नई दिल्ली : गृह मंत्री अमित शाह सोमवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 पेश करेंगे। लोकसभा की सोमवार की कार्यवाही में इस विधेयक को पेश किए जाने के लिए सूचीबद्ध किया गया है। सरकार का सारा जोर इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पारित कराने पर है। इस बिल को केंद्रीय कैबिनेट से पहले ही हरी झंडी मिल चुकी है। लोकसभा में सरकार के पास संख्याबल है लेकिन उसे उम्मीद है कि राज्यसभा में इस विधेयक पर उसे एनडीए के अलावा अन्य राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल होगा।
विपक्ष इस नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रहा है। कांग्रेस, राकांपा, माकपा, भाकपा, डीएमके, राजद और जद-यू सहित आठ पार्टियां इस विधेयक का विरोध कर रही हैं। विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। बता दें कि सरकार नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करने जा रही है।
नागरिकता संशोधन विधेयक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक रूप से प्रताड़ित होने वाले गैर-मुस्लिम समुदायों को भारत में नागरिकता प्रदान करेगा। यह विधेयक इन तीन देशों से पलायन कर भारत पहुंचने वाले हिंदू, सिख, ईसाई, जैन और पारसी को छह साल के भीतर नागरिकता देने का प्रावधान करेगा।
इस विधेयक को लेकर विपक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता केंद्र की मोदी सरकार पर भेदभाव का आरोप लगा रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि इन देशों से आने वाले मुस्लिम लोगों के लिए बिल में नागरिकता का प्रावधान न कर सरकार विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। भारत का मौजूदा नागरिकता कानून अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने से मनाही करता है लेकिन संशोधित विधेयक अवैध तरीके से भारत में दाखिल होने वाले इन अल्पसंख्यक समुदायों को नागरिकता प्रदान करेगा। सरकार का कहना है कि यह विधेयक धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आने वाले अल्पसंख्यकों को नागरिकता देगा।
बता दें कि साल 2016 में केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने राज्यसभा में अपने एक बयान में कहा था कि करीब 2 करोड़ बांग्लादेशी अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं। हालांकि, वह राज्यवार आंकड़ा नहीं पेश कर सके। बताया जाता है कि सबसे ज्यादा बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से पश्चिम बंगाल और उसके बाद असम में रहते हैं।
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