साल 2014 में कांग्रेस के टिकट पर जौनपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले रवि किशन ने शायद ही कभी सोचा होगा कि एक दिन वह गोरखपुर जैसी प्रतिष्ठित एवं सम्मानित सीट से सांसद बनेंगे। लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर की जनता ने फिल्मी दुनिया से ताल्लुक रखने वाले रवि किशन को चुना। साल 1967 के बाद से गोरखपुर संसदीय सीट गोरक्षनाथ मंदिर के पास रही है। इस सीट पर पहले दिग्विजयनाथ फिर अवैद्यनाथ और इसके बाद यूपी के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पांच बार सांसद रहे। सांसद बनने के बाद रवि किशन ने संसद से लेकर सड़क तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। सियासी गलियारे में खुद को खोने नहीं दिया है।
2014 में राजनीति में आए रवि किशन
रवि किशन आज 50 साल के हो गए हैं। उनकी सियासत की पारी बाकियों की तरह निराश करने वाली नहीं रही है। राजनीति में उनकी एंट्री तो 2014 में हो गई लेकिन उन्हें पहचान मिली 2019 में। कांग्रेस से निराश हो चुके रवि किशन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सीएम योगी और भाजपा की नीतियों से प्रभावित हुए। भाजपा में शामिल होने से पहले वह सार्वजनिक रूप से भाजपा की तारीफ करते पाए गए। फिर एक समय ऐसा भी आया जब भाजपा ने उन्हें गोरखपुर सीट से सांसद का उम्मीदवार बना दिया। एक सांस्कृतिक महत्व की सीट को एक फिल्मी सितारे को सौंपे जाने पर लोगों में नाराजगी पैदा होने का खतरा था लेकिन गोरखपुर की जनता ने रवि किशन को हाथोंहाथ लिया और भारी मतों से जीताकर उन्हें संसद भेजा। 2014 में उन्होंने जौनपुर से चुनाव लड़ा था। इस सीट पर उन्हें शिकस्त मिली।
बचपन गरीबी में गुजरा, पिता पुजारी थे
जौनपुर जिले की केराकट तहसील में जन्मे रवि किशन का बचपन गरीबी में गुजरा। इनके पिता पुजारी थे। रवि किशन के पिता उन्हें पढ़ा-लिखाकर अपनी तरह पुजारी बनाना चाहते थे लेकिन रवि किशन को यह पसंद नहीं था। उनके मन-मस्तिष्क में बॉलीवुड और मुंबई के सपने शुरू से थे। एक समय ऐसा भी आया कि वह घर से भागकर सपनों की नगरी मुंबई चले गए। यहां से उनके संघर्ष का जो सिलसिला चला वह लंबा था। रवि किशन वर्षों तक अच्छा किरदार पाने के लिए मुंबई की सड़कों की धूल फांकते रहे।
कठिनाइयों से कभी हार नहीं मानी
आर्थिक तंगी को उन्होंने अपने संघर्ष का कभी रुकावट नहीं बनने दिया। वे मुंबई में लगातार मुसीबतों एवं परेशानियों से जूझते रहे। कठिनाइयों से उन्होंने हार नहीं मानी। फिर एक समय वह भी आया जब बॉलीवुड और भोजपुरी सिनेमा ने उन्हें सलाम किया। कम समय में ही उन्होंने हिंदी, भोजपुरी, दक्षिण की फिल्मों में अपना नाम कमाया। भोजपुरी के वे सुपरस्टार बनकर उभरे। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री आज जो कुछ भी है उसमें रवि किशन के गारे-माटी का पसीना सबसे ज्यादा लगा है।
संसद से सड़क तक हमेशा मुखर रहे
एक सांसद के रूप में रवि किशन अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के लिए हमेशा उपलब्ध रहने की कोशिश की है। क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय मुद्दों पर वह लगातार मुखर रहे हैं। सभी नागरिकों के लिए आवश्यक मतदान, भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग, बॉलीवुड में ड्रग नेटवर्क, भोजपुरी में अश्लीलता और तमाम सारे अन्य मुद्दों पर उन्होंने खुलकर अपनी राय रखी। राजनीतिक की रपटीली राहों पर चलना सभी को नहीं आता है लेकिन रवि किशन ने यह कर दिखाया है। फिल्मी दुनिया से राजनीति में आना आसान हो सकता है। राजनीति में बने रहना और अपनी पहचान कायम करने के लिए मेहनत, लगन और ईमानदारी की जरूरत होती है। रवि किशन से पहले बॉलीवुड के कई सितारे संसद तक पहुंचे लेकिन वे अपनी चमक कायम नहीं रख सके। समय के बहाव में वे गुमनाम हो गए या उन्हें समझ लिया कि सियासत की दुनिया उनके लिए नहीं है।
कोरोना संकट में लोगों की मददकर बनाई अपनी खास पहचान
रवि किशन को सांसद बने दो साल से ज्यादा का समय हो गया है, इन दो सालों में उन्होंने साबित कर दिया है कि वह लंबी रेस के घोड़े हैं। कोरोना काल में प्रवासी संकट के दौरान वह लगातार सक्रिय रहे। गोरखपुर में न रहते हुए भी वह सोशल मीडिया के जरिए अपने लोगों से जुड़े रहे। मुंबई से गोरखपुर स्पेशल ट्रेनें चलाए जाने की मांग की। महाराष्ट्र के राज्यपाल से मिले। गोरखपुर अपने कार्यालय से राशन का वितरण कराया। एक मझे हुए नेता की तरह अपने लोगों के बीच पहुंचकर उनकी बातें सुनना रवि किशन को बड़ा बनाती है। उन पर स्टारडम का भार नहीं है। वह सहज हैं। गरीबी में तपकर आगे निकले हैं। इसलिए जनता भी उन्हें पसंद करती है।
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