नई दिल्ली। सभी तरह के राजनीतिक विरोधों को विराम देते हुए आंध्र प्रदेश सरकार ने उस फैसले को बदल दिया है जिसमें तिरुमला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड को कुछ खास अधिकार दिए गए थे। दरअसल सरकार ने बोर्ड की इस बात की इजाजत दे दी थी कि वो भगवान तिरुमला को दान में मिली जमीन को बेच सकती है। लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा। सवाल यह है कि आखिर जगनमोहन सरकार को फैसला बदलने के लिए मजबूर क्यों होना पड़ाय़
जगनमोहन सरकार ने फैसला बदला
दरअसल इसके लिए थोड़ा पीछे चलना होगा। भगवान वेंकटेश्वर को उनके भक्त बड़े पैमाने पर जमीन दान देते थे। चंद्रबाबू नायडू सरकार जब सत्ता में थी को इस बात की व्यवस्था की गई कि बोऱ़् दान में मिली जमीन को बेच सकता है।हालांकि इस फैसले का विरोध होता रहा है। लेकिन मौजूदा सरकार में वह फैसला कायम रहा। लेकिन कांग्रेस ने जब हाल ही में मंदिरों के पास रखे सोने को बेचने की बात कही तो यह विरोध एक बार फिर ताजा हुआ।
कांग्रेस ने स्वर्ण संपत्ति बेचने की दी थी सलाह
सरकार में आने के बाद जगनमोहन रेड्डी सरकार ने टीडीपी सरकार के दौरान लिए गए ज्यादातर फैसलों को बदल दिया था। लेकिन तिरुमला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड से संबंधित फैसले पर चुप्पी साधे रही। जब कांग्रेस की तरफ से मंदिरों को स्वर्ण संपत्ति को बेचने की बात कही गई तो आंध्र में राजनीति इस बात पर गरमानी शुरू हो गई कि जगनमोहन रेड्डी सरकार का रुख क्या है।
हिंदू संगठनों ने जताया था ऐतराज
महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और कद्दावर नेता पृथ्वी राज चव्हाण ने सुझाव दिया था कि जब कोरोना वायरस की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था बेपटरी हो चुकी है तो देश के मंदिरों को पहल करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश के कुछ खास मंदिरों के पास इतना सोना है कि सरकार उसे इस्तेमाल में ला सकती है। इसके लिए उन्होंने वाजपेयी और मोदी सरकार की गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम का हवाल दिया था। लेकिन बीजेपी के साथ साथ कई हिंदूवादी संगठनों की तरफ से विरोध शुरु हुआ।
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