुए जिस तरह भाजपा और जद (यू) एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। उसकी खींचतान राज्य सभा चुनाव के लिए टिकटों के ऐलान के समय से शुरू हो गई है। केंद्रीय मंत्री आर.सी.पी.सिंह को इस बार जद (यू) से राज्य सभा का उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा से बढ़ती करीबी ने उन पर नीतीश कुमार ने अपनी नजरें फेर ली हैं। और इसी वजह से उनके करीबी अजय आलोक और दूसरे कई नेताओं को पार्टी से निलंबित कर दिया गया है। इन सभी नेताओं पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाया गया है। जाहिर है भाजपा से करीबी शुरू हुई खींचतान अब दोनों दलों में जुबानी जंग के रूप में दिख रही है।
जातिगत जनगणना में भी बैकफुट पर भाजपा
बिहार में भले ही नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना का फैसला कर लिया है। लेकिन वहां पर भी सरकार में रहते हुए भाजपा के लिए इस फैसले का समर्थन करना आसान नहीं था। क्योंकि केंद्र सरकार शुरू से ही जातिगत जनगणना से इंकार करती रही है। लेकिन नीतीश कुमार के रूख और राज्य के राजनीतिक समीकरण को देखते हुए भाजपा के पास, राज्य में जातिगत जनगणना में नीतीश कुमार के साथ चलने के अलावा और कोई चारा नहीं था। इस बीच इफ्तार के बहाने राजद नेता तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की नजदीकी भी राज्य की राजनीति में खास चर्चा का विषय रही है।
राष्ट्रपति चुनाव में क्या होगा
दोनों दलों के बीच खींचतान किस हद तक पहुंची है, यह राष्ट्रपति चुनाव के दौरान दिख सकता है। क्योंकि जनता दल (यू) के कुछ नेता नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने की वकालत करते रहे हैं। हालांकि खुद नीतीश कुमार इससे इंकार करते हैं। लेकिन जिस तरह विपक्ष की कोशिश चल रही है कि वह एक साझा उम्मीदवार खड़ा करें, उसमें बिहार में बदलते राजनीतिक समीकरण काफी कुछ तय कर सकते हैं।
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