महाराष्ट्र की स्थिति पर अमित शाह ने रखा अपना पक्ष, शिवसेना को कही दो टूक बात

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Updated Nov 13, 2019 | 19:29 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Amit Shah on Maharashtra political crisis: बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति पर कहा है कि किसी भी दल के पास संख्या है तो वो आज भी राज्यपाल से संपर्क कर सकता है।

Amit Shah
अमित शाह 
मुख्य बातें
  • महाराष्ट्र में 19 दिन बाद राष्ट्रपति शासन लगाया गया, किसी दल ने सरकार बनाने का दावा नहीं किया
  • नतीजों के बाद शिवसेना ने बीजेपी के सामने ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की शपथ रखी
  • अमित शाह ने स्पष्ट किया कि शिवसेना की नई मांगों को नहीं माना जा सकता है

नई दिल्ली: महाराष्ट्र में मचे राजनीतिक घमासान पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान आया है। उन्होंने कहा है कि राज्य में सरकार बनाने के लिए 18 दिन का समय दिया गया। कोई भी पार्टी सरकार बनाने का दावा नहीं कर सकी। वहीं शिवसेना के साथ गठबंधन टूटने पर उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले हमने कई बार कि अगर गठबंधन जीतता है तो देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री होंगे, तब किसी ने विरोध नहीं किया।  

महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगने पर अमित शाह ने न्यूज एजेंसी ANI को दिए इंटरव्यू में कहा, 'इससे पहले किसी भी राज्य में इतना समय नहीं दिया गया था, 18 दिन दिए गए। राज्यपाल ने विधानसभा कार्यकाल समाप्त होने के बाद ही पार्टियों को आमंत्रित किया। न तो शिवसेना और न ही कांग्रेस-एनसीपी और न ही हमने ने सरकार बनाने का दावा किया। अगर आज भी किसी पार्टी के पास संख्या है तो वह राज्यपाल से संपर्क कर सकती है।' 

शिवसेना के साथ गठबंधन टूटने पर शाह ने कहा, 'चुनाव से पहले पीएम और मैंने कई बार सार्वजनिक रूप से कहा कि अगर हमारा गठबंधन जीतता है तो देवेंद्र फडणवीस सीएम होंगे, किसी ने भी इस पर आपत्ति नहीं जताई। अब वे नई मांगें लेकर आए हैं जो हमें स्वीकार्य नहीं हैं।' 

उन्होंने कहा कि आज भी अगर किसी के पास संख्या है तो वे राज्यपाल से संपर्क कर सकते हैं। राज्यपाल ने किसी को भी मौका देने से इनकार नहीं किया है। कपिल सिब्बल जैसे विद्वान वकील बचकानी दलीलें दे रहे हैं कि हमारा सरकार बनाने का मौका छिन लिया। नहीं छिना, आप सरकार बनाओ ना।

महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासने लगने पर बीजेपी अध्यक्ष ने कहा, 'इस मुद्दे पर विपक्ष राजनीति कर रहा है और एक संवैधानिक पद को इस तरह से राजनीति में घसीटना मैं नहीं मानता लोकतंत्र के लिए स्वस्थ परंपरा है।'

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