नई दिल्ली : ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में कराए जा रहे सर्वे पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि भारत सरकार और यूपी सरकार को कोर्ट को बताना चाहिए था कि संसद ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 पास किया। इसमें कहा गया है कि कोई भी धार्मिक स्थल 15 अगस्त 1947 को जिस हालात में अस्तित्व में था, उसे भंग नहीं किया जाएगा। उन्हें कोर्ट को यह बताना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि काशी की ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने का यह आदेश 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का खुला उल्लंघन है, जो धार्मिक स्थलों में बदलाव को रोक लगाता है। अयोध्या फैसले में SC ने कहा था कि अधिनियम भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा करता है जो संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना हो रही है। इस आदेश से कोर्ट 1980-1990 के दशक की रथ यात्रा के रक्तपात और मुस्लिम विरोधी हिंसा का रास्ता खोल रहा है।
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ओवैसी ने कहा कि मोदी सरकार जानती है कि जब बाबरी मस्जिद सिविल टाइटल का फैसला आया, तो इसे 1991 के अधिनियम को संविधान के बुनियादी ढांचे से जोड़ा। सरकार का संवैधानिक कर्तव्य था कि वह अदालत को बताए कि वे जो कर रहे हैं वह गलत है। लेकिन जब से वे नफरत की राजनीति कर रहे हैं, वे चुप हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी को कहना चाहिए कि क्या वे पूजा के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को स्वीकार करते हैं। यह बीजेपी और संघ है जो इस मामले पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। वे 90 के दशक में फैलाए गए नफरत के युग को फिर से जगाने की कोशिश कर रहे हैं।
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