शादीशुदा का दूसरे के साथ संबंध रखना Live-in Relationship नहीं बल्कि अपराध,इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप पर निर्णय सुनाते हुए कहा है कि शादीशुदा होते हुए गैर पुरुष के साथ पति-पत्नी की तरह रहना लिव इन रिलेशन नहीं है, बल्कि यह अपराध की श्रेणी में आता है। 

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप पर अहम निर्णय सुनाया है 

प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि कोई महिला बगैर तलाक लिए दूसरे व्यक्ति के साथ रह रही है तो वह इस आधार पर अदालत से सुरक्षा पाने की हकदार नहीं है। याचिकाकर्ता आशा देवी और सूरज कुमार ने अदालत से अनुरोध किया था कि वे बालिग हैं और पति-पत्नी की तरह रह रहे हैं। इसलिए, कोई भी व्यक्ति उनके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप ना करे।

राज्य सरकार के वकील ने इस आधार पर याचिका का विरोध किया कि याचिकाकर्ता आशा देवी पहले से शादीशुदा है और अपने पति महेश चंद्रा से तलाक लिए बगैर उसने सूरज कुमार नाम के व्यक्ति के साथ रहना शुरू कर दिया जो अपराध है। इसलिए वह किसी तरह के संरक्षण की पात्र नहीं है।

"इस तरह का संबंध ‘लिव इन रिलेशन’ के दायरे में नहीं आता"

न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी और न्यायमूर्ति डॉक्टर वाई के श्रीवास्तव की पीठ ने तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि आशा देवी अब भी कानूनन महेश चंद्रा की पत्नी है। अदालत ने कहा, 'चूंकि आशा देवी एक शादीशुदा महिला है और महेश चंद्रा की पत्नी है, याचिकाकर्ताओं का कृत्य विशेषकर सूरज कुमार का कृत्य आईपीसी की धारा 494/495 के तहत अपराध है। इस तरह का संबंध ‘लिव इन रिलेशन’ के दायरे में नहीं आता।'

इस याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, 'मौजूदा मामले में तथ्यों के आधार पर याचिकाकर्ताओं के पास संरक्षण पाने के लिए कोई कानूनी अधिकार नहीं है। कानून के विपरीत आदेश जारी नहीं किया जा सकता।'
 

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